1904 ई. – प्लेग का प्रकोप :- मेवाड़ में पहली बार प्लेग की भयंकर बीमारी फ़ैली, जिसकी शुरुआत राजियावास गांव से हुई, जो की कोठारिया के नज़दीक है। फिर धीरे-धीरे यह रोग पूरे मेवाड़ में फ़ैल गया।
मेवाड़ में प्रजा को हिदायत दी गई कि चूहों के मरते ही घर खाली कर दिए जाएं और बीमारों को अलग रखा जाए, लेकिन लोगों ने यह बात हल्के में ले ली।
कई लोग मर गए, फिर लोगों ने घर छोड़ दिए और खेतों में छप्पर डालकर बस गए, लेकिन यह बीमारी वहां भी फ़ैल गई। प्लेग के कारण हज़ारों लोगों की मृत्यु हो गई।
महकमा खास में नई नियुक्तियां :- 1905 ई. में बलवन्तसिंह कोठारी व अर्जुनसिंह कायस्थ ने महकमा खास से इस्तीफा दे दिया। महाराणा फतहसिंह ने यह कार्य महता गोपालसिंह और महासाणी हीरालाल पंचोली को सौंपा।
1906 ई. – बिजोलिया का उत्तराधिकार मसला :- बिजोलिया के सरदार कृष्णदास पंवार का निसंतान देहांत होने पर कामा के पृथ्वीसिंह बिना महाराणा की अनुमति के वहां के सरदार बन बैठे। महाराणा फतहसिंह ने सहाड़ा के हाकिम बख्शी मोतीलाल पंचोली को फौज समेत बिजोलिया भेजा।
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मोतीलाल ने पृथ्वीसिंह को समझाकर गढ़ खाली करवा दिया। पृथ्वीसिंह ने महाराणा से माफ़ी मांगी और महाराणा ने उनको कहा कि “तुम बिजोलिया के सबसे नज़दीकी रिश्तेदार हो और गद्दी के दावेदार हो, लेकिन बिना अनुमति के तुमने वहां बैठकर गलती की, पर अब तुम बिजोलिया की गद्दी पर बैठ सकते हो”
1909 ई. – महाराणा की हरिद्वार यात्रा :- 15 अप्रैल, 1909 ई. को महाराणा फतहसिंह एकलिंगनाथ जी मंदिर के गोस्वामी कैलाशानंद को साथ लेकर हरिद्वार यात्रा हेतु रवाना हुए। महाराणा 1 दिन कृष्णगढ़ व 3 दिन जयपुर में ठहरे और फिर देहरादून होते हुए हरिद्वार पहुंचे।
वहां उन्होंने स्वर्गीय महाराणा सज्जनसिंह के श्राद्ध की प्रकिया पूरी की। महाराणा ने वहां ब्राह्मणों, साधुओं व गरीबों को भोजन करवाया, धन वग़ैरह भी भेंट किया। महाराणा ने अपने तीर्थ गुरु को भी धन भेंट किया।
महाराणा ने हरिद्वार के ऋषिकुल की सहायता के लिए 10 हज़ार रुपए दिए। इस अवसर पर महाराणा फतहसिंह ने स्वर्ण का तुलादान किया। साथ ही महाराणा ने यह संकल्प भी लिया कि वे अब से कभी रंग द्वारा बालों को काला नहीं करेंगे।
2 अगस्त, 1909 ई. – उदयपुर में तेज बारिश :- 2 अगस्त से 4 अगस्त तक लगातार 2 दिन उदयपुर में भारी बारिश हुई, जिससे कुछ तालाब फूट गए।
पीछोला झील का पानी चांदपोल दरवाज़े तक आ गया, तो महाराणा फतहसिंह ने फतहसागर की नहर की फाटक खुलवाकर पानी का निकास करवा दिया, जिससे शहर को नुकसान नहीं हुआ।
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31 अक्टूबर, 1909 ई. – दरबार हॉल का निर्माण :- उदयपुर राजमहलों में एक दरबार हॉल का न होना महाराणा फतहसिंह को बहुत खटकता था, तो उन्होंने 31 अक्टूबर को एक भव्य दरबार हॉल बनवाने का विचार करके इसकी शुरुआत करवाई।
3 नवम्बर को हिंदुस्तान के वायसराय लॉर्ड मिंटो ने इस दरबार हॉल की नींव रखी और इसका नाम ‘मिंटो दरबार हॉल’ रखा गया। इसे तैयार होने में 20 वर्ष से भी ज्यादा समय लगा।
शाहपुरा के राजाधिराज से जुर्माना वसूलना :- शाहपुरा रियासत के राजाधिराज को मेवाड़ रियासत की तरफ से काछोला की जागीर मिली थी, इस कारण समय-समय पर उन्हें भी अन्य सरदारों की तरह दरबार में हाजिर होना पड़ता था।
राजाधिराज नाहरसिंह ने महाराणा की सेवा में उपस्थित होना बन्द कर दिया। पोलिटिकल अफसरों ने इस मामले को परखा और अंत में तय हुआ कि शाहपुरा की एक फौजी टुकड़ी तो हर साल तय समय तक महाराणा की सेवा में हाजिर रहेगी और शाहपुरा के स्वामी को हर दूसरे साल महाराणा की सेवा में हाजिर होना पड़ेगा।
इसके अलावा शाहपुरा के राजाधिराज नाहरसिंह ज़ुर्माने के रूप में महाराणा फतहसिंह को एक लाख रुपए अदा करे। इस प्रकार 1910 ई. में राजाधिराज नाहरसिंह ने महाराणा की सेवा में हाजिर होना शुरू कर दिया।
1911 ई. – जोधपुर प्रस्थान :- जोधपुर महाराजा सरदारसिंह राठौड़ का देहांत होने पर महाराणा फतहसिंह मातमपुर्सी के लिए जोधपुर पधारे।
दिसम्बर, 1911 ई. – महाराणा का स्वाभिमान :- इंग्लैंड के जॉर्ज पंचम व मेरी का दिल्ली आना हुआ। इस उपलक्ष्य में दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन हुआ व हिन्दुस्तान के प्रतिष्ठित राजा-महाराजाओं को बुलाया गया।
1903 ई. के दरबार की तरह इस बार भी महाराणा फतहसिंह दिल्ली तो पधारे, लेकिन अपनी वंश मर्यादा का ख़्याल करके ना तो शाही जुलूस में सम्मिलित हुए और ना ही दरबार में प्रवेश किया। महाराणा ने जॉर्ज, मेरी व वायसराय लॉर्ड हार्डिंग से मुलाकात की और उदयपुर लौट आए।
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महाराणा की ऐसी ख़ुद्दारी देखकर जॉर्ज पंचम ने उनको GCIE का ख़िताब दिया और दरबार में महाराणा की खाली पड़ी कुर्सी उदयपुर भिजवाई। वर्तमान में ये कुर्सी उदयपुर सिटी पैलेस में मौजूद है।
महकमा खास में नई नियुक्ति :- महता भोपालसिंह व महासाणी हीरालाल पंचोली का देहांत हो जाने के कारण महाराणा फतहसिंह ने 1912 ई. में महकमा खास की जिम्मेदारी पुनः बलवन्तसिंह कोठारी को सौंप दी।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)