मारवाड़ के राठौड़ वंश के संस्थापक राव सीहा राठौड़ (भाग – 2)

राठौड़ वंश के मूलपुरुष राव सीहा जी राठौड़ :- राव सीहा पाली के आसपास ही रहते थे और वहीं उनका देहांत भी हुआ। उनका सम्बन्ध भीनमाल से जोड़ना उचित नहीं।

पाली के पालीवाल ब्राह्मणों की रक्षा :- राव सीहा जी के बारे में यह वर्णन भी मिलता है कि उन्होंने पाली के धनाढ्य पालीवाल ब्राह्मणों की रक्षा की थी, जिसके बदले में इन पालीवालों ने राव सीहा को फ़ौज खर्च हेतु उस ज़माने की एक लाख मुद्राएं भेंट की व कुछ लागें (टैक्स) तय कर दिए।

इस तरह राव सीहाजी का प्रभुत्व वहां स्थापित होता गया। ओझा जी के अनुसार राव सीहा ने बालेचा चौहानों से इन ब्राह्मणों की रक्षा की व विश्वेश्वर नाथ रेऊ के अनुसार मीणा व मेर जातियों के आक्रमणों से राव सीहा ने ब्राह्मणों की रक्षा की।

उचित यही लगता है कि राव सीहा ने मेरों के आक्रमणों से ब्राह्मणों की रक्षा की। इस प्रकार राव सीहा ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए ब्राह्मणों की रक्षा की, जिसका परिणाम उनके लिए भी बहुत बढ़िया रहा।

राव सीहा जी राठौड़

सोमनाथ मंदिर के निर्माण की बात :- मारवाड़ की ख्यात के अनुसार राव सीहा राठौड़ ने इन एक लाख मुद्राओं के चौथे हिस्से अर्थात 25 हज़ार मुद्राओं से पाली में सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। यही बात वीरविनोद ग्रंथ में भी लिख दी गई।

परन्तु यह बात मिथ्या है, क्योंकि पाली के सोमनाथ मंदिर के दक्षिण पार्श्व में लगे एक शिलालेख में चालुक्य नरेश कुमारपाल का वर्णन है, जिससे मालूम होता है कि यह मंदिर राव सीहा के जन्म से काफी समय पहले ही बन गया था। लेकिन यह हो सकता है कि राव सीहा ने उक्त मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया हो।

राव सीहा का देहांत :- उस समय खेड़ पर गुहिल राजपूतों का अधिकार था। गुहिलों व उनके मंत्री डाभी राजपूतों के बीच आपसी फूट हो गई, जिसका फायदा उठाते हुए राव सीहा ने खेड़ पर आक्रमण करना चाहा,

परन्तु इसी समय पाली पर मुसलमानों ने आक्रमण कर दिया। राव सीहा ने फ़ौरन पाली की तरफ कूच किया और पाली में जाते ही मुसलमानों को परास्त करके ब्राह्मणों की रक्षा की।

भागते हुए मुसलमानों का पीछा किया गया, परन्तु इसी दौरान राठौड़ों का सामना मुसलमानों की एक और फ़ौज से हो गया। मुसलमान अक्सर इस तरह की रिज़र्व फ़ौज रखा करते थे। इस फौज का सामना राठौड़ों ने बड़ी बहादुरी से किया।

राव सीहा स्वयं घोड़े पर सवार होकर भाले से शत्रुओं का संहार कर रहे थे, परन्तु बीठू गांव के पास राव सीहा अनेक घावों के चलते वीरगति को प्राप्त हुए।

राव सीहा का स्मारक :- राव सीहा के देहांत के बाद उनका स्मारक बनवाया गया। यह स्मारक पाली से 14 मील उत्तर पश्चिम में बीठू गांव के पास स्थित है। राव सीहा का देहांत विक्रम संवत 1330 कार्तिक वदी 12 (9 अक्टूबर, 1273 ई. सोमवार के दिन) हुआ।

राव सीहा की एक सोलंकी रानी पार्वती थीं, जो कि सम्भवतः कोलूमण्ड के सोलंकी सरदार की पुत्री थीं। या तो इन रानी ने ही राव सीहा का स्मारक बनवाया या फिर वे राव सीहा के साथ सती हुईं, क्योंकि इनका नाम राव सीहा के स्मारक वाले लेख पर खुदा है।

राव सीहा जी की देवली

स्मारक पर राव सीहा की मूर्ति बनी हुई है, जिसमें वे अश्वारूढ़ हैं और शत्रु की छाती में भाला मारते हुए दिखाई दे रहे हैं। मूर्ति में राव सीहा की रानी पार्वती सोलंकिनी को राव सीहा के सामने हाथ जोड़े खड़े दिखाया गया है।

पाली की रोदाबाव नामक एक पुरानी बावली के पास भी एक चबूतरा बना है, जिसको लोग राव सीहाजी का चबूतरा कहते हैं।

कुछ ग्रंथों में राव सीहा के देहांत के समय उनकी आयु 80 वर्ष बताई गई है, हालांकि यह मात्र अनुमानित रूप से लिखा गया है, क्योंकि राव सीहा की जन्मतिथि अस्पष्ट है।

अलग-अलग पुस्तकों में राव सीहाजी के पुत्रों की संख्या भी अलग-अलग बताई गई है। हालांकि मुख्य रूप से राव सीहाजी के 3 पुत्र प्रसिद्ध हुए :- (1) आस्थान जी (2) सोनिंग जी (3) अज जी।

ये तीनों पुत्र राव सीहा की चावड़ी रानी से उत्पन्न हुए थे। सोनिंग जी राठौड़ ने गुजरात में साबरमती के आसपास वाले बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया। ईडर के राठौड़ों के मूलपुरुष सोनिंग जी ही हैं।

सोनिंग जी व अज जी का वर्णन राव आस्थान जी के इतिहास में ही किया जाएगा। जोधपुर राज्य की ख्यात में इनके अलावा 2 अन्य पुत्रों भीम व रामसेन के नाम मिलते हैं व एक पुत्री रूपबाई का नाम मिलता है।

राव सीहा जी राठौड़

ख्यात के अनुसार रामसेन का देहांत जन्म के कुछ समय बाद व रूपबाई का देहांत बाल्यकाल में ही हो गया। बीकानेर के सिंढायच कवि दयालदास ने राव सीहा के 50 पुत्र होना लिखा है, जो कि अतिशयोक्ति मालूम होती है।

इस प्रकार राव सीहा राठौड़ ने अपने शौर्य व पराक्रम से मारवाड़ में राठौड़ वंश की स्थापना कर दी। फिर बाद में उनके वंशजों ने अपने अधिकृत भू-भाग को बढाने में योगदान दिया। राव सीहा के उत्तराधिकारी उनके ज्येष्ठ पुत्र राव आस्थान हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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