मेवाड़ महाराणा फतहसिंह (भाग – 7)

मई, 1929 ई. – महाराणा का देहांत :- महाराणा फतहसिंह को दिल की बीमारी थी, जो कुम्भलगढ़ दुर्ग में रहने के दौरान बढ़ गई। फिर महाराणा उदयपुर लौट आए, जहां यह बीमारी दिन-दिन बढ़ती ही गई।

15 दिन तक महाराणा बीमार रहे और फिर 24 मई, 1930 ई. को महाराणा फतहसिंह का देहांत हो गया। इन महाराणा का शासनकाल मेवाड़ में दूसरा सर्वाधिक (46 वर्ष) रहा। (महाराणा भीमसिंह का शासनकाल लगभग 50 वर्ष रहा था)

महाराणा फतहसिंह ने 80 वर्ष की आयु पूरी की, जो अनुमानित रूप से मेवाड़ के किसी भी शासक ने पूरी नहीं की। संभवतः महाराणा लाखा इनकी उम्र के नज़दीक रहे होंगे।

लॉर्ड कर्ज़न पर महाराणा फतहसिंह के व्यक्तित्व का प्रभाव :- हिंदुस्तान का वायसराय लॉर्ड कर्ज़न सर वाल्टर लॉरेंस के साथ उदयपुर आया। वाल्टर लॉरेंस अपनी किताब ‘The India we served’ में लिखता है :-

महाराणा फतहसिंह

“लॉर्ड कर्ज़न मुझसे अक्सर कहा करता था कि तुममें लोगों को पहचानने की तमीज़ नहीं है, जिन्हें तुम अक्लमंद समझते हो, वे बेवकूफ निकलते हैं। यह कहकर लॉर्ड कर्ज़न मेरी हंसी उड़ाया करता था, पर जब हम दोनों उदयपुर गए और लॉर्ड कर्ज़न मेवाड़ के महाराणा फतहसिंह से मिला,

तब मुझे लॉर्ड कर्ज़न की शक्ल देखकर बहुत खुशी हुई, क्योंकि जिस व्यक्ति पर किसी की शक्ल सूरत का कोई असर नहीं होता था, उस पर भी महाराणा की चित्ताकर्षक आकृति का प्रभाव पड़े बिना न रहा। उसने महाराणा से ना तो शासन संबंधी प्रश्न किए, ना उनकी त्रुटियां बताई और ना सुधार तजवीज़ किए”

महाराणा फतहसिंह द्वारा करवाए गए सुधार कार्य :- जो सरदार अय्याशी व शराबखोरी में पड़कर अपने ही ठिकाने बर्बाद करते थे, उन्हें सही मार्ग पर लाने के लिए महाराणा ने प्रयास किए। मेवाड़ लांसर्स नामक रिसाला कायम किया।

महलों में बिजली की रोशनी व पानी के नल की व्यवस्था कायम की। बहुविवाह प्रथा और बाल विवाह पर रोक लगाने व दहेज प्रथा को कम करने के प्रयास किए। तेजसिंह मेहता को कुम्भलगढ़ व सायरा क्षेत्र का हाकिम नियुक्त किया।

दान-पुण्य के कार्य :- 1 लाख 50 हजार रुपए हिन्दू विश्वविद्यालय हेतु भेंट किए। 1 लाख 50 हजार रुपए मेयो कॉलेज (अजमेर) हेतु भेंट किए। 1 लाख 50 हजार रुपए भारत धर्म महामंडल (काशी) हेतु भेंट किए।

महाराणा फतहसिंह द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- 47 प्रारंभिक पाठशालाएं, मिंटो दरबार हॉल, विक्टोरिया हॉल, चित्तौड़ से उदयपुर तक रेलवे लाइन, उदयपुर से जयसमन्द तक सड़क, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सनवाड़, टीडी, बारापाल में पक्की सराय बनवाई।

महाराणा फतहसिंह

शिवनिवास महल :- इस महल का निर्माण महाराणा सज्जनसिंह ने शुरू करवाया व पूरा महाराणा फतहसिंह ने करवाया। इस अर्धचंद्राकार महल में रंग-बिरंगे शीशे की पच्चीकारी का काम दर्शनीय है।

