मेवाड़ महाराणा अरिसिंह द्वितीय (भाग – 10)

अगस्त, 1771 ई. – खारी नदी की लड़ाई :- कई बार महाराणा अरिसिंह को गद्दी से हटाने के असफल प्रयासों के बावजूद देवगढ़ के रावत जसवंत सिंह चुण्डावत ने उम्मीद नहीं छोड़ी। इस समय रावत जसवंत सिंह जयपुर के महाराजा पृथ्वीसिंह के पास थे।

रावत जसवंत सिंह ने जयपुर के समरू से करार किया और कहा कि “आप हमारी फौजी मदद करें, क्योंकि इस समय मेवाड़ के बहुत से सामंत हमारे मददगार हैं और महाराणा अरिसिंह की ताकत कमज़ोर है।”

समरू :- समरू का मूल नाम वाल्टर रैनहार्ट था। इस समय ये 51 वर्ष का था। हिंदुस्तानी लोग इसको समरू कहते थे, ये फ्रांसीसी सेनापति था। ये प्रसिद्ध नवाब सिराजुद्दौला की सेवा में भी रह चुका था। फिर ये भरतपुर और जयपुर राज्यों की सेवा में आ गया।

रावत जसवंत सिंह के करार के मुताबिक समरू ने 5000 की फौज व तोपखाने के साथ चढ़ाई की। समरू के साथ रावत ने अपने छोटे बेटे स्वरूप सिंह चुंडावत को भेजा। यह फ़ौज अजमेर के देवलिया गांव तक पहुंच गई।

महाराणा अरिसिंह इस समय बरसलियावास गांव में थे। समरू के आने की ख़बर सुनकर महाराणा ने भी लड़ाई की तैयारियां शुरू की। कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत ने महाराणा से कहा कि “अभी आधी रात है, आप हमको सेना सहित भेज दीजिए, आप पीछे से कुछ समय बाद प्रस्थान करें।”

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

महाराणा अरिसिंह ने यह सलाह मानकर कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत, जमादार मलंग, जमादार फिरोज़, जमादार गुलहाला, जमादार अब्दुर्रज़्ज़ाक़, जमादार लड़ाऊ, जमादार कोली, जमादार जुम्मा, कोशीथल के उम्मेदसिंह जगावत चुंडावत आदि को अपनी-अपनी सैन्य टुकड़ियों के साथ रवाना किया।

अगस्त, 1771 ई. में महाराणा की सेना ने प्रस्थान किया। खारी नदी के दोनों किनारों पर सेनाएं जमा हो गईं और गोलन्दाजी शुरू हुई। तब तक महाराणा अरिसिंह भी लड़ाई में शामिल हो गए। 3 दिन तक खारी नदी के किनारे लड़ाई चलती रही।

फिर महाराणा अरिसिंह के ससुर व समरू के मित्र किशनगढ़ के राजा बहादुर सिंह राठौड़ ने समरू से कहा कि “तुम किसके कहने से यहां चले आए ? अगर वाकई महाराणा से मुकाबला हुआ, तो फ़ौज समेत मारे जाओगे।”

इसी तरह राजा बहादुर सिंह ने महाराणा अरिसिंह से भी कहा कि “समरू के पास बड़ा तोपखाना है, अगर आपकी जीत भी हुई, तो भी बहुत से सरदार लड़ाई में मारे जावेंगे।”

इस तरह राजा बहादुर सिंह ने महाराणा व समरू के बीच सुलह करवा दी। समरू ने अकेले ही महाराणा के खेमे में प्रवेश किया और 2 पिस्तौल, 1 तलवार व 1 घोड़ा महाराणा अरिसिंह को नज़र किया। महाराणा ने भी उसको खिलअत व एक घोड़ा देकर विदा किया।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

समरू ने देवगढ़ के स्वरूपसिंह से कहा कि “तुमने हमको धोखा दिया है, तुमने तो कहा कि महाराणा अरिसिंह उदयपुर से बाहर निकलते ही नहीं और सभी सामंत हमारे पक्ष में हैं, जबकि हमारी सेना ने मेवाड़ में 2 क़दम भी नहीं रखे और महाराणा ख़ुद सेना लेकर वहां आ पहुंचे और सामंत भी महाराणा के साथ थे। ऐसे बहादुर राजा का राज्य कौन ले सकता है ?”

महाराणा अरिसिंह वहां से रवाना हुए और अमरगढ़ के किले को घेर लिया। अमरगढ़ की घेराबंदी का ज्यादा वर्णन पढ़ने को नहीं मिला है।

1772 ई. – रतनसिंह (नकली महाराणा) व महाराणा अरिसिंह के बीच हुई लड़ाइयां :- रतनसिंह, जिसे महाराणा अरिसिंह असली रतनसिंह समझ रहे थे, उसका अधिकार इस समय मेवाड़ के 2 महत्वपूर्ण गढ़ (चित्तौड़गढ़ व कुम्भलगढ़) पर था। देवगढ़, भींडर आदि ठिकानों के सामंत रतनसिंह के पक्षदार थे।

रतनसिंह ने महता सूरतसिंह को चित्तौड़गढ़ का किलेदार नियुक्त किया। महाराणा अरिसिंह ने रावत भीमसिंह को फौज समेत चित्तौड़गढ़ भेजा, जिससे घबराकर महता सूरतसिंह भाग निकला और गढ़ पर महाराणा अरिसिंह का अधिकार हो गया।

महाराणा अरिसिंह ने महाराज बाघसिंह को भेजकर गोडवाड़ से भी रतनसिंह का कब्ज़ा हटा दिया। महाराज बाघसिंह ने महाराणा के सामने हाजिर होकर कहा कि “गोडवाड़ पर एक फ़ौज हमेशा तैनात रखनी चाहिए, वरना रतनसिंह की तरफ से आए दिन लूटमार होती रहेगी और अगर उसने गोडवाड़ पर कब्ज़ा कर लिया, तो उसकी हिम्मत और बढ़ जाएगी।”

महाराणा अरिसिंह ने जोधपुर के महाराजा विजयसिंह राठौड़ से 3 हजार की फौजी मदद मांगी और ये फौज नाथद्वारा में तैनात कर दी। बदले में करार किया कि जब तक जोधपुर की ये फौज मेवाड़ में रहेगी, तब तक गोडवाड़ परगने की आय जोधपुर को मिलती रहेगी।

एक शर्त ये भी रखी गई कि जोधपुर महाराजा को रतनसिंह से कुम्भलगढ़ का किला खाली करवाना होगा। जोधपुर की फौज ने रतनसिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और गोडवाड़ पर कब्ज़ा कर लिया। महाराणा अरिसिंह के मांगने पर भी यह परगना मेवाड़ को नहीं मिला। फिर मेवाड़ व मारवाड़ के महाराजा ने एक मुलाकात करना तय किया, जिसके बारे में अगले भाग में लिखा जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

2 Comments

  1. Muhammad
    October 12, 2021 / 8:34 am

    Hukum mujhey yeh janna hai ki Maharana Shri Ari Singhji II ka sasural KISHANGARH kaise hai.unka koi vivah Kishangarh to nahi milta .unki Rathore vanshiya Raniya thi avashay par koi Kishangarh ki nahi thi.Or wo bhi Maharaja Bahadur singhji ki putri???unki poti or agle Maharaja Birad singhji ki putri Rajkumari Shri Amar Kanwar Baijilal ka vivah MEWAR me avashya hua tha- Maharana Shri Hamir Singhji II ke sath.parantu agar Maharana Ari Singhji ka bhi Kishangarh me vivah hua tha to kya aap mujhey un rani ka nam bata saktey hain

  2. Ganpat singh ganpat singh
    October 13, 2021 / 5:45 am

    Jay Ho Rawat Rajputana ki Jay Ho

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