बागोर के महाराज शक्तिसिंह का देहांत :- 14 अगस्त, 1889 ई. को बागोर के महाराज शक्तिसिंह (स्वर्गीय महाराणा सज्जनसिंह के पिता) के निसंतान देहांत होने पर महाराणा फतहसिंह ने उनकी जागीर अपने अधिकार में ले ली।
1890 ई. – ऋण का निपटारा :- महाराणा स्वरूपसिंह के शासनकाल में मेवाड़ पर 20 लाख रुपए का कर्ज़ था, जिसमें से अधिकतर सेठ जोरावरमल का था। उन्होंने मेवाड़ की बड़ी सहायता की थी। इस ख़ातिर महाराणा फतहसिंह उनकी हवेली पर पधारे और कर्ज़ का निपटारा करने की बात कही।
सेठ ने कहा कि आप जैसे चाहें उस तरह से कर्ज का भुगतान करें। महाराणा ने सेठ से खुश होकर उनको कुंडाल गांव भेंट किया। साथ ही महाराणा ने सेठ के पुत्र व पौत्रों की प्रतिष्ठा भी बढ़ाई।
जुहारमल से गांव ज़ब्त करना :- चित्तौड़गढ़ का रेलवे स्टेशन उदयपुर से करीब 69 मील दूर था, जिससे मुसाफिरों को वहां तक पहुँचने में काफी दिक्कत होती थी।
उनकी सुविधा के लिए महाराणा फतहसिंह ने उदयपुर से चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन तक मैलकार्ट चलवाना तय किया और इस कार्य के लिए सेठ जोरावरमल के द्वितीय पुत्र चन्दनमल के पुत्र जुहारमल को नियुक्त किया।
लेकिन मैलकार्ट के इस काम में काफी नुकसान हो गया, जिस वजह से महाराणा ने जुहारमल को हानि की पूर्ति करने का हुक्म दिया, लेकिन उस समय जुहारमल की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इस कारण महाराणा ने उससे पारसोली गांव ज़ब्त कर लिया।
इन्हीं दिनों महाराणा फतहसिंह ने अजमेर से बैरिस्टर श्यामजी कृष्णवर्मा को उदयपुर बुलाकर महद्राजसभा का मेम्बर नियुक्त किया। कुछ दिन बाद श्यामजी को जूनागढ़ राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया गया, इसलिए वे जूनागढ़ चले गए। लेकिन वहां मनमुटाव होने के कारण पुनः उदयपुर लौट आए।
कविराजा श्यामलदास का देहांत :- 1893 ई. में 57 वर्ष की आयु में वीरविनोद ग्रंथ के लेखक कविराजा श्यामलदास का देहांत हो गया।
कविराजा श्यामलदास ने महाराणा शम्भूसिंह व महाराणा सज्जनसिंह के शासनकाल में मेवाड़ की बड़ी सेवा की थी। हालांकि महाराणा फतहसिंह उनके कार्यों के प्रति कुछ उदासीन रहे।
लगान की बढ़ोतरी :- इन्हीं दिनों महाराणा फतहसिंह ने लोगों की सुविधा के लिए गांवों में अस्पताल और विद्यालय बनवाए, जिस वजह से इन गांवों में कुछ लगान बढ़ाया गया।
1893 ई. – रेलवे लाइन निर्माण :- लोगों की सुविधा व व्यापार के दृष्टिकोण से महाराणा सज्जनसिंह ने चित्तौड़गढ़ से उदयपुर तक रेलवे लाइन बनाने का काम शुरू करवाया था। परन्तु महाराणा सज्जनसिंह के देहांत के बाद यह काम कुछ वर्षों तक बन्द पड़ा रहा।
फिर महाराणा फतहसिंह ने रेलवे लाइन की आवश्यकता महसूस होने पर कार्य शुरू करवाया। मिस्टर कैम्बेल टॉमसन की निगरानी में चित्तौड़गढ़ से देबारी के घाटे तक रेलवे लाइन का निर्माण करवाया गया। देबारी उदयपुर से 8 मील दूर था, जिससे फिर भी कुछ समस्या बनी ही रही।
महता पन्नालाल द्वारा इस्तीफ़ा देना :- 1894 ई. में महता पन्नालाल ने यात्रा जाने हेतु 6 माह की छुट्टी ली और समय समाप्ति पर इस्तीफ़ा दे दिया। उनकी जगह महकमा खास की जिम्मेदारी बलवन्तसिंह कोठारी और अर्जुनसिंह कायस्थ को सौंपी गई।
1896 ई. – लॉर्ड एल्गिन का उदयपुर आगमन :- यह पहला वायसराय था, जिसने चित्तौड़ से देबारी तक रेल यात्रा की। वह उदयपुर के प्राकृतिक सौंदर्य से काफी खुश हुआ। लॉर्ड एल्गिन ने उदयपुर के प्रसिद्ध जगदीश मंदिर में हाथ में पहनने का सोने का कड़ा भेंट किया।
विक्टोरिया की हीरक जयंती :- 1897 ई. में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती के दिन मेवाड़ की महारानी को ‘ऑर्डर ऑफ दी क्राउन ऑफ इंडिया’ की उपाधि प्रदान की गई।
ये राजपूताने की पहली महारानी थी, जो इस सम्मान से सम्मानित हुईं। इस दिन उदयपुर में गरीबों और विद्यार्थियों को भोजन करवाया गया और 99 कैदी रिहा किए गए।
हरभाम जी का उदयपुर आगमन :- 1897 ई. में महाराणा फतहसिंह ने मोरवी रियासत के ठाकुर साहब वाघ जी के छोटे भाई हरभाम जी को महद्राज सभा का सदस्य नियुक्त किया और उदयपुर बुलाया। हरभाम जी 2 वर्ष तक उदयपुर में रहे और फिर काठियावाड़ लौट गए।
पुरानी रीत फिर से चलाना :- मेवाड़ में एक रिवाज था कि जब भी महाजनों में जाति-समुदाय का भोजन आदि होता, तो सबसे पहला तिलक भामाशाह कावड़िया के वंशज को ही किया जाता था, लेकिन बाद में महाजनों ने ऐसा करना बंद कर दिया।
महाराणा स्वरूपसिंह ने महाजनों को फिर से भामाशाह के वंशज को पहले तिलक करने का हुक्म दिया, लेकिन महाजनों ने कुछ समय तक इस परंपरा का पालन किया व फिर बंद कर दिया। महाराणा फतहसिंह ने महाजनों को हुक्म देकर यह परंपरा फिर से चलवाई।
महाराणा की हाजिरजवाबी :- यह घटना किसी प्रामाणिक पुस्तक से नहीं ली गई है, बल्कि यह एक किस्सा है जो मेवाड़ में प्रचलित है। एक बार एक अंग्रेज अफ़सर महाराणा फतहसिंह से मिलने उदयपुर राजमहलों में आया।
उसने महाराणा से उदयपुर का नक्शा मांगा, तो महाराणा ने एक सेवक को बुलाकर कहा कि “एक पापड़ सेंक कर लाओ”। फिर महाराणा ने वह पापड़ उस अंग्रेज अफसर को दिखाया और कहा कि “इस पापड़ का जो उभरा हुआ हिस्सा है, वो मेवाड़ के पहाड़ हैं, बाकी सब समतल”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)