सज्जनगढ़ दुर्ग :- इस प्रसिद्ध दुर्ग का एक हिस्सा महाराणा सज्जनसिंह ने बनवाया व शेष समस्त हिस्सा महाराणा फतहसिंह ने बनवाया। इस दुर्ग का अधिकतर हिस्सा अपने द्वारा बनवाने के बावजूद महाराणा फतहसिंह ने इसका नाम अपने नाम पर नहीं रखा।

कुम्भलगढ़ दुर्ग में महल :- कुंभलगढ़ जैसे विशाल दुर्ग में रहने के लिए उचित कमरे नहीं थे, जिस वजह से महाराणा ने वहां कमरे बनवाए।

शिकार ओदियाँ :- महाराणा फतहसिंह शिकार के बहुत शौकीन थे। उन्होंने शिकार के लिए बहुत सी ओदियाँ (shooting boxes) बनवाई। एक खास ओदी में एक छोटा महल भी बनवाया।

जयसमन्द झील के बाँधों के बीच भराव का काम :- यह काम महाराणा सज्जनसिंह ने शुरू करवाया। महाराणा फतहसिंह ने इस कार्य का शेष 1/3 हिस्सा करवाया।

केनोट बांध व फतहसागर झील :- यह झील मुख्य रूप से महाराणा जयसिंह ने बनवाई थी। महाराणा फतहसिंह ने केनोट बांध का निर्माण करवाकर झील की पाल की मरम्मत करवाई। महाराणा ने फतहसागर समेत अन्य कई तालाबों की मरम्मत करवाई, जिनमें 50 लाख रुपए खर्च हुए।

महलों की मरम्मत व चिकित्सा संबंधी कार्य :- जयसमन्द झील किनारे स्थित हवामहल व रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध महलों की मरम्मत, चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जैन कीर्ति स्तम्भ की मरम्मत, उदयपुर में हाथीपोल दरवाज़े के भीतर एक अस्पताल, जनाना हॉस्पिटल के लिए नई इमारत का निर्माण।

महाराणा फतहसिंह का परिवार :- महाराणा फतहसिंह बहुविवाह प्रथा से घृणा करते थे। इन महाराणा ने दूसरा विवाह तभी किया, जब पहली महारानी सा का देहांत हुआ। इन महाराणा की 2 रानियां थीं :-

1) महारानी फूल कंवर जी :- ये मारवाड़ के ठिकाने खोड़ की राजकुमारी थीं। महाराणा फतहसिंह का विवाह इनसे 1867 ई. में हुआ। 1877 ई. में इन महारानी सा का देहांत हो गया।

2) महारानी बख्तावर कंवर जी :- ये कलड़वास के ठाकुर जालिमसिंह चावड़ा के पुत्र कोलसिंह की पुत्री थीं। महाराणा फतहसिंह का विवाह इनसे 1878 ई. में हुआ।

महाराणा फतहसिंह

इन दोनों रानियों से महाराणा के 5 पुत्रियां व 3 पुत्र हुए, जिनमें से महाराणा फतहसिंह के देहांत के समय केवल एक पुत्र व एक पुत्री जीवित रहे। पुत्र :- (1) महाराजकुमार भूपालसिंह जी, जो कि अगले महाराणा बने। (2) नाम अज्ञात :- बचपन में देहांत (3) नाम अज्ञात :- बचपन में देहांत।

पुत्रियां :- (1) नाम अज्ञात :- बचपन में देहांत (2) नाम अज्ञात :- बचपन में देहांत (3) नाम अज्ञात :- इनका विवाह कोटा के महाराव उम्मेदसिंह से हुआ। (4) राजकुमारी आँकरन बाई :- इनका विवाह 1904 ई. में किशनगढ़ महाराजा मदनसिंह से हुआ।

5) राजकुमारी किशोर कंवर :- इनका विवाह 1908 ई. में जोधपुर के महाराजा सरदारसिंह राठौड़ से हुआ। इन राजकुमारी का देहांत 1924 ई. में हुआ।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Muhammad
    February 17, 2022 / 3:36 pm

    Maharana Shri Fateh Singhji ki putri Bada Baijilal Saheba jinka vivah KOTA Ke Maharaj Maharao Shri Umaid Singhji II ke sath hua tha unka nam tha Rajkumari Shri Nand Kanwarji

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