मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय (भाग – 9)

1708-1709 ई. में पुर-मांडल, मांडलगढ़ व बदनोर पर महाराणा का अधिकार :- जो परगने बादशाही खालिसे में शुमार कर राठौड़ राजपूतों को दे दिए गए थे, महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने उनको वापिस हथियाने का इरादा किया।

महाराणा ने बदनोर के ठाकुर जसवंत सिंह राठौड़ को फौज देकर विदा किया। बादशाही सिपहसालार फीरोज़ खां भारी नुकसान के बाद भाग निकला। सुजानसिंह राठौड़ के बेटे भी भाग निकले। इस तरह इन परगनों पर महाराणा का अधिकार हुआ, लेकिन जसवंत सिंह राठौड़ इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए।

बादशाह बहादुरशाह से लड़ाई का इरादा :- महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने बादशाही खालिसे में शुमार मेवाड़ के परगनों पर अधिकार कर लिया, जिससे महाराणा को सामंतों ने सलाह दी कि अब बहादुरशाह दक्षिण से आगरा लौट रहा है, तो वो हम पर हमला जरूर करेगा।

महाराणा ने विचार करके प्रजा को सामान सहित पहाड़ों में जाने का आदेश दिया और राजपरिवार व सामंतों सहित पहाड़ों में जाकर छापामार लड़ाई लड़ने का इरादा किया। मेवाड़ के महाराणा छापामार लड़ाइयों में किस कदर बादशाही सल्तनत का नुकसान कर सकते थे, ये बहादुरशाह अच्छी तरह जानता था।

इसलिए उसने अपने वज़ीर असद खां से कहा कि राणा को एक तसल्ली का फ़रमान भेज दिया जावे, कि हम उस पर कोई हमला नहीं करने वाले हैं।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

वज़ीर असद खां का लिखा हुआ ये ख़त हूबहू कुछ इस तरह है :- “अमीरी की पनाह, बड़ी ताकत वाले बहादुर, बराबरी वालों से उम्दाह और बेहतर, बुज़ुर्ग सर्दार राणा अमरसिंह हज़रत शहंशाह की मिहरबानियों में रहें।

हुज़ूर में अर्ज़ हुआ कि वह दिलेर सर्दार (राणा अमरसिंह) बादशाही लश्कर की रवानगी की ख़बर सुनकर बेवकूफ़ लोगों के बहकाने से वहम के सबब अपना सामान पहाड़ों में भेजते हैं। पहले भी तसल्ली का बुज़ुर्ग फ़रमान जारी हो चुका है, फिर किस वास्ते ये सब किया जाता है।

साफ़ दिली के साथ अपनी जगह पर रहें। हज़रत बादशाह की मिहरबानी उन उम्दाह राजा (राणा अमरसिंह) के हाल पर किसी तरह कम नहीं है, मैंने ख़त उस दोस्त (राणा अमरसिंह) के नाम भेजा है, उसके जवाब का इंतज़ार किया जाता है, जिस कद्र जल्द भेजें बेहतर है”

महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने इस ख़त का भरोसा न किया और कुछ समय तक लड़ाई का इरादा बनाए रखा। बहादुरशाह के दक्षिण से आगरा जाने के लिए पहले चित्तौड़ के पास वाला रास्ता मुकर्रर हुआ था, लेकिन उसने महाराणा का बर्ताव देखकर अपना रास्ता बदला और मुकंदरा के घाटे से हाड़ौती होकर चला गया।

रावत महासिंह सारंगदेवोत की वीरता :- महाराणा अमरसिंह द्वितीय के आदेश से रावत महासिंह सारंगदेवोत ने मेवाड़ में लूटमार करने वाले लखू चणावदा को मार दिया। महाराणा ने प्रसन्न होकर रावत महासिंह को कुराबड़ और गुड़ली की 10 हजार रुपए आमदनी वाली जागीर प्रदान की।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय की छतरी

एक विशेष जाति के 2 हज़ार लोगों द्वारा आत्महत्या :- इन्हीं दिनों मेवाड़ में एक बड़ी घटना हुई। महाराणा अमरसिंह द्वितीय को सेना के व्यय के लिए धन की बड़ी आवश्यकता हुई, तो उन्होंने प्रजा से लेकर जागीरदारों तक सबसे धन वसूल करना चाहा।

सबने धन दे दिया, लेकिन ब्राम्हणों, चारणों व एक अन्य जाति ने धन देने से इनकार कर दिया। (इस जाति का नाम हम यहां नहीं लिख रहे हैं, क्योंकि पिछली बार इस जाति के व्यक्तियों द्वारा इस लेख पर आपत्ति उठाई गई थी, इसलिए उनकी भावनाएं आहत ना हों, इस बात को ध्यान में रखते हुए बिना जाति का उल्लेख किए घटना लिखी गई है)

