मारवाड़ नरेश राव धूहड़ राठौड़

राव धूहड़ राठौड़ :- राव सीहा के पुत्र राव आस्थान हुए और राव आस्थान के पुत्र राव धूहड़ हुए। राव धूहड़ का नाम कहीं-कहीं राव दूहड़ भी लिखा हुआ मिलता है, परन्तु सही नाम राव धूहड़ ही है।

1291 ई. में राव धूहड़ का राज्याभिषेक हुआ। इस समय तक मारवाड़ में राठौड़ वंश का अधिकार केवल पाली व उसके आसपास के इलाकों पर ही स्थापित हुआ था।

राव धूहड़ भी अपने पूर्वजों की भांति ही वीर थे। राव धूहड़ राठौड़ ने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने के प्रयास किए और अपने आसपास के 140 गांवों पर भी अधिकार कर लिया।

कुलदेवी की स्थापना :- राव धूहड़ के समय जो सबसे महत्वपूर्ण घटना घटित हुई, वह चक्रेश्वरी माता की मूर्ति की स्थापना पचपदरा-बाड़मेर में स्थित नागाणा गांव में की गई।

कुलदेवी मां नागणेच्या जी

इस समय से इन माताजी का नाम नागणेच्या जी हो गया। राठौड़ वंश ने इन माताजी को अपनी कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया। मारवाड़ के प्रसिद्ध शासक राव जोधा जी के समय एक ताम्रपत्र से इस संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।

ताम्रपत्र के अनुसार राव धूहड़ के समय लुम्ब नामक एक ऋषि चक्रेश्वरी माता की मूर्ति लेकर मारवाड़ आए। इसके बाद चक्रेश्वरी माता ने नाग के रूप में राव धूहड़ को दर्शन दिए, जिसके बाद राव धूहड़ ने इनकी मूर्ति को नागणेच्या जी के नाम से नागाणा गांव में मंदिर बनवाकर स्थापित किया।

इस सेवा के बदले में राव धूहड़ ने लुम्ब ऋषि को अपना पुरोहित बनाकर इस विषय का ताम्रपत्र लिख दिया। फिर राव जोधा के समय इन पुरोहित के वंशज को भी इसी आशय का एक ताम्रपत्र लिखकर दे दिया गया।

ऐसी मान्यता है कि मां नागणेच्या जी ने कुछ दिन तक नीम के वृक्ष में निवास किया था, इसलिए राठौड़ नीम के वृक्ष को पूज्य समझते हैं और उसे काटते नहीं हैं।

नागाणा में जो राठौड़ कुलदेवी मां नागणेच्या जी की पूजा करते हैं, वे ‘नागणेचिया राठौड़’ कहलाते हैं। उन्हें पीढ़ियों से माताजी की पूजा का अधिकार प्राप्त है और वंशानुगत रूप से यह परंपरा चली आ रही है।

देहांत :- राव धूहड़ का देहांत विक्रम संवत 1366 (1309 ई.) को पचपदरा के तीरसिंगड़ी गांव में हुआ। इस गांव का नाम कहीं-कहीं तरसींगड़ी व तिगड़ी भी लिखा है। यहां राव धूहड़ की देवली (स्मारक) स्थित है, जहां उनके देहांत का वर्ष खुदा हुआ है।

राव धूहड़ राठौड़

कर्नल जेम्स टॉड ने राव धूहड़ का देहांत मंडोर में होना लिखा है, जो कि गलत है। क्योंकि शिलालेख से प्रमाणित हो चुका है कि उनका देहांत तीरसिंगड़ी गांव में ही हुआ था।

बांकीदास री ख्यात में राव धूहड़ का पड़िहारों की बजाय चौहानों से लड़ते हुए वीरगति पाना लिखा है, जो तर्कसंगत नहीं लगता। विश्वेश्वर नाथ रेउ का लिखा हुआ ठीक प्रतीत होता है। वे लिखते हैं कि

“राव धूहड़ ने पड़िहारों को परास्त करके मंडोर पर विजय प्राप्त कर ली, परन्तु कुछ ही समय बाद पड़िहारों ने पुनः मंडोर को राठौड़ों से छीन लिया। राव धूहड़ ने इस पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए दोबारा मंडोर की तरफ कूच किया, लेकिन मार्ग में थोभ व तीरसिंगड़ी गांवों के बीच में पड़िहारों से हुई लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो गए।”

मुंशी देवीप्रसाद ने राव धूहड़ के 9 पुत्रों का उल्लेख किया है, जिनके नाम कुछ इस तरह हैं :- रायपाल, चंद्रपाल, शिवपाल, जीवराज, भीमराज, मनोहरदास, मेघराज, सावंतसिंह, सूरसिंह। चंद्रपाल के वंशज बीलाड़ा के दीवान रहे।

राव धुहड़ जी

एक अन्य ख्यात में धूहड़ जी के 7 पुत्रों के नाम कुछ इस तरह मिलते हैं :- रायपाल, बेहड़, पीथड़, खेतपाल, ऊनड़, जोगो, चंद्रपाल।

इस ख्यात के अनुसार वेहड़ के वंशज वेहड़ राठौड़, पीथड़ के वंशज पीथड़ राठौड़, खेतपाल के वंशज खेतपाल राठौड़, जोगा के वंशज जोगावत राठौड़ व ऊनड़ के वंशज ऊनड़ राठौड़ कहलाए।

बांकीदास री ख्यात में राव धूहड़ के 6 पुत्रों के नाम लिखे गए हैं, जो इस तरह हैं :- रायपाल, जोगा, वेगड़, जालू, कीतपाल, पेथड़।

जोधपुर शहर

राव धूहड़ ने करीब 17-18 वर्ष तक शासन किया। जो भूमि उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली, उस पर अपना अधिकार बनाए रखने में वे सफल रहे व इसके अलावा भी खेड़ के राज्य में 140 गांव जीतकर मिलाना सिद्ध करता है कि

उनका शासन राठौड़ वंश हेतु अच्छा ही साबित हुआ। उनके ज्येष्ठ पुत्र राव रायपाल राठौड़ उनके उत्तराधिकारी हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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