राव आस्थान जी :- मारवाड़ के राठौड़ वंश के मूलपुरुष राव सीहा जी के ज्येष्ठ पुत्र राव आस्थान जी हुए। राव आस्थान का अन्य नाम अश्वत्थामा भी है।
इतिहासकार विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार राव सीहा के देहांत के समय उनकी आयु 80 वर्ष थी, लेकिन मुहणौत नैणसी की दृष्टि में ऐसा नहीं था।
मुहणौत नैणसी अपनी ख्यात में लिखते हैं कि “राव सीहा देवलोक पहुंचा, तब उसकी चावड़ी रानी अपने तीनों पुत्रों (आस्थान, सोनिंग व अज) को साथ लेकर अपने पीहर जा रहीं। काल पाकर वे जवान हुए और चौगान खेलने जाने
लगे। एक दिन खेलते-खेलते उनकी गेंद किसी बुढ़िया के पैरों में जा लगी, जो वहां कंडे चुन रही थी। एक कुँवर गेंद लेने गया और बुढ़िया से कहा कि गेंद दो। बुढ़िया के सिर पर भार था, उसने कहा कि तुम खुद ही ले लो। इस पर

कुँवर ने क्रोध किया, तो बुढ़िया ने कहा कि हमारे ही घर में पाले-पोसे गए और हम ही पर बिगड़ते हो, तुम्हारे तो कोई ठौर है नहीं। यह ताना सुनकर जब कुँवर घर आए और अपनी माता से पूछा कि हमारे पिता कौन हैं, हमारा देश
(राज्य) कौनसा है और हम किसके यहां पल रहे हैं। माता ने टालने की चेष्टा की, पर कुँवर नहीं माने। तब माता ने बताया कि तुम अपने नाना के यहां पल रहे हो। कुँवर आस्थान अपने मामा के पास गए और उनसे विदा मांगी।
मामा ने बहुत प्रयास किया उन्हें रोकने का, पर कुँवर न माने। कुँवर विदा लेकर ईडर गए और फिर वहां से पाली पहुंचे। वहां कन्ह नाम का मेर शासक था, जो प्रजा से कर भी लेता था और ब्राह्मणों के साथ अनैतिक व्यवहार भी
करता था। आस्थान ने उसे मारकर 84 गांवों सहित पाली पर अधिकार कर लिया। साथ ही उसने भाद्राजूण की चौरासी भी जा दबाई। (अर्थात भाद्राजूण के 84 गांवों पर भी अधिकार कर लिया)।”
जोधपुर की ख्यात में लिखा है कि “जब राव आस्थान ने पाली में एक तालाब के किनारे डेरा लगाया, तब उनके पास 60-70 घोड़े और इतने ही आदमी थे। वहां के लोगों ने उनसे कहा कि आप यहां डेरे मत लगाइए, क्योंकि रात को यहां लुटेरे आते हैं, वे आपको भी लूट लेंगे, इसलिए
आप पाली नगर में आ जाइए। राव आस्थान ने कहा कि आप हमारी चिंता न करें, हम राजपूत हैं, लुटेरे हमारा क्या बिगाड़ेंगे। राव आस्थान ने वहीं तालाब किनारे डेरे जमाए रखे। रात के वक्त लुटेरों ने हमला किया, तो राव आस्थान
पहले ही सतर्क थे। उन्होंने और उनके आदमियों ने भी जमकर लड़ाई लड़ी। लुटेरे परास्त हुए, कई मारे गए व कुछ भागने में सफल रहे। राठौड़ों ने लुटेरों के 30-40 घोड़े अपने कब्जे में ले लिए। प्रातःकाल नगर के लोगों ने आकर देखा, तो लुटेरों की लाशें देखकर दंग रह गए। इस घटना

से नगर के लोगों को विश्वास हो गया कि ये किसी बड़े राजघराने के बलिष्ठ राजपूत हैं। नगर निवासियों ने इनसे पूछा कि आप कौन हैं, कहाँ से आए हैं, तब राव आस्थान ने कहा कि हमारे पिता राव सीहाजी ने इसी भूमि पर अपना अधिकार स्थापित किया था। राव आस्थान की बात
सुनकर नगर के निवासी प्रसन्न हो गए। उन्होंने रावजी से कहा कि अगर आप इन लुटेरों से हमारी रक्षा करें, तो हम आपको सैन्य निर्वाह हेतु खर्च देना तय करते हैं। इस तरह राव आस्थान और उनके साथी राजपूतों ने पाली नगर में रहना शुरू किया।”
राव आस्थान ने जब पाली पर अधिकार किया, तब उन्होंने वहां से 5 कोस दक्षिण में स्थित गूंदोज नामक स्थान को अपना निवास स्थान बनाया। राव आस्थान के समय खेड़ राज्य में 340 गांव हुआ करते थे। खेड़ को भिरड़कोट भी कहा जाता था।
मुहणौत नैणसी अपनी ख्यात में लिखते हैं कि “उन दिनों खेड़ में गुहिल राज करते थे। उनका प्रधान एक डाभी राजपूत था। किसी कारणवश प्रधान और उसके भाई-बन्धु गोहिलों से अप्रसन्न होकर खेड़ से चल दिए और आस्थान का राज्य बढ़ता हुआ देखकर उन्होंने विचार किया कि
इन राठौड़ों से गोहिलों को मरवाया जावे। उन्होंने आस्थान के पास जाकर सारी बात बताई और कह दिया कि हम जब तुम्हें सूचना दें, तब तुम गोहिलों पर चूक (आक्रमण) करना। दूसरी तरफ गोहिलों ने भी विचार किया कि राठौड़ों
द्वारा पड़ोस में आकर राज्य निर्माण करना उचित नहीं, इन्हें किसी तरह यहां से हटाना चाहिए। मित्रता करने के लिए उन्होंने राव आस्थान के पास डाभी राजपूत को भेजा और भोजन पर आमंत्रित करने के लिए कहा। डाभी राजपूत ने आस्थान से सारी बात तय कर दी और

गोहिलों से आकर कहा कि हम आपके चाकर हैं, आप दाहिनी तरफ रहना, हम बाई तरफ खड़े रहेंगे। (जब राव आस्थान राठौड़ों सहित वहां आए, तब डाभी और गुहिल राजपूतों में फ़र्क़ करना मुश्किल था।) डाभी ने कहा कि
‘डाभी डावै, गोहिल जीमणै’। (अर्थात बाई तरफ डाभी राजपूत हैं व दाहिनी तरफ गुहिल हैं)। यह सुनकर राठौड़ गोहिलों पर टूट पड़े और उनको मार गिराया और खेड़ का राज्य लेकर आस्थान ने वहां अपनी राजधानी स्थापित की, जिससे उनके वंशज ‘खेड़ेचा’ प्रसिद्ध हुए।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)