जब महाराणा ने दबाव डाला तो ये हजारों लोग उदयपुर के महलों पर आमरण अनशन पर बैठ गए। महाराणा अमरसिंह द्वितीय भी काले कपड़े पहनकर बाड़ी महल के झरोखे में आकर बैठ गए और कहा कि “मैं धन जरूर वसूल करूँगा, आज जब हमारी सेना को धन की जरूरत है और प्रजा तक ने धन दिया है तो तुम्हें छूट कैसे मिल सकती है”

महाराणा की बातें सुनकर पुरोहितों ने ब्राम्हणों के बदले 6 लाख रुपए दे दिए। इसी तरह खेमपुर के आसकरण के पुत्र गोरखदास दधिवाडिया ने चारणों के बदले 3 लाख रुपए अपने घर से लाकर दिए। अब धरने पर सिर्फ उक्त एक जाति के लोग बैठे रह गए।

किसी ने महाराणा से जाकर कहा कि उक्त जाति के लोग अनशन पर खाने-पीने का सामान साथ लेकर बैठे हैं। महाराणा ने ये सुना तो एक हाथी उनकी तरफ छोड़ दिया, जिससे घबराकर वे सब भागे। रोटियां और मिठाई बड़ी मात्रा में नज़र आई, तो महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने उन सबको देश निकाला दे दिया।

उक्त जाति की चोरी पकड़ी गई, ऊपर से देश निकाला मिलने पर वे खुद को बहुत अपमानित महसूस करने लगे। वे लोग एकलिंगनाथ जी मंदिर की तरफ रवाना हुए, तो महाराणा ने चीरवा के घाटे पर नाकेबंदी करवा दी

नतीजतन उदयपुर से उत्तर की ओर 5 मील दूर आम्बेरी की बावड़ी के पास उक्त जाति के 2 हजार लोगों ने आत्महत्या कर ली। महाराणा को इसका कोई पछतावा न हुआ और उन्होंने इस जाति के 84 गांव, जो महाराणा के पूर्वजों ने इन लोगों को दान में दिए थे, वे सब वापिस ले लिए।

निर्माण कार्य :- महाराणा अमरसिंह द्वितीय को महल वगैरह बनवाने का ज्यादा शौक नहीं था। इन्होंने 1703 ई. में सफेद पत्थर का शिवप्रसन्न अमरविलास महल बनवाया, जो बाड़ी महल के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त बड़ी पोल के दोनों ओर के दालान, घड़ियाल व नक्कारखाने की छतरी बनवाई।

पगड़ी :- महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने ‘अमरशाही पगड़ी’ बनवाई, जो मेवाड़ में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय की छतरी में स्थित नन्दी की मूर्ति

ग्रंथ :- महाराणा अमरसिंह के आदेश से पंडित वैकुण्ठ व्यास ने राज्याभिषेक संबंधी एक काव्य लिखा। इसी तरह पंडित मंगल सूरी ने अमरनृपकाव्यरत्न नामक काव्य ग्रंथ की रचना की।

जागीर व्यवस्था :- महाराणा अमरसिंह द्वितीय द्वारा जागीर व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन किया गया। इन महाराणा ने मेवाड़ के सामंतों की 2 श्रेणियां बनाई। पहली श्रेणी में 16 सामंत थे व दूसरी श्रेणी में 32 सामंत थे।

इससे पहले मेवाड़ में अक्सर एक जागीर 3 वर्ष के आसपास किसी एक सामंत को सौंपी जाती और फिर जागीर बदल दी जाती। महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने देखा कि इस पद्दति से प्रजा को नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसलिए 16 व 32 ठिकाने नियत करने से प्रजा और जागीरदार दोनों का भला हो गया।

22 दिसम्बर, 1710 ई. को लगभग 12 वर्ष राज कर महाराणा अमरसिंह द्वितीय का देहांत हुआ। आहड़ के महासतिया में 3 सबसे विशाल छतरियों में से एक छतरी इन महाराणा की है, जिसका निर्माण इनके पुत्र संग्रामसिंह जी ने करवाया।

रानियाँ :- महाराणा अमरसिंह द्वितीय की एक ही रानी का नाम मिल पाया है। महारानी देवकुँवरी बाई :- ये बेदला के राव सबलसिंह चौहान की पुत्री थीं। इनके पुत्र महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय हुए।

संतानें :- इन महाराणा के मात्र एक पुत्र व एक पुत्री हुई। पुत्री चंद्रकुंवरी बाई का विवाह 1708 ई. में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह के साथ हुआ, जो राजपूताने के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। महाराणा अमरसिंह द्वितीय के एकमात्र पुत्र महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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