महाराणा प्रताप द्वारा गुजरात के बादशाही इलाकों पर आक्रमण :- यूरोप के साथ मुगलों का व्यापार मेवाड़ के भीतर होकर सूरत बन्दरगाह से होता था। महाराणा प्रताप और उनके साथी गुजरात मार्ग को आए दिन बन्द कर देते थे।
वे मुगलों की सामग्री छीन लेते, जिससे अकबर का यूरोप के साथ व्यापार ठप्प होने लगा। अकबर ने महाराणा प्रताप के बहनोई बीकानेर नरेश राजा रायसिंह राठौड़ को गुजरात मार्ग खोलने व लूट रोकने के लिए नियुक्त किया।
महाराणा प्रताप ने अपने बहनोई से लड़ना ठीक न समझा, पर राजा रायसिंह राठौड़ के जाते ही महाराणा ने फिर गुजरात मार्ग बन्द कर लूट शुरु की।
कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि मुगल दरबार और यूरोप के बीच जो व्यापार सूरत व अन्य बन्दरगाहों से मेवाड़ में से होकर चालू हो गया था, प्रताप उसे बीच में रोककर लूटने लगा।
महाराणा प्रताप ने गुजरात के अहमदाबाद शहर में लूट शुरु की। महाराणा ने अहमदाबाद की बादशाही चौकियों पर एक-एक कर हमले किए और चौकियां जला दी।
एक समय ऐसा आया कि अहमदाबाद की प्रजा मुगलों के अत्याचारों से मुक्त हो गई। महाराणा द्वारा गुजरात में मुगल थानों पर आक्रमण करना हल्दीघाटी युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण था।
महाराणा प्रताप द्वारा अहमदाबाद पर आक्रमण करने के बारे में अमरकाव्य ग्रन्थ में लिखा गया है। यह ग्रन्थ महाराणा प्रताप के देहान्त के कुछ ही वर्षों बाद लिखा गया था।
महाराणा प्रताप के समकालीन कवि दुरसा आढा द्वारा लिखा गया दोहा :- अलख पुरुस आदेस, देस बचाय दयानिधे। वरणन करूं विसेस, सुहृद नरेस प्रतापसी।।
अर्थात हे अगोचर दयानिधि परमेश्वर, आपको नमस्कार है। देश के मित्र महाराणा प्रतापसिंह की रक्षा कीजिए, मैं उन्हीं का वर्णन करता हूँ।

सम्भावित युद्ध को ध्यान में रखते हुए महाराणा प्रताप की तैयारियाँ :- महाराणा प्रताप ने भी मुगलों से सम्भावित युद्ध की तैयारियां करना शुरू कर दिया।
29 अक्टूबर, 1574 ई. के घटनाक्रम का एक ताम्रपत्र मिला है, जिसके अनुसार महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के मुहाने पर 300 घुड़सवार तैयार रखने के लिए घुड़सवार नेता जोशी पूनो नाम के एक व्यक्ति को कुम्भलगढ़ जिले के ढोल गांव की जागीर दी।
इस ताम्रपत्र का अर्थ यह है कि महाराणा प्रताप ने फौज व घोड़ों की कमी की वजह से 300 घुड़सवार तैयार रखने को कहा होगा। हालांकि ये घटना हल्दीघाटी युद्ध से 2 वर्ष पहले की है।
मतलब ये कि महाराणा प्रताप पहले ही जान चुके थे कि अब अकबर की ओर से हमला जरुर होगा, क्योंकि महाराणा प्रताप अकबर के 4 सन्धि प्रस्तावों को ठुकरा चुके थे।
मुगलों से युद्ध निकट जानकर महाराणा प्रताप ने गिरवा से कुम्भलगढ़ और उसके आगे तक के पहाड़ी इलाकों में मोर्चाबन्दी कर दी। कुम्भलगढ़, जो कि इस वक्त मेवाड़ की राजधानी थी, वहां रक्षा प्रबन्ध दृढ़ किया गया।

महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी दर्रे की रक्षा खातिर भी वहां कुछ सैनिक तैनात कर दिए। महाराणा प्रताप ने अनुभवी व कुछ महत्वपूर्ण लोगों को नये-नये पट्टे जागीर में दिए और बदले में उन्हें मेवाड़ की सेवा में रख लिया।
महाराणा ने मेवाड़ के मैदानी इलाकों में रहने वाली प्रजा को सख्त आदेश दिए कि जल्द से जल्द सभी प्रजाजन मेवाड़ के पर्वतीय इलाकों में चले जावें, अन्यथा मृत्युदण्ड दिया जावेगा।
महाराणा नहीं चाहते थे कि चित्तौड़ विध्वंस जैसी घटना मेवाड़ में फिर से हो, इस खातिर ऐसे सख्त आदेश दिए गए।
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के मैदानी इलाकों में फसल उगाने पर भी पाबन्दी लगा दी, ताकि मुगल फौज जब मेवाड़ आए, तो वे रसद का इन्तजाम ना कर पाए।
महाराणा ने समतल भूमि पर खेती करने वालों को भी मृत्युदण्ड की सजा दिए जाने के आदेश जारी किए। साथ ही साथ महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के मैदानी इलाकों में जो फसल पहले से उगी हुई थी, वह नष्ट कर दी।

यदि समतल भूमि पर खेती करना बंद न करवाया जाता, तो मुगल इन किसानों को मौत के घाट उतारकर अपनी विशाल सेना का पेट इन फसलों से भरते और उन्हें मौका मिल जाता अधिक समय तक मेवाड़ में रहकर उत्पात मचाने का।
महाराणा प्रताप के समकालीन कवि बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा लिखा गया दोहा :- मोकल हरा महाजुध मचते, बचतां सर नत्रिठ बहै। पातल तूझ तणौ पड़िया लगे, रूधर चरचरियो सदा रहै।।
अर्थात हे महाराणा मोकल के वंशज महाराणा प्रतापसिंह, महायुद्ध में आपकी तलवार बचते हुए शत्रुओं के सिरों पर बड़े वेग से चलती है, इसी कारण आपकी तलवार सदैव लहू से रँगी हुई रहती है।
मुंशी देवीप्रसाद महाराणा प्रताप के बारे में लिखते हैं कि “महाराणा प्रताप मर्यादा पुरुषोत्तम ऐसे थे, जो अपने मुल्क कानूनों दरबार के कायदों और बाप दादों के तरीकों को कि जिनका बर्ताव अमन चैन के दिनों में भी बहुत कम लोगों से हो सकता है, वे विपत्तियों में भी बड़ी अच्छी तरह से बरतते थे।”

अगले भाग में अकबर द्वारा हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व की गई तैयारियों के बारे में लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)