वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 16)

“सन्धि प्रस्तावों की असफलता” :- 1572 से 1573 ई. के बीच अकबर द्वारा भेजे गए 4 शान्ति दूत में से आखिरी 3 हिन्दु थे, ऐसा करने के पीछे अकबर का मकसद ये था कि हिन्दु ही हिन्दु को बेहतर तरीके से समझा सकता है।

अकबर ने इन सन्धि प्रस्तावों में महाराणा प्रताप के एक प्रसिद्ध हाथी रामप्रसाद की बार-बार मांग की, पर महाराणा ने इस मांग को ठुकरा दिया। हाथी की मांग करने के पीछे भी एक कारण था।

यदि महाराणा प्रताप हाथी भिजवा देते, तो यह संदेश जाता कि महाराणा प्रताप ने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन अधीनता स्वीकार कर ली। इससे अकबर की भी बात रह जाती, ऐसा ही एक प्रयास अकबर ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध भी किया था।

इस तरह अकबर का एक भी सन्धि प्रस्ताव महाराणा प्रताप के स्वाभिमान को नहीं हिला सका। बूंदी के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने महाराणा प्रताप पर कुछ दोहे लिखे जिनका सारांश ये है कि

महाराणा प्रताप

“अकबर ने महाराणा प्रताप के पास यह संदेश भेजा कि तुम मेरा कुछ शासन मान लो। तुम्हें अन्य राजाओं की भांति दरबार में रहकर मेरी सेवा करने की जरूरत नहीं होगी। केवल घोड़े पर दाग लगाने पड़ेंगे और शाही निशान

रखने पड़ेंगे। परन्तु महाराणा प्रताप ने एक बात नहीं मानी और कहा कि चाहे हम नष्ट ही क्यों न हो जाएं पर अपने कर्तव्य मार्ग से ज़रा भी न डिगेंगे। महाराणा प्रताप ने अपने परिवार, संबंधियों व योद्धाओं सहित दृढ़ निश्चय कर लिया कि वे धर्म का त्याग नहीं करेंगे”

इन्हीं दिनों अकबर ने गुजरात विजय के लिए जो सेना भेजी थी, वो गुजरात से आगरा लौट रही थी। मुगल फौज जब राजपूताना से होकर गुजरी, तो महाराणा प्रताप ने अपने मात्र 50-60 सैनिकों के साथ जंगलों में से अचानक निकलकर मुगल फौज पर हमला कर दिया।

अचानक हुए इस हमले ने मुगल फौज को झकझोर कर रख दिया। कई मुगल मारे गए व महाराणा ने शाही फौज को लूटकर उन्हें आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया। (मेवाड़ी ख्यातों में इस घटना का उल्लेख मिलता है)

1573 ई. :- महाराणा प्रताप ने एक ब्राह्मण को भूमि दान की, जिसका ताम्रपत्र मिला है। महाराणा प्रताप द्वारा भूमि दान के लिए जारी किया गया ये ताम्रपत्र वर्तमान में उदयपुर के विक्टोरिया हॉल संग्रहालय में खण्डित अवस्था में सुरक्षित है।

इस ताम्रपत्र में 12 पंक्तियां लिखी हैं, जिनमें से 4 ही पढ़ी जा सकती हैं। शेष भाग अस्पष्ट है। ताम्रपत्र के अनुसार महाराणा प्रताप ने ज्येष्ठ शुक्ल 5 सोमवार संवत् 1630 को किसी ब्राह्मण को भूमि दान की।

कुछ समय बाद महाराणा प्रताप ने लखा बारठ को मनसुओं का गाँव प्रदान किया। इससे महाराणा प्रताप की दानशीलता का पता चलता है।

इसी वर्ष अकबर ने खुद गुजरात विजय के लिए कूच किया और इसी दौरान अकबर ने गुजरात में पहली बार समन्दर देखा। अकबर ने गुजरात विजय की याद में बुलन्द दरवाजा बनवाया।

इसी वर्ष गुजरात में ईडर की राजगद्दी पर राय नारायणदास राठौड़ बैठे। ये महाराणा प्रताप के ससुर थे व इन्होंने महाराणा प्रताप का खूब साथ दिया। अबुल फजल लिखता है “ईडर के राय नारायणदास को घास-फूस खाना मंजूर था, पर बादशाही मातहती कुबूल करना नहीं”

1574 ई. :- इस वर्ष आमेर के राजा भारमल का देहान्त हुआ। राजा भगवानदास आमेर के शासक बने। इसी वर्ष बीकानेर नरेश राव कल्याणमल का देहान्त हुआ। राजा रायसिंह (महाराणा प्रताप के बहनोई) बीकानेर के शासक बने। इन्होंने अकबर का साथ दिया।

महाराणा प्रताप

इसी वर्ष अकबर ने मारवाड़ के राव चन्द्रसेन को दण्डित करने के लिए राजा रायसिंह को भेजा, पर रायसिंह को सफलता नहीं मिली। इसी वर्ष अकबर ने बंगाल व बिहार पर विजय प्राप्त की।

“पठान हाकीम खां सूर” :- इनका जन्म 1538 ई. में हुआ। ये अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के वंशज थे। अकबर के बिहार पर अधिकार करने के बाद हाकीम खां सूर मेवाड़ आए व अपने 800 से 1000 अफगान सैनिकों के साथ महाराणा के सामने प्रस्तुत हुए।

हाकीम खां सूर को महाराणा ने मेवाड़ की हरावल का सेनापति घोषित किया। हाकीम खां हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे।

ये मेवाड़ के मायरा स्थित शस्त्रागार के प्रमुख थे। मेवाड़ के सैनिकों के पगड़ी के स्थान पर शिरस्त्राण पहन कर युद्ध लड़ने का श्रेय इन्हें ही जाता है।

मूं पालूं इस्लाम धर्म, न: कौम करम तालूंह। मनक पणो महराण लख, मूं मनक धर्म पालूं।।” अर्थात् हाकीम खां सूर कहते हैं “चाहे मैं इस्लाम धर्म पालता हूं, लेकिन मेरे लिए महाराणा की मर्यादाएँ सर्वोच्च महत्व रखती हैं”

पठान हाकिम खां सूर

पठान हाकिम खां सूर के आने से महाराणा प्रताप की सेना को और अधिक बल मिला। सन्धि प्रस्तावों की असफलता एक नए संघर्ष को जन्म देने जा रही थी।

महाराणा प्रताप के समकालीन कवि बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ ने यह दोहा लिखा :- ऊगां दन समैं करै आखाड़ा, चोरंग भुवन हसत अणचूक। रोदान्तणा रगत सूं राणा, रँगियौ रहै लुहालो रुक।।

अर्थात हे महाराणा, आपके नहीं चूकने वाले हाथ दिन उगते समय ही युद्धभूमि में अखाड़ा अर्थात युद्ध करने लगते हैं और आपकी तलवार यवनों के रक्त से रँगी हुई रहती है।

* अगले भाग में महाराणा प्रताप द्वारा गुजरात के बादशाही इलाकों पर आक्रमण व हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व की तैयारियाें के बारे में लिखा जाएगा।

महाराणा प्रताप

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

3 Comments

  1. Amit Kumar
    May 2, 2021 / 7:43 am

    बहुत सुंदर वर्णन है।

  2. Ashimananda Chatterjee
    May 3, 2021 / 12:19 pm

    Please do write about Maharaja’s Sardars and Soldiers also. Individually they may be forgotten in history…..but collectively they are the chivalrous brave hearts who never deserted their Master ❤️

    • May 3, 2021 / 1:27 pm

      We will write about them in a different series so we could describe it properly.

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