मारवाड़ के राठौड़ वंश के मूलपुरुष राव सीहा जी राठौड़ :- सर्वप्रथम राव सीहा जी से संबंधित ऐतिहासिक भ्रम को दूर करना आवश्यक है, क्योंकि कई ख्यातों और पुस्तकों में बिना शोध के कई बातें लिख दी गईं, जिनका पता बाद में शिलालेखों व ताम्रपत्रों से उजागर हुआ।
बीकानेर के सिंढायच कवि दयालदास ने लिखा है कि “राव सीहा विक्रम संवत 1175 (1118 ई.) में पैदा हुआ और विक्रम संवत 1212 (1155 ई.) में गद्दी पर बैठा। वह मुगलों से 52 लड़ाइयां लड़ा और उसने उनको कन्नौज में
बसने नहीं दिया, जिस पर दिल्ली के बादशाह ने उसे अपने पास बुलाकर मनसबदार बनाया और 24 लाख की आय के कन्नौज के 30 परगने दिए। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र जसवंतसिंह को कन्नौज का राज्य सौंपकर 10 हज़ार की
फौज के साथ द्वारका की यात्रा की। मार्ग में मूलराज सोलंकी ने उसका स्वागत किया और उससे लाखा फूलाणी को मारने का वचन लेकर उसे अपनी बेटी ब्याह दी। लाखा फूलाणी को मारकर वह कन्नौज लौटा, जहां विक्रम संवत 1243 (1187 ई.) में उसकी मृत्यु हो गई।”
कवि दयालदास द्वारा लिखित यह सम्पूर्ण वर्णन काल्पनिक है। उस समय मुगलों की सत्ता ही स्थापित नहीं हुई थी। यदि मुगलों की बजाय मुसलमान लिखा होता तब भी यह कथन गलत होता, क्योंकि मोहम्मद गौरी की सत्ता 1192 ई. से पहले तो स्थापित ही नहीं हुई थी।
इसके अलावा राव सीहा के जसवंतसिंह नाम के कोई पुत्र थे ही नहीं। मुहणौत नैणसी ने भी इसी तरह की कहानी लिखी है और यह भी लिखा है सोलंकी शासक राव जयसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह राव सीहा के साथ करवा दिया।
वास्तविकता में चालुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज का देहांत तो राव सीहा के जन्म से कई वर्ष पहले ही हो गया था। इसलिए इस विवाह की बात में भी कोई सत्यता नहीं है।
ये ख्यातें एक तरफ तो कहती हैं कि कन्नौज के राजा जयचंद की चौथी पीढ़ी में राव सीहा हुए, जबकि दूसरी तरफ 12वीं सदी में राव सीहा की विजयों का वर्णन करती हैं। जबकि यह तो अटल सत्य है कि कन्नौज पर 1194 ई. तक राजा जयचंद का राज रहा था।
राव सीहा द्वारा जिन लाखा फूलाणी को मारने की बातें लिखी हैं, वास्तव में उन लाखा फूलाणी को तो राव सीहा से 200 वर्ष पहले मूलराज ने मार दिया था। ये बात कई प्राचीन ग्रंथों में भी लिखी हुई है। गुजरात के इतिहास में भी यही लिखा है।
राव सीहा का भीनमाल पर राज करना लिखा है, जो कि गलत है। क्योंकि राव सीहा के समकालीन भीनमाल के शासक राजा उदयसिंह चौहान व उनके पुत्र चाचिगदेव थे। हां, यह सम्भव हो सकता है कि राव सीहा का अधिकार भीनमाल के कुछ गांवों पर रहा हो।
मुहणौत नैणसी ने राव सीहा के बारे में लंबी चौड़ी कथा लिखी है, परन्तु वह ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मिथ्या ही है, क्योंकि उसमें कन्नौज, लाखा फूलाणी, मूलराज सोलंकी आदि का ज़िक्र बार-बार हुआ है।
राव सीहा का इतिहास अधिक पुराना होने से ज्यादा स्पष्ट नहीं है, बाद के लेखकों ने कई अतिशयोक्ति भरा वर्णन भी किया है। उनका समकालीन इतिहास नाम मात्र का ही मिलता है।
राव सीहा का वास्तविक इतिहास कुछ इस तरह है :- राव सीहा के पिता सेतराम थे। इनके पिता का नाम राव सीहा के स्मारक से ज्ञात होता है। मुहणौत नैणसी के अनुसार वरदाईसेन के पुत्र सेतराम अफीम के आदि थे।
इस वजह से वरदाईसेन ने सेतराम को अपने यहां से निकाल दिया। राव सीहा की जन्म तिथि ज्ञात नहीं है, परन्तु इनका देहांत 1273 ई. में हुआ। यह जानकारी उनके स्मारक से मिलती है।
जब राव सीहा ने मारवाड़ में प्रवेश किया था, तब उनके साथ मात्र 200 सैनिक थे। वंश कोई भी हो, जब बात उनके मूलपुरुष पर आती है, तो उनका संघर्ष बड़ा ही मुश्किल होता था।
किसी भी स्थान पर किसी वंश की स्थापना करना इतिहास में सबसे मुश्किल कार्यों में से एक था। क्योंकि मूलपुरुषों के पास साधन कम होते थे, सेना कम होती थी, जगह नई होती थी, परिस्थितियां नई होती थीं।
ऐसे में उनके सामने महत्वपूर्ण चुनौती होती थी वहां पहले से स्थापित सत्ता को चुनौती देना व जड़ से उखाड़ना। साथ ही साथ उन्हें वहां की प्रजा के साथ भी सामंजस्य स्थापित करना पड़ता था।
उन्हें जल्द ही स्वयं को इतना सक्षम बनाना होता था कि पड़ोसी सत्ताओं के आक्रमणों का सामना कर सके, क्योंकि पड़ोसी सत्ताएं किसी नए शासक के आगमन को स्वीकार नहीं करती थीं।
राव सीहा मरुस्थल की राजनीति में हस्तक्षेप करते हुए अपने पराक्रम से एक के बाद एक गांव पर अधिकार करते गए। राव सीहा ने 1243 ई. के आसपास अपने परिवार व सैनिकों के साथ पाली के आसपास के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
इसलिए मारवाड़ में राठौड़ वंश की नींव रखने का वर्ष 1243 ई. ही मानना चाहिए। कुछ जगह इसे 1226 ई. भी लिखा गया है। राव सीहा का शेष इतिहास अगले भाग में लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)