मारवाड़ नरेश राव रायपाल राठौड़

मारवाड़ नरेश राव रायपाल जी राठौड़ :- ये राव सीहा के पुत्र राव आस्थान के पुत्र राव धूहड़ के ज्येष्ठ पुत्र थे। ये मारवाड़ के राठौड़ वंश के चौथे शासक थे। 1309 ई. में अपने पिता राव धूहड़ के देहांत के बाद राव रायपाल जी का राज्याभिषेक हुआ।

बांकीदास री ख्यात में राव रायपाल को चौहानों का भाणेज लिखा गया है। राव रायपाल वीर होने के साथ-साथ उदार व दयालु स्वभाव के थे। मंडोर के पड़िहारों ने राव धूहड़ को मार दिया था।

राव रायपाल ने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए मंडोर पर आक्रमण करके पड़िहारों को परास्त किया, परंतु कुछ समय बाद पड़िहारों ने पुनः मंडोर पर अधिकार जमा लिया। इस तरह मंडोर को लेकर राठौड़ों व पड़िहारों में खींचातानी चलती रही।

ख्यातों में लिखा है कि राव रायपाल राठौड़ ने बाड़मेर पर आक्रमण करके परमारों को परास्त किया और वहां के 500 गांवों पर अधिकार करते हुए महेवा और उसके आसपास की भूमि छीन ली।

राव रायपाल राठौड़

कहीं-कहीं 560 गांव भी लिखे हैं। लेकिन डॉ. ओझा इस बात से असहमत हैं। उनका कहना है कि उस समय बाड़मेर पर परमारों का नहीं, बल्कि चौहानों का राज था।

राव रायपाल ने बुध शाखा के जैसलमेर के मांगा भाटी को तंग करके अपना चारण बना लिया। मांगा के पुत्र चंद हुए और चंद के वंशज रोहड़िया बारहट कहलाए। यह घटना कविराजा श्यामलदास, विश्वेश्वर नाथ रेउ आदि इतिहासकारों ने लिखी है।

कुछ पुस्तकों में मांगा भाटी की जगह चंद को ही चारण बनाना लिखा है। एक पुराने पद्य के अनुसार राव रायपाल ने चंद को 260 घोड़े व 60 हाथी भेंट किए।

हालांकि मेरी दृष्टि में इतने ज्यादा घोड़े-हाथी देने की बात अतिशयोक्ति ही है, क्योंकि यह मारवाड़ के शासकों के उत्थान का समय था, इस समयकाल तक भी उनके पास अधिक घोड़े-हाथी नहीं थे।

महीलेरण की उपाधि :- राव रायपाल राठौड़ के शासनकाल में खेड़ में भीषण अकाल पड़ा, तब अपनी प्रजा की दयनीय स्थिति को देखते हुए उन्होंने प्रजा में अनाज बंटवाया और अकाल के कोप को कम किया।

इस कारण उन्हें महीलेरण की उपाधि दी गई। महीलेरण का अर्थ होता है इंद्र। आशय ये था कि जिस प्रकार मेघ बारिश करके पृथ्वी को रेला देता है या पूर्ण कर देता है, वैसे राव रायपाल ने अन्न से प्रजा को तृप्त कर दिया।

पाबूजी को मारने वालों से प्रतिशोध लेना :- अपने चचेरे भाई व प्रसिद्ध लोकदेवता पाबूजी राठौड़ की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए राव रायपाल राठौड़ ने कुडल के स्वामी को परास्त किया। कुडल के स्वामी ने जीन्दराव खींची का साथ देते हुए पाबूजी को मारने में सहयोग किया था।

पाबूजी राठौड़

विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है कि पाबूजी की हत्या एक भाटी राजपूत के हाथों हुई थी, इसलिए राव रायपाल ने उस भाटी राजपूत को परास्त करके उसके इलाके को भी जीत लिया, जिसमें 84 गांव थे।

राव रायपाल का देहांत :- राव रायपाल के देहांत से संबंधित कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिल सकी है, फिर भी कुछ इतिहासकारों ने उनका सम्भावित देहांत वर्ष 1313 ई. माना है। इस तरह राव रायपाल का शासनकाल मात्र 4 वर्ष ही रहा।

राव रायपाल राठौड़ के 14 पुत्र हुए, जिनमें से 10 खापें निकलीं। राव रायपाल के पुत्र :- (1) कनपाल (2) छाजड़ (3) लाखण (4) राजो (5) बूला, जिनके वंशज बूला राठौड़ कहलाए। (6) सूंडा, जिनके वंशज सूंडा राठौड़ कहलाए।

(7) मोपा, जिनके वंशज मोपा राठौड़ कहलाए। (8) डागी, जिनके वंशज डागी राठौड़ कहलाए। (9) रांदा, जिनके वंशज रांदा राठौड़ कहलाए। (10) विक्रमादित्य, जिनके वंशज वीकमायत राठौड़ कहलाए।

(11) केलण, जिनके वंशज केलणोत कहलाए। केलण के पुत्र कोटेचा हुए और कोटेचा के वंशज कोटेचा राठौड़ कहलाए। (12) थांथी, जिनके पुत्र फिटक हुए और फिटक के वंशज फिटक राठौड़ कहलाए। (13) हसता, जिनके वंशज हतूंडिया राठौड़ कहलाए।

(14) मोहण/महण, जिनके वंशज मोहणिया राठौड़ कहलाए। मोहण के बारे में जोधपुर राज्य की ख्यात में लिखा है कि उनको जैसलमेर के भाटी शासक पकड़कर ले गए, क्योंकि भाटी राजपूत इस बात का बैर लेना चाहते थे कि उनके एक भाटी राजपूत को चारण बना दिया गया।

इसलिए मोहण का विवाह जैसलमेर के ही एक महाजन की पुत्री से करवा दिया गया, जिसके बाद उनके वंशज मुहणौत ओसवाल कहलाए।

जोधपुर राज्य की ख्यात में केलण का पुत्र थाथी को बताया गया है। दयालदास री ख्यात में राव रायपाल के पुत्रों के जो नाम दिए हैं, वे अन्य पुस्तकों से ज़रा भी नहीं मिल रहे, इसलिए उनके बारे में यहां नहीं लिखा जा रहा है।

मारवाड़ के राठौड़ वंश का राज्यचिह्न

मुहणौत नैणसी ने राव रायपाल द्वारा जैसलमेर के रावल जैसल की पुत्री रत्ना कंवर भटियाणी से विवाह करना लिखा है, लेकिन ये गलत है क्योंकि राव रायपाल 14वीं सदी के शासक थे और रावल जैसल 12वीं सदी के।

जिस समय खेड़ पर राव रायपाल राठौड़ का शासन था, उस समय उनके पड़ोसी राज्य जालोर पर वीर कान्हड़दे सोनगरा का शासन था। वर्ष 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर दुर्ग जीत लिया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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