* मारवाड़ नरेश राव जोधा राठौड़, जिन्होंने जोधपुर की स्थापना की थी। मारवाड़ की ख्यातों में वर्णन है कि उन्होंने एक चमार जाति के व्यक्ति को भूमि प्रदान की थी।
फिर उस भूमि पर उस व्यक्ति ने जोधवास नाम के एक गांव की स्थापना की। गांव का नाम जोधवास रखकर उस व्यक्ति ने अपनी कृतज्ञता प्रकट की।
* पन्ना (मध्यप्रदेश) के महाराजा रूद्रप्रताप सिंह जू देव बहादुर बुंदेला का शासनकाल 1870-1893 ई. तक रहा। महाराजा रूद्रप्रताप बुंदेला ने अजयगढ़ घाट का निर्माण करवाया।
पन्ना में स्थित एक ब्रिज समेत कई सड़कों का निर्माण कार्य भी इन महाराजा द्वारा करवाया गया। मात्र 45 वर्ष की आयु में महाराजा सा का देहांत हो गया।
* मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह जी के द्वितीय पुत्र सूरजमल जी के वंशजों की रियासत शाहपुरा रही, जो कि वर्तमान में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
छप्पनिया के भीषण अकाल (1899-1900) की त्रासदी को कम करने के लिए शाहपुरा के राजाधिराज नाहरसिंह राणावत ने अपने परिवार के गहने गिरवी रखकर नाहर सागर बांध व उम्मेद सागर बांध का निर्माण करवाया था।
* 1868 ई. में भीषण अकाल पड़ा, तब मेवाड़ के महाराणा शम्भूसिंह ने उस ज़माने के लाखों रुपए खर्च करके बाहर से अनाज मंगवाया। इस अकाल में 11 लाख 63 हज़ार लोगों को उदयपुर में भोजन करवाया गया।
अकाल के वक्त हैजा की बीमारी भी फैलने लगी, जिसके बाद कई लोग मरने लगे। उदयपुर में एकमात्र पिछोला झील में थोड़ा पानी शेष था।
मंत्रियों ने महाराणा से कहा कि आप यहां से कुछ कोस दूर चले जावें, लेकिन महाराणा ने कहा कि ऐसी विपत्ति में जो शासक प्रजा के काम न आ सके, वह शासक कहलाने योग्य नहीं।
महाराणा शम्भूसिंह ने जनता से कहा कि मरने वाले लोगों के शवाधान के बाद परिजनों के नहाने के लिए व प्यासों को पानी मिल सके इसलिए जनता को पिछोला झील के पास ही आ जाना चाहिए। इस तरह महाराणा के सत्कर्मों से अनेक लोगों के प्राण बच गए।
* राजपूत यदि ठान ले, तो प्रजाहित में रेगिस्तान में भी झील बनवा सