1613 ई. – सुरताण भाटी का बलिदान :- वर नामक गांव में महाराणा अमरसिंह के सामंत सुरताण भाटी व मारवाड़ के राजपूतों के बीच छुटपुट लड़ाई हुई। मारवाड़ के राठौड़ गोपालदास भगवानदासोत, राठौड़ रामदास चांदावत, सबलसिंह, सुन्दरदास, सूरसिंह, नरसिंह केसरीसिंहोत ने हमले की पहल की।
सुन्दरदास, सूरसिंह व नरसिंह केसरीसिंहोत तीनों ही सुरताण भाटी के हाथों काम आए। इस लड़ाई में सुरताण भाटी बड़ी वीरता से लड़े व ख़ुद भी वीरगति को प्राप्त हुए। मारवाड़ की तरफ से 50 व भाटी सुरताण की तरफ से 53 राजपूत काम आए।
महाराणा अमरसिंह व मेवाड़ के राजपूतों का संघर्ष :- यूं तो मेवाड़ के राजपूतों ने मातृभूमि के लिए सदियों से अनेक बलिदान दिए, परन्तु जो संघर्ष महाराणा उदयसिंह, महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह के शासनकाल में किया, उस संघर्ष की तुलना समूचे भारतवर्ष में किसी से करना भी सम्भव नहीं। इस संघर्ष के काल में हर दिन रक्तपात होता था।
महाराणा अमरसिंह जब गद्दी पर बैठे, तब 8 वर्षों तक मुगल बादशाह अकबर की फ़ौजों से लड़ते रहे और अकबर की मृत्यु के बाद पुनः 8 वर्षों तक जहांगीर की फ़ौजों से लड़ते रहे। इस दौरान मेवाड़ की फ़ौज आधी से भी कम रह गई थी। हज़ारों की तादाद में मेवाड़ के राजपूतों ने बलिदान दिए और उससे कई गुना अधिक मुगलों व विरोधी पक्ष के सैनिकों का लहू बहाया।
इतने संघर्षों के बाद आख़िरकार वह समय आया, जो मेवाड़ ने इससे पहले कभी न देखा। अब तक मेवाड़ पर जितने भी बड़े आक्रमण हुए उनमें 60 से 80 हज़ार की फ़ौजें आती थीं, लेकिन अब जहांगीर मेवाड़ को पराजित करने की ठान चुका था और वह तैयार था समूचे मुगल साम्राज्य की सेना को मेवाड़ के विरुद्ध भेजने के लिए।
कर्नल जेम्स टॉड महाराणा अमरसिंह के बारे में लिखता है कि ”मुगलों से लगातार युद्घ करके राणा अमरसिंह की शक्तियां अब क्षीण हो गयी थीं। उसके पास सैनिकों की अब बहुत कमी थी। शूरवीर सरदार और सामंत अधिक संख्या में मारे जा चुके थे।”
जेम्स टॉड आगे लिखता है कि “लेकिन राणा अमरसिंह ने किसी प्रकार अपनी निर्बलता को अनुभव नहीं किया। उसने सिंहासन पर बैठने के पश्चात और राणा प्रताप सिंह की मृत्यु के पश्चात दिल्ली की शक्तिशाली मुगल सेना के साथ सत्रह युद्घ किए और प्रत्येक युद्घ में उसने शत्रु की सेना को पराजित किया।”
कविराजा श्यामलदास ने मेवाड़ के कष्टप्रद समय के बारे में ग्रंथ वीरविनोद में विस्तार से लिखा है, जो कुछ इस तरह है :- “महाराणा अमरसिंह ने बादशाही फौज से सत्रह लड़ाईयाँ लड़ी, जब अपने बाप का कौल इनको याद आता, तो जोश में आकर शाही मुलाजिमों पर हमला किये बगैर नहीं रहते, लेकिन तमाम मुल्क के बादशाह के साथ छोटे से मुल्क का मालिक कब तक बराबरी कर सकता है।
इसके सिवाय आमदनी का मुल्क बिल्कुल वीरान हो गया। रिआया (प्रजा) इलाका छोड़कर भाग गई, सिर्फ पहाड़ी हिस्सों में भील लोग आबाद थे, जिनसे सिवाय लड़ाई के और कुछ आमदनी नहीं हो सकती थी। 1567 ई. से 1613 ई. तक हजारों आदमियों व रनीवास का खर्च बड़ी मुश्किल से चलाया गया।
राजपूत लोगों में दो-दो चार-चार पीढ़ियां सबकी मारी गई थीं। पहाड़ों के चारों तरफ से बादशाही फौजों के हमले होते थे। आज एक बहादुर राजपूत मौजूद है, कल मारा गया, परसों उसके बेटे ने भी हमला करके अपनी जान दी, उनकी विधवा औरतें आग में जलती थीं, उन लोगों के लड़के-लड़की जो कम उम्र के रह जाते, उनकी पर्वरिश भी महाराणा को ही करनी पड़ती।
इस पर भी यह खौफ था कि हमारे राजपूत की औलाद मुसलमानों के हाथ पड़कर गुलाम ना बनाई जावे, अगर कभी ऐसा हो जाता तो उस बात का सदमा महाराणा अमरसिंह के दिल में छेद करता था।
एक-एक दिन में कई जगह रसोई (खाना) करना पड़ा है, याने एक जगह भोजन तैयार हुआ और शाही मुलाजिमों ने आ घेरा, दूसरी जगह बनाया तो वहां भी दुश्मनों ने आ घेरा, तब तीसरी जगह किसी पहाड़ी की खोह में रोटियां होने लगीं।
लेकिन धन्य है मेवाड़ के बहादुर राजपूत, जो इतनी तकलीफें उठाकर अपने बाप-दादों की इज्ज़त और कहावतों पर ख़याल करके मरते और मारते थे। जो कोई राजपूत निकलकर शाही मुलाजिम होता था, उस पर हज़ारहा लानत मलामत करते थे। राजपूत लोग यह लानत मलामत जगमाल व सागर जैसे कौमी दुश्मनों पर करते थे।”
ग्रंथ वीरविनोद में कविराजा ने इस संघर्ष को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। वास्तव में इस संघर्ष ने मेवाड़ की ख्याति संसार भर में ऐसी प्रसिद्ध कर दी, कि जो अब अमर बन चुकी है। “ये इम्तिहान की घडियाँ थीं, आईं जो धीरज आजमाने। पग के नीचे धरती खिसकी, हाथों से राज लगे जाने।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
बहुत ही मार्मिक पोस्ट। नई नई जानकारियों से भरपूर, स्वाभिमान को जगाने वाले गर्व पूर्ण इतिहास का परिचय। इसी तरह भारतीय इतिहास के संदर्भ में राजपूतों का इतिहास बतलाकर राजपूतों को गर्व का अनुभव करावे। और आज के परिप्रेक्ष्य में उनका उपयोग होना चाहिए।
धन्य हे मेवाड धरा,धन्य हे हमारे पूर्वज
दुःख, भावनाओं की आंधी, आंसू, प्रेम सब कुछ