मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय (भाग – 8)

1708 ई. में महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने अपनी फौज देकर जोधपुर पर महाराजा अजीतसिंह व जयपुर पर सवाई जयसिंह का अधिकार करवा दिया। जयपुर को विजय करने में सवाई जयसिंह के सेनापति रामचंद्र का विशेष योगदान रहा।

शहज़ादे मुइज़ुद्दीन जहांदारशाह ने महाराणा अमरसिंह द्वितीय को ख़त लिखा, जिसमें उसने सीधे-सीधे महाराणा को दोषी ना ठहराते हुए चेतावनी दी और जयपुर व जोधपुर के महाराजाओं को समझाने की बात भी कही। यह खत 17 जुलाई, 1708 ई. को लिखा गया, जो हूबहू यहां लिखा जा रहा है :-

“आदाब अल्काब के बाद, बलन्द इरादा बहादुरों का पेशवा राणा अमरसिंह ख़बरदार होकर जाने, कि हम इस फ़िक्र में थे कि अजीतसिंह, जयसिंह और दुर्गादास के कुसूर मुआफ़ (माफ़) हो जावें। लेकिन इन्हीं दिनों में अजमेर के सूबेदार शुजाअत खां की अर्ज़ी से मालूम हुआ कि

रामचंद्र वग़ैरह जयसिंह के नौकरों ने सैय्यद हुसैन खां वग़ैरह बादशाही नौकरों से लड़ाई की। अजीतसिंह वग़ैरह को हरगिज़ मुनासिब नहीं था कि हमारा जवाब पहुंचने तक बेहूदा हरक़त करते। बहुत नालायक कार्रवाई हुई। इसलिए कुछ अर्से तक इनके कुसूरों की मुआफ़ी हमने मौक़ूफ़ (स्थगित) रखी है।

इनको कह दें कि अब भी हाथ खेंचकर कोने में बैठे रहें, रामचंद्र को निकाल दे और अर्ज़ी भेजे कि उस (रामचन्द्र) ने बादशाही आदमियों के साथ बेअदबी की थी, इसलिए नौकरी से दूर किया गया। इसके बाद उन (अजीतसिंह, जयसिंह, दुर्गादास) के कुसूरों की मुआफ़ी की फ़िक्र की जावेगी। बादशाही मिहरबानियों को हमेशा अपने हाल पर ज्यादा समझें।”

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

महाराणा अमरसिंह द्वितीय द्वारा जहाँदारशाह को लिखा गया जवाबी पत्र, जिसमें महाराणा ने बड़ी ही चतुराई से अपनी बात रखी। यह पत्र हूबहू यहां लिखा जा रहा है :-

“बुज़ुर्ग निशान निहायत कद्रदानी के साथ इस खैरख्वाह के नाम जारी हुआ, जिसके हिसाब से राजा अजीतसिंह, राजा जयसिंह और दुर्गादास राठौड़ की अर्ज़ियाँ बादशाही हुज़ूर में पेश कर दी हैं। जयसिंह को भी ताकीद कर दी है कि

वह अपने नौकर रामचंद्र को निकाल दे, जिसने नालायक कार्रवाई की। लेकिन असल हकीकत ये है कि वतन में जागीर पाए बिना इन लोगों को तसल्ली नहीं होगी और ऐसा मालूम होता है कि हिंदुस्तान में बड़ा फ़साद उठेगा। मुनासिब जानकर अर्ज़ किया गया।”

महाराणा अमरसिंह का पत्र पहुंचने के बाद जहाँदारशाह महाराणा की मंशा समझ गया। उसने जयपुर व जोधपुर के राजाओं को जोधपुर व आमेर तो नहीं दिलवाए, पर कुछ अन्य जागीरें दिलवाई। मुगल बादशाह बहादुरशाह के मंत्री नवाब आसिफुद्दौला ने महाराणा अमरसिंह को एक ख़त कुछ इस तरह लिखा :-

“बाद मामूली अल्काब के, राणाजी यह जाने कि हजरत शहंशाह की तरफ से मनसब बहाल होकर राजा अजीतसिंह को सोजत, राजा जयसिंह को खदमनी और दुर्गादास राठौड़ को सिवाना जागीर में दिए जाने का हुक्म हुआ।

इनको ताक़ीद कर दें कि फ़साद और बेजा हरकतें न करें, आंबेर से हाथ खेंचकर चुपचाप बैठे। ख़ुदा ने चाहा तो दुबारा हुज़ूर में अर्ज़ करके जोधपुर और आंबेर इनको दिलवा दिए जावेंगे। हर एक अपना वकील भेजकर सनद हासिल करे।”

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

महाराणा अमरसिंह ने नवाब आसिफुद्दौला को जवाबी ख़त लिखा। इस खत में महाराणा ने एक तरह से चेतावनी दे दी। ये खत हूबहू कुछ इस तरह है :- “बाद शौक के यह है, कि आपका बुज़ुर्ग ख़त पहुंचा, जिनमें लिखी बातों के दर्याफ़्त करने से बड़ी खुशी हासिल हुई। लेकिन नवाब साहब, असल हकीकत ये है कि

जब ये लोग (महाराजा अजीतसिंह, सवाई जयसिंह, दुर्गादास राठौड़) उदयपुर पहुंचे, तब मैंने उन लोगों को हर तरह के नसीहतें दीं और एक महीने से ज्यादा अपने यहां ठहरा रखा, लेकिन बादशाही अहलकारों की नाराज़गी के सबब से कोई मतलब दुरुस्त न हुआ।

राजपूताने की आमद, खर्च और इंतिज़ाम पर नज़र करके अपनी खुशी से इस इलाके के मौजूद आदमियों के बुज़ुर्गों को वतन की जागीरों के सिवाय अपने पास से परगने मिलने चाहिए थे, जो उनको नहीं मिले।

इस वक्त मुल्क में हर तरफ़ फ़साद उठ रहा है और हर तरह कोशिश की जाती है, लेकिन बगैर वतन में जागीर मिलने के दोनों अज़ीज़ (महाराजा अजीतसिंह व सवाई जयसिंह) और दुर्गादास राठौड़ फ़साद से जल्द बाज़ न आवेंगे।

मुझको जो कुछ सच नज़र आया, वह लिख दिया। अब भी शहज़ादे को चाहिए कि अपनी सिफारिश से बादशाह से इनके नाम की जागीरें इनको दिला दी जावें। बस, ज्यादा क्या तकलीफ़ दी जावे।”

महाराणा अमरसिंह द्वितीय

महाराज महेशदास पुरावत का बलिदान :- ये वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के 11वें पुत्र पुरणमल जी के पौत्र थे। महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने महाराज महेशदास को अजमेर की तरफ मुगल थाने पर हमला करने भेजा। महेशदास ने अजमेर में नंदराय की तरफ मुगल थाने पर हमला कर विजय प्राप्त की।

कुछ समय बाद मेवाड़ में कुछ भीलों ने बगावत कर दी। महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने महेशदास को इस बगावत को कुचलने भेजा। महेशदास ने नठारा और भोराई की पाल पर चढ़ाई कर बागी भीलों का दमन किया, लेकिन स्वयं भी गले में तीर लगने के कारण वीरगति को प्राप्त हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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