पाबूजी का वंश परिचय :- मारवाड़ के राठौड़ वंश के संस्थापक राव सीहा जी हुए। राव सीहा जी के पुत्र राव आस्थान जी हुए। राव आस्थान जी के एक पुत्र धांधल जी हुए। धांधल राठौड़ के 3 पुत्र हुए :- पाबूजी, बूडा और ऊदल।
पाबूजी मारवाड़ के प्रसिद्ध लोकदेवता हुए। पाबूजी का जन्म कोलू में हुआ। पाबूजी की माता का नाम कमलादे व पत्नी का नाम फूलमदे सोढा था। पाबूजी की बहन का नाम पेमल था, जिनके पति जीन्दराव खींची थे।
पाबूजी बड़े ही वीर व दृढ़प्रतिज्ञ थे। पाबूजी की घोड़ी का नाम केसर कालमी था। पाबूजी को गौ रक्षक, प्लेग रक्षक व लक्ष्मण का अवतार भी कहा जाता है।
पाबूजी का इतिहास :- विश्वेश्वर नाथ रेउ ने पाबूजी का इतिहास कुछ इस तरह लिखा है :- “एक बार जायल (नागौर प्रांत) के स्वामी जीन्दराव खींची ने ऊदा चारण से एक घोड़ी मांगी, परन्तु ऊदा चारण ने वह घोड़ी जीन्दराव खींची को न देकर पाबूजी को दे दी।
इस बात से जीन्दराव को बड़ा क्रोध आया। एक दिन पाबूजी उमरकोट (वर्तमान अमरकोट) में सोढा परमारों के यहां विवाह करने के लिए जा रहे थे। उस समय जीन्दराव खींची ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए ऊदा चारण की गायें छीन लीं।
फिर ऊदा चारण की स्त्री देवल ने पाबूजी से सहायता मांगी। पाबूजी इस समय विवाह मंडप में थे, जहां उनका विवाह सुप्यारदे सोढा से हो रहा था। फिर भी देवल की विनती सुनकर फौरन मदद के लिए चल दिए।
मार्ग में उन्होंने अपने भाई बूडा को भी साथ ले लिया। जीन्दराव खींची से लड़ाई हुई, जिसमें पाबूजी व बूडा दोनों ने वीरगति पाई। इस समय बूडा की पत्नी को गर्भ था। इनको एक पुत्र हुआ, जिनका नाम झरड़ा रखा गया।
कुछ वर्ष बाद झरड़ा ने जीन्दराव खींची को मारकर अपने पिता व काका की हत्या का प्रतिशोध लिया। मारवाड़ में अब तक पाबूजी व झरड़ा की पूजा होती आ रही है।
कोलू (फलौदी प्रांत) में पाबूजी का मंदिर स्थित है, जहां सबसे पुराना शिलालेख 1358 ई. का है। इस शिलालेख में सोहड़ द्वारा पाबूजी का मंदिर बनवाने का उल्लेख किया गया है।”
यह उपर्युक्त वर्णन विश्वेश्वर नाथ रेउ का लिखा है, जिसके कुछ अंश से मैं सहमत नहीं हूं। मुसीबत आने पर अचानक ऊदा चारण की पत्नी का उमरकोट जाना व वहां से पाबूजी का तुरंत आना सम्भव नहीं लगता।
इसलिए इस बारे में मुहणौत नैणसी ने जो लिखा है, वह उचित प्रतीत होता है। नैणसी ने बूडा के इस लड़ाई में नहीं लड़ने का वर्णन किया है। नैणसी के अनुसार पाबूजी सोढा राजपूतों के यहां विवाह करके पुनः जोधपुर की तरफ लौट रहे थे।
इसी दौरान रात्रि के समय जीन्दराव खींची ने ऊदा चारण की गायें छीन लीं। इस समय तक पाबूजी अपने महल में लौट चुके थे। चारणों के एक समूह ने बूडा और पाबूजी के महलों के बाहर मदद की गुहार लगाई।
बूडा तो महल से नीचे नहीं उतरा, पर पाबूजी तुरंत महल से नीचे उतरे। जीन्दराव खींची कुंडल, कम्मा धारधार आदि को साथ लेकर पाबूजी पर चढ़ आया। लड़ाई हुई, जिसमें पाबूजी ने वीरगति पाकर अपना नाम अमर कर लिया।
पाबूजी ने ढेंचू गांव (जोधपुर) में वीरगति प्राप्त की। इस वीरतापूर्ण कार्य के लिए वे देवताओं की तरह पूजे जाते हैं। पाबूजी लोकदेवताओं में भी सबसे प्रसिद्ध लोकदेवता में से एक हैं।
ऊंटों के देवता :- पाबूजी को ऊंटों का देवता भी कहा जाता है, क्योंकि ऊंटों के बीमार होने पर पाबूजी की पूजा की जाती है। ऊंटपालक जाति रायका या रेबारी पाबूजी को अपना आराध्यदेव मानती है।
मेहर जाति के मुस्लिम पाबूजी को पीर मानते हैं। थोरी व भील जातियां भी पाबूजी को काफी मानती हैं। कहते हैं कि पाबूजी ने थोरी जाति के बहिष्कृत लोगों को आश्रय दिया था।
थोरी जाति एक गीत का गायन करती है, जिसका नाम ‘पाबू धणी री वाचना’ है। इसके गायन के समय सारंगी बजाई जाती है।
पाबूजी का पैनोरमा :- कोलू फलौदी में पाबूजी से संबंधित चित्रों व जानकारियों का संग्रह करने के बाद यहां एक पैनोरमा की स्थापना की गई है, जहां लोग पाबूजी की जीवनी चित्रों के माध्यम से देख सकते हैं।
पाबूजी की फड़ :- राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कपड़ों पर विशेष चित्रकारी की जाती है, जिसे ‘फड़’ कहा जाता है। इस चित्रकारी के लिए यहां का जोशी परिवार विख्यात है। पाबूजी की फड़वाचन के समय रावणहत्था नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
सभी प्रकार की फड़ में से पाबूजी की फड़ सर्वाधिक लोकप्रिय है। जैसलमेर के कारियाप गांव में तो पाबूजी की फड़ वाचन के लिए अलग से मेला लगता है। भोपे पाबूजी की फड़ गाते हैं।
पाबूजी की स्मृति में थाली नृत्य भी किया जाता है। कोलू गांव में पाबूजी की याद में चैत्र अमावस्या को मेला भरता है। पाबूजी को समर्पित एक ग्रंथ ‘पाबू प्रकाश’ की रचना आशिया मोड़ जी ने की थी।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Pabu ji maharaj ne apni shadi k 3rd fere complete hone k baad us lady ki help ki thi or phir veergati ko prapt kr liya ..
Isliye pabu ji maharaj ko jo log maannte hain wo apni shadi m sirf 3 fere hi lete hain … Ye sb mane ek New paper ki cutting m pda tha
🙏🙏
Sir ढेचू नही देचू गाँव है