फरवरी, 1527 ई. – बयाना व खानवा के युद्धों के बीच में हुई लड़ाई :- अधिकतर लोग बयाना व खानवा के युद्धों के बारे में जानते हैं, परन्तु बयाना के युद्ध के बाद व खानवा के मुख्य युद्ध से पहले महाराणा सांगा व बाबर की सेनाओं के बीच एक और युद्ध हुआ था, जिसका वर्णन यहां किया जा रहा है।
महाराणा सांगा के ख़ौफ़ से बाबर द्वारा फतहपुर सीकरी की सुरक्षा बढ़ाना :- बयाना की लड़ाई में मुग़ल फ़ौज की करारी शिकस्त के बाद मुगलों में महाराणा सांगा के नाम का खौफ पैदा हो गया था। बाबर को भय था कि महाराणा सांगा कहीं मुगलों की प्यास बुझाने वाले जलस्रोतों पर अधिकार न कर ले।
बाबरनामा में बाबर लिखता है कि “हिन्दुस्तान में पानी की बड़ी कमी है, पर सीकरी में लश्कर को पानी मिलना आसान था। पर मुझको शक़ था कि राणा सांगा इस पानी पर कब्ज़ा कर लेगा, इस ख़ातिर मैंने मेहन्दी ख्वाजा, सुल्तान मिर्ज़ा, दरवेश मोहम्मद सारवान को एक फ़ौज समेत सीकरी में तैनात कर दिया”
महाराणा सांगा का बसावर के निकट पड़ाव :- बयाना की विजय से उत्साहित महाराणा सांगा ने बयाना से 10 मील दूर स्थित बसावर नामक स्थान पर पड़ाव डाला।
बेगमीरक नामक एक मुग़ल गुप्तचर ये ख़बर लेकर बाबर के पास आया, तो बाबर ने अपने सिपहसालारों को जगह-जगह तैनात करना शुरू कर दिया। इस दौरान बाबर की एक सैनिक टुकड़ी खानवा के मैदान में पहुंच गई।
महाराणा सांगा व मुग़ल फ़ौज के बीच लड़ाई :- बाबर का एक सेनापति अब्दुल अज़ीज 500 घुड़सवारों की फ़ौज लेकर खानवा के मैदान में जा पहुंचा। महाराणा सांगा को इस बात की ख़बर मिली, तो उन्होंने 5 हज़ार सैनिकों की फ़ौज रवाना की।
खानवा के मैदान में लड़ाई हुई, जिसमें अब्दुल अज़ीज की फ़ौज को हारने में अधिक वक़्त नहीं लगा। 500 मुगलों में से कई मारे गए और जो बच गए उनको क़ैद कर लिया गया।
इस लड़ाई में मुगलों की तरफ से मुल्ला न्यामत, मुल्ला दाऊद आदि सिपहसलार मारे गए। बाबर ने यह ख़बर सुनी तो अब्दुल अज़ीज की मदद ख़ातिर मोहब अली ख़लीफ़ा को एक फ़ौजी टुकड़ी समेत भेजा।
थोड़ी देर के बाद बाबर ने मुल्ला हुसैन को फ़ौजी टुकड़ी सहित भेजा। फिर भी बाबर को तसल्ली न हुई, तो उसने मोहम्मद अली को फ़ौजी टुकड़ी समेत भेजा।
इतने में महाराणा सांगा भी फ़ौज समेत पहुंच गए। मोहब अली ख़लीफ़ा के मामा ताहरपरी की नज़र महाराणा सांगा पर पड़ी, तो वह तलवार लेकर महाराणा की तरफ़ दौड़ा, पर राजपूतों द्वारा पकड़ा गया।
मोहम्मद अली सख़्त ज़ख्मी होकर घोड़े से गिर पड़ा, तो बालतू नाम का एक मुगल सैनिक उसको बचाकर भाग निकला। महाराणा सांगा ने अपनी फ़ौज सहित 1 कोस तक मुगलों का पीछा किया।
इस लड़ाई के बारे में लेनपूल लिखता है कि “राजपूतों की शूरवीरता और प्रतिष्ठा के स्वभाव, उन्हें साहस और बलिदान के लिए इतना उत्तेजित करते थे कि जिनका बाबर के अर्ध-सभ्य सिपाहियों की समझ में आना भी कठिन था”
मुगल बादशाह बाबर को ख़बर मिली कि महाराणा सांगा उसकी तरफ आ रहे हैं, तो वह जिरहबख्तर पहनकर तैयार हुआ और घोड़े पर बैठा।
बाबर ने अपने कुछ सैनिकों को कहा कि “मैं तो फ़ौज समेत राणा से लड़ने जाता हूं, तुम पीछे से तोपों को लेकर आओ”
महाराणा सांगा द्वारा मुगलों को 1 कोस तक खदेड़ दिया गया, तो महाराणा ने विचार किया कि अब बाबर की शक्ति क्षीण हो चुकी है, इसलिए वो इस वक़्त लड़ने नहीं आएगा।
ये विचार करके महाराणा सांगा मुगलों के झंडों को छीनकर व क़ैद किए गए मुगलों को साथ लेकर लौट गए। जब बाबर खानवा तक पहुंचा, तो उसे मालूम हुआ कि महाराणा सांगा फ़ौज समेत जा चुके हैं।
बाबर ने खुद को तसल्ली दी, क्योंकि वह जानता था कि इस वक्त महाराणा से लड़ाई होती, तो मुगलों की पराजय तय थी। महाराणा सांगा से यहां चूक हुई और बाबर को तैयारी का मौका मिल गया।
यहां सभी परिस्थितियां महाराणा सांगा के अनुकूल थीं। महाराणा सांगा की फ़ौज बाबर की फ़ौज से काफी ज्यादा थी, इस वक्त बाबर के पास तोपों की संख्या कम थी, बाबर के सैनिक बयाना की लड़ाई के बाद हतोत्साहित थे, महाराणा सांगा के सैनिक वीरता और उत्साह से ओतप्रोत थे।
यदि इसी समय महाराणा सांगा सीकरी पर आक्रमण कर देते, तो बाबर न केवल युद्ध में परास्त होता, बल्कि या तो वह मारा जाता या उसकी सैनिक शक्ति इतनी कम हो जाती कि वह दोबारा आक्रमण करने की स्थिति में नहीं रहता।
परन्तु हिंदुस्तान के भाग्य में कुछ और ही था। सम्भवतः इसीलिए कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि खानवा की लड़ाई में महाराणा सांगा की जगह उनके बड़े भाई उड़न पृथ्वीराज होते तो परिणाम कुछ और होता।
निसन्देह टॉड की बात सत्य है, क्योंकि पृथ्वीराज ऐसा सुनहरा अवसर कभी न छोड़ते। परन्तु इतिहास में ‘काश’ नहीं होता।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)