28 फरवरी, 1568 ई.
अकबर 3 दिन तक दुर्ग में रुका व 28 फरवरी को अजमेर के लिए निकला। अकबर चित्तौड़ किले से मांडल तक पैदल पहुंचा और वहां से सवार होकर अजमेर से थोड़ी दूर पहुंचकर फिर पैदल चला और दरगाह पहुंचा, क्योंकि अकबर ने मन्नत मांगी थी कि चित्तौड़ का किला फ़तह करके पैदल अजमेर दरगाह जाएगा।
6 मार्च, 1568 ई.
* अकबर अजमेर दरगाह पहुंचा और 10 दिन तक यहीं रहा। उसने 9 मार्च को चित्तौड़ विजय का फ़तहनामा जारी किया, जिसके बारे में अगले भाग में लिखा जाएगा।
अकबर ने चित्तौड़ के किले से सभी राज चिन्ह उतरवा दिये थे और नक्कारे, एक मन्दिर के भव्य दीपक व कुछ दरवाजे अपने साथ आगरा ले गया था। अकबर द्वारा चित्तौड़ से आगरा ले जाए गए कुछ दरवाजों में एक पीतल का दरवाजा भी था, जो कि रानी पद्मिनी के महल का था।
“वीरवर जयमल-पत्ता जी”
इनका नाम इतिहास में अक्सर साथ-साथ ही लिया जाता है।
आगरा में मूर्तियां :- अकबर ने आगरा में इन दोनों की हाथी पर सवार मूर्तियां बनवाई, जिन्हें औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया। किसी अनजान घर के बाहर रखी इन खण्डित मूर्तियों का फोटो जेम्स बगलर ने खींचा था। 1863 ई. में ये मूर्तियां दिल्ली के कूड़े-कर्कट में मिली और वर्तमान में ये मूर्तियां दिल्ली के अजायबघर में रखी गई हैं। एक हाथी वहां के पब्लिक पार्क में रखा हुआ है व दूसरे हाथी का कुछ पता नहीं है। अकबर ने जयमल-पत्ता की मूर्तियों वाले द्वार पर एक दोहा खुदवाया :- “जयमल बड़ता जीमणे, फतो बाहे पास। हिन्दू चढिया हाथियां, अडियो जस आकास।।”
इसका अर्थ है “बाहर से दरवाजे में घुसते हुए दाहिनी तरफ जयमल राठौड़ व बायीं तरफ पत्ता चुण्डावत की मूर्तियां है। मूर्ति में ये दोनों वीर हाथियों पर चढ़े हुए हैं और इनका सुयश और भी ऊपर उठकर आकाश तक जा पहुंचा है”
* जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर दुर्ग) के सूरजपोल द्वार पर भी जयमल-पत्ता की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियां हैं।
* नेपाल के भटगांव नामक कस्बे में स्थित एक मन्दिर ‘न्यातपौल’ के बाहर भी जयमल-पत्ता की पत्थरों से निर्मित मूर्तियां हैं।
* सर टॉमस रो का पादरी एडवर्ड लिखता है “चित्तौड़ एक पुराने बड़े राज्य का खास शहर है, जो कि ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। इसकी शहरपनाह का घेरा कम से कम 10 अंग्रेजी मील के बराबर होगा। आज तक यहां पर 200 से ज्यादा मन्दिर और बहुत से उम्दा और पत्थर के 1 लाख मकानों के खण्डहर नजर आते हैं। अकबर बादशाह ने इसको राणा उदयसिंह से फतह किया था। वह राणा एक कदीम हिन्दुस्तानी रईस था”
“युद्ध का निष्कर्ष व परिणाम”
मुगल फौज ने चित्तौड़ पर इस हमले में कुल तकरीबन 7,500 किलो बारुद का इस्तेमाल किया था। चित्तौड़ का कत्लेआम अकबर के चरित्र पर सबसे बड़ा दाग माना जाता है। 4 महीनों तक चले इस भीषण युद्ध में तकरीबन 30,000 मुगल मारे गए।
अकबर के जीवनकाल में उसे सबसे ज्यादा फौजी नुकसान इसी युद्ध में हुआ था। इस युद्ध के बाद अकबर के दूसरे कुछ बागी शासकों ने भयभीत होकर मुगल अधीनता स्वीकार कर ली, लेकिन महाराणा उदयसिंह अब भी अपने इरादों पर टिके हुए थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)