महाराणा भूपालसिंह का जन्म परिचय :- इन महाराणा का जन्म 22 फरवरी, 1884 ई. को हुआ। इनके पिता महाराणा फतहसिंह थे व माता महारानी बख्तावर कंवर जी थीं, जो कि कलड़वास के ठाकुर जालिमसिंह चावड़ा के पुत्र कोलसिंह की पुत्री थीं।
1900 ई. – रीढ़ की बीमारी :- 16 वर्ष की आयु में महाराजकुमार भूपालसिंह को रीढ़ की बीमारी हुई, जिसका असर पैरों तक पहुंच गया, जिससे चलना-फिरना भी बंद हो गया। बड़े-बड़े वैद्यों व डॉक्टरों ने चिकित्सा आरंभ की।
दान-पुण्य में हज़ारों रुपए खर्च किए गए, स्वर्ण का तुलादान भी किया गया। लगातार 2 वर्षों तक चिकित्सा जारी रही, जिससे इनकी हालत में सुधार हुआ, लेकिन फिर भी एक पैर कमज़ोर रह गया।
KCIE का ख़िताब :- जून, 1919 ई. को महाराजकुमार भूपालसिंह को KCIE का ख़िताब मिला। राजपूताने में महाराजकुमार को ऐसी उपाधि मिलने का यह पहला अवसर था।
28 जुलाई, 1921 ई. – कार्यभार संभालना :- मेवाड़ के किसानों में असंतोष के कारण व अपनी बुज़ुर्गी के चलते महाराणा फतहसिंह ने मुख्य अधिकार अपने हाथों में रखते हुए शेष समस्त अधिकार 36 वर्षीय महाराजकुमार भूपालसिंह को सौंप दिए।
13 अगस्त, 1921 ई. को अधिकार मिलते ही महाराजकुमार भूपालसिंह ने राज्य शासन में आवश्यक सुधार करने व गरीब किसानों की तकलीफें मिटाने के लिए एक इश्तहार जारी किया।
प्रजा पर उस इश्तहार का काफी असर हुआ और उन्हें विश्वास हुआ कि अब हमारी फरियाद सुनी जाएगी। महाराजकुमार भूपालसिंह द्वारा, शासन व्यवस्था में जो सुधार किए गए, वे कुछ इस तरह थे :-
महाराजकुमार भूपालसिंह ने महद्राजसभा में सुयोग्य व अनुभवी पुरुषों को नियुक्त कर उसका सुप्रबंध किया व सदस्यों की संख्या बढ़ाई, जिससे उसका कार्य सुचारू रूप से होने लगा और बहुत सा बाकी पड़ा काम पूरा हो गया।
राज्य के आय-व्यय का वार्षिक बजट तैयार करने की आज्ञा दी। राज्य के लगभग सब विभागों की नई व्यवस्था की, जिससे आय में काफी वृद्धि हुई।
कम ब्याज पर किसानों को कर्ज़ देने के लिए ‘कृषि सुधार’ नाम का फंड खोला गया, जिससे अधिक ब्याज पर महाजनों से सूद लेने की आवश्यकता लगभग समाप्त हो गई।
बहुत सी छोटी लागतें, जिससे प्रजा को कष्ट होता था, माफ़ कर दी गई। मेवाड़ में भीतरी व्यापार के लिए ‘मापा’ नामक कर लगता था, जिससे राज्य को 1 लाख रुपए की आय होती थी, यह कर ख़त्म कर दिया गया।
बकाया मालगुज़ारी के लिए लिया जाने वाला कर आधा कर दिया गया। किसान कृषि हेतु पुरानी रीति का प्रयोग करते थे, जिन्हें वैज्ञानिक ढंग से कृषि करने हेतु प्रोत्साहित किया गया व इस कार्य के लिए उदयपुर में कृषि फार्म हाउस खोला गया।
व्यापार के प्रमुख केंद्र भीलवाड़ा में ‘भूपालगंज’ नामक मंडी बनाई गई। बिना लाइसेंस के शराब की भट्टियां खोलने, बिक्री के लिए अफ़ीम व गांजा पैदा करने, आमतौर से अफ़ीम व भांग बेचने पर रोक लगा दी गई।
लोगों में शराब, अफ़ीम आदि व्यसनों की लत कम कराने के लिए ‘मादक प्रचार सुधारक संस्था’ की स्थापना की गई। मावली से मारवाड़ जंक्शन तक रेलवे लाइन बढ़ाने का काम शुरू किया गया।
सेठ चंपालाल को ठेके पर दिए गए कारखाने महाराजकुमार ने ठेके की अवधि पूरी होने पर अपने अधिकार में ले लिए। छोटी सादड़ी व चित्तौड़ में नए कारखाने खोले गए।
उदयपुर शहर में सफाई व बिजली व्यवस्था सुनियोजित ढंग से की गई। दवाखाने खोले गए। विद्यार्थियों को हाईस्कूल की पढ़ाई होने के बाद बाहर जाना पड़ता था, इसलिए मेवाड़ में ही कॉलेज की स्थापना की गई।
भूपाल नोबल स्कूल खोला गया, जिसके लिए 1 लाख रुपए व एक बड़ा मकान मुहैया करवाया गया। यहां उन छोटे सरदारों के लड़के पढ़ते थे, जो अजमेर के मेयो कॉलेज का खर्च नहीं उठा सकते थे। यह आज बीएन कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध है।
5 लाख रुपए जिला स्कूलों के निर्माण व अध्यापकों की भर्ती में लगाए गए। कन्याओं की शिक्षा हेतु 3 प्राइमरी स्कूल खोले गए। नाबालिगों व कर्ज़दार जागीरदारों की जागीरों के समुचित प्रबंध के लिए शिशुहितकारिणी सभा का गठन किया गया।
जंगलों की पैमाइश का काम शुरू किया गया। कुंओं से सींची जाने वाली ज़मीन के हासिल के लिए नए नियम बनाये गए। जिन लोगों ने चोरी को ही पेशा बना लिया था, उन्हें खेती के काम में लगाकर चोरी चकारी छुड़वा दी गई।
राज्य के खनिज पदार्थों की जांच किए जाने की आज्ञा दी गई। मावली से नाथद्वारा, उदयपुर से ऋषभदेव व खेरवाड़ा व कुछ अन्य स्थानों पर मोटर चलाने की आज्ञा दी गई। उदयपुर में अदालत मुंसिफी व मजिस्ट्रेटी की स्थापना हुई।
विचाराधीन क़ैदियों से जो ख़ुराक ख़र्च लिया जाता था, वह बंद कर दिया गया। क़ैदियों के लिए खोड़े (कैदी भाग न जाए, इसलिए उसके पैर काठ में डालने) की प्रथा बन्द कर दी गई। वकालत की परीक्षा होने और परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों को प्रमाणपत्र दिए जाने की व्यवस्था क़ायम की गई।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)