25 फरवरी, 1568 ई. – “रावत पत्ता चुण्डावत का बलिदान” :- रावत चुंडा के पुत्र रावत कांधल के पुत्र रावत सीहा चुंडावत हुए। रावत सीहा के पुत्र रावत जग्गा चुंडावत हुए, जो 1554 ई. में वागड़ वालों के विरुद्ध कुँवर प्रताप के नेतृत्व में लड़ी गई जैताणा की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
आमेट के चुंडावत राजपूत इन्हीं रावत जग्गा के वंशज हैं। रावत जग्गा चुंडावत के पुत्र रावत पत्ता चुंडावत हुए। वीर जयमल राठौड़, कल्ला राठौड़, रावत साईंदास चुंडावत, ईसरदास चौहान जैसे महत्वपूर्ण योद्धाओं के बलिदान के बाद केलवा के पत्ता चुंडावत ने मोर्चा संभाला।
(इस समय रावत पत्ता चुंडावत की जागीर केलवा थी, जो कि बाद में राठौड़ राजपूतों को प्रदान की गई) रावत पत्ता चुण्डावत अकबर की चित्तौड़ विजय में बाधा बने हुए थे। जो कोई व्यक्ति रावत पत्ता के सामने आता, वह क्षण भर में ही मारा जाता।
जिस स्थान पर रावत पत्ता अपने साथियों सहित लड़ रहे थे, वहां मुगलों की लाशों का ढेर लग गया। 25 फरवरी के दिन हुई लड़ाई में रावत पत्ता जैसा शौर्य कोई और न दिखा सका। रावत पत्ता ने जब मुगल हाथियों का संहार करना शुरू किया, तो इसकी सूचना अकबर को पहुंचाई गई।
ग्रंथ राणा रासो में लिखा है :- “वीर ईसरदास चौहान ने धनुष बाण हाथ में लिया और हाथियों को मार दिया। वह शत्रुओं का नाश करता हुआ स्वर्ग चला गया। फिर महाराणा का सामंत भोजराज चौहान हाथ में तलवार
लेकर शत्रुओं से भिड़ गया। जब वह शत्रुओं से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गया, तो अंत में वीर पत्ता चुंडावत ने क्रुद्ध होकर तलवार उठाई और मुगल सेना पर टूट पड़ा। वीर पत्ता का शौर्य देखकर बादशाह भी धन्य कहने लगा”
एक मुगल इतिहासकार ने लिखा है कि “पत्ता चुण्डावत मुगल फौज में नाश की लहर जैसे चल रहा था”
अकबर ने तंग आकर आखिरकार एक पागल मतवाला हाथी पत्ता चुण्डावत की तरफ छोड़ दिया। गोविन्द श्याम मन्दिर के पास उस हाथी ने खून से लथपथ रावत पत्ता चुण्डावत को सूंड से उठाकर जमीन पर पटक दिया।
हाथी ने रावत पत्ता चुण्डावत को सूंड से उठाया और अकबर की ओर ले गया। रावत पत्ता चुण्डावत अकबर से कुछ कहने ही वाले थे कि तभी उनके प्राण चले गए।गोविन्दश्याम जी का यह मन्दिर इस लड़ाई में मुगलों ने तोड़ दिया।
अब यहां सीताराम जी का मन्दिर है। यह मंदिर रामपोल के निकट ही स्थित है। अकबर के बयान पर अबुल फजल अकबरनामा में लिखता है :-
“जब मैं (अकबर) गोविन्दश्याम मन्दिर पर पहुंचा, तब एक महावत हाथी की सूंड में एक शख्स को लपेटकर मेरे सामने लाया। उस वक्त उसमें थोड़ी जान बाकी थी, पर थोड़ी देर में मर गया। महाबत ने अर्ज़ किया कि
यह शख्स किले का खास सर्दार लगता है, क्योंकि इसके इर्द-गिर्द बहुत से आदमियों ने जान दी है। दर्याफ्त करने पर मालूम हुआ कि वह नामी सर्दार पत्ता जगावत था”
चित्तौड़गढ़ के सभी द्वारों में से रामपोल अधिक विशेष है, क्योंकि इस द्वार पर कई शिलालेख लिखे गए हैं और यह द्वार अन्य द्वारों की अपेक्षा अधिक सुंदर है।
रामपोल में प्रवेश करते ही सामने की तरफ लगभग 40 कदम की दूरी पर रावत पत्ता चुण्डावत के स्मारक का पत्थर है, जहां उनकी छतरी बनी हुई है। इसी स्थान पर रावत पत्ता चुण्डावत वीरगति को प्राप्त हुए।
यहां पहले छतरी के स्थान पर केवल चबूतरा ही था, बाद में छतरी भी बनवा दी गई। प्रतिदिन यहां रावत पत्ता की पूजा देवताओं के समान होती है।
“कहीं मुगल कटे, यहां गज कटे। कहीं शीष गिरे, यहां कुम्भ फटे। मुगलों संग गज थर-थर कांपे। जद पत्ता चुण्डावत तलवार चलावे।।” अबुल फजल अकबरनामा में लिखता है :- “पत्ता चुण्डावत सबसे आखिर में कत्ल हुआ”
अकबर ने फतहनामा-ए-चित्तौड़ में रावत पत्ता चुण्डावत की तुलना 1000 घुड़सवारों से की। रावत पत्ता चुंडावत के पुत्र रावत करण सिंह आमेट की गद्दी पर बैठे।
रावत पत्ता चुंडावत के चौथे पुत्र शेखा सिंह चुंडावत के पुत्र दलपतसिंह चुंडावत को महाराणा राजसिंह ने लसाणी की जागीर प्रदान की। लसाणी मेवाड़ के द्वितीय श्रेणी के 32 ठिकानों में शुमार है।
2016 में आमेट में रावत पत्ता चुंडावत की प्रतिमा स्थापित की गई, जिसका अनावरण मेवाड़ के महाराणा महेंद्र सिंह जी द्वारा किया गया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रावत पत्ता चुंडावत के महल स्थित हैं।
इन महलों के सामने एक तालाब है, जिसे “पत्ता जी का तालाब” कहते हैं। रावत पत्ता चुंडावत…. धन्य है ये महान योद्धा, जिसने अंतिम बूंद तक लड़ते हुए इस महत्वपूर्ण युद्ध में सबसे अंत में वीरगति पाने का का गौरव हासिल किया।
अगले भाग में अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग में करवाए गए भीषण नरसंहार व विभिन्न लेखकों व इतिहासकारों द्वारा इस नरसंहार पर की गई टिप्पणियों के बारे में लिखा जाएगा
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)