खरवा ठिकाने के राव गोपालसिंह राठौड़

राव गोपालसिंह राठौड़ का जन्म 10 अक्टूबर, 1873 ई. को हुआ। ये 1887 ई. में अपने पिता के देहांत के बाद अजमेर के खरवा ठिकाने की गद्दी पर बैठे। आप खरवा ठिकाने के 13वें राव साहब थे।

खरवा ठिकाने के राठौड़ राजपूत मारवाड़ नरेश मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र सगतसिंह के वंशज हैं। 12 वर्ष की आयु में गोपालसिंह जी ने घुड़सवारी व बंदूक चलाने में महारत हासिल कर ली थी।

राव गोपालसिंह बचपन से ही इतिहास प्रेमी थे। उन्होंने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर दुर्गादास राठौड़ की गाथाओं से प्रेरणा ली और अंग्रेज सरकार से विद्रोह करने की ठानी।

राव गोपालसिंह जी ने लिखा था कि “वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की तलवार, छत्रपति शिवाजी महाराज या वीर राठौड़ दुर्गादास किसी की भी तलवार मान ली जाए,

ठिकाना खरवा

एक ही बात है। इसकी तीखी धार कभी मंद नहीं होती। यह वैसी ही कठोर और वैसी ही तेज धार युक्त बनी रही है और बनी रहेगी, जैसी की उन प्रातः स्मरणीय वीरों के हाथ में बनी रही थी।

अधिक समय तक काम में न लाने से यदि कुछ जंग लग भी जाता है, तो कर्तव्य-धर्म-बल से उठे हुए हाथ से चलने एवं रूधिर से धुलने पर वह अधिक तेज होकर अधिक चमकने लगती है।”

बचपन में इनके शिक्षक शिवलाल तिवाड़ी रहे, फिर अजमेर के प्रसिद्ध मेयो कॉलेज में प्रवेश लिया। 1899 ई. (विक्रम संवत 1956) के छप्पनिया अकाल के समय राव गोपालसिंह ने जनता के लिए खज़ाना खोल दिया था।

इसके अलावा उन्होंने कई जगह से कर्ज़ लेकर जनता के खाने-पीने की व्यवस्था की। 1906 ई. में राव गोपालसिंह कलकत्ता गए, जहां विपिनचन्द्र पाल व सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के साथ मिलकर भावी योजनाएं बनाई।

1907 ई. में राव गोपालसिंह, केसरीसिंह बारहठ व अर्जुनलाल सेठी ने मिलकर “अभिनव भारत समिति” की स्थापना की।

राव गोपालसिंह

1910 ई. में केसरीसिंह बारहठ, विजयसिंह पथिक व राव गोपालसिंह ने मिलकर “वीर भारत सभा” की स्थापना की। राव गोपालसिंह ने कई राजपूतों को इस संगठन से जोड़ दिया।

राव गोपालसिंह ने क्रांतिकारियों और राजाओं के बीच एक कड़ी का काम किया और राजाओं से क्रांतिकारियों को अस्त्र-शस्त्र दिलवाए। इस दौरान राजपूताने में हुई क्रांति में अस्त्र-शस्त्र दिलवाने के मामले में राव गोपालसिंह का नाम अव्वल दर्जा रखता है।

एक स्थान पर अंग्रेजों ने छापा मारा, जहां अर्जुनलाल सेठी और केसरीसिंह बारहठ तो पकड़े गए, पर राव गोपालसिंह और जोरावरसिंह बारहठ बच निकलने में सफल रहे।

29 जून, 1914 ई. को अंग्रेज पलटन के 400 सिपाहियों ने खरवा दुर्ग को घेर लिया, जहां तलाशी लेने पर उन्हें कोई सुराग न मिला तो अंग्रेजों ने राव गोपालसिंह, बाबा नाड़सिंह, विजयसिंह पथिक को 15 अन्य साथियों समेत क़ैद कर टॉडगढ़ जेल में भिजवा दिया।

अंग्रेजों ने खरवा ठिकाने के सभी शस्त्र, राजकोष, आभूषण, घोड़े वग़ैरह ज़ब्त कर नीलाम कर दिए। 12 जुलाई, 1914 ई. को राव गोपालसिंह तलवार की नोंक पर टॉडगढ़ दुर्ग से फ़रार होकर जंगलों में चले गए।

राव गोपालसिंह की प्रतिमा

इसके बाद एक नई योजना बनाई गई, जिसके तहत तय किया गया कि 21 फरवरी, 1915 ई. को पूरे राजपूताने में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ एक सशस्त्र क्रांति होगी, जिसमें दामोदरदास राठी को ब्यावर और राव गोपालसिंह को अजमेर व नसीराबाद पर कब्ज़ा करना होगा।

परन्तु हुआ ये कि मणिलाल नाम का एक व्यक्ति रासबिहारी बोस के संदेश लेकर राव गोपालसिंह के पास आ रहा था, लेकिन अंग्रेजों ने मणिलाल को पकड़ लिया और फिर उसे अंग्रेजी सरकार का मुखबिर बना लिया गया।

मणिलाल ने सारी योजना अंग्रेजों को बता दी और इस तरह क्रांतिकारियों की योजना असफल रही। एक दिन राव गोपालसिंह किशनगढ़ के सलेमाबाद में एक मंदिर में दर्शन करने गए, जहां एक गुप्तचर ने उनको देख लिया और ख़बर कर दी।

जिसके बाद किशनगढ़ के दीवान पोनास्कर ने 500 घुड़सवारों के साथ और अजमेर से सेक्रेटरी जनरल मिस्टर कई ने 500 घुड़सवारों के साथ मिलकर धावा बोल दिया।

राव गोपालसिंह व मोहड़सिंह ने आत्मसमर्पण करते हुए हथियार अंग्रेजों को सौंप दिए। यह घटना 28 अगस्त, 1915 ई. की है। (ये हथियार 1962 ई. तक इसी मंदिर में रहे)। 1920 ई. में राव गोपालसिंह को रिहा कर दिया गया।

राव गोपालसिंह

1930 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन में राव गोपालसिंह ने खुलकर भाग लिया था। अजमेर में हुए सत्याग्रह का नेतृत्व राव गोपालसिंह ने किया। अंग्रेजों ने राव गोपालसिंह को फिर से बंदी बना लिया और कुछ दिनों बाद रिहा कर दिया।

फिर 1932 ई. में राव गोपालसिंह ने अजमेर और मेरवाड़ा क्रांतिकारी आंदोलन को पुनः जागृत करने का बीड़ा उठाया।

27 मार्च, 1939 ई. को राव गोपालसिंह का देहांत हो गया। इनकी छतरी शक्तिसागर तालाब की पाल पर स्थित है, जहां आज भी लोग मन्नतें मांगते हैं।

लोग यहां बीमारी ठीक करने के लिए भी हाजरी लगाते हैं। राव गोपालसिंह की याद में मेला भी भरता है। राव गोपालसिंह के पुत्र राव गणपति सिंह हुए।

30 मार्च, 1989 ई. को भारत के संचार मंत्रालय ने राव गोपालसिंह की याद में डाक टिकट जारी किया और इसी दिन केंद्रीय संचार मंत्री श्री वीर बहादुर सिंह ने राव गोपालसिंह की प्रतिमा का अनावरण किया।

ठिकाना खरवा

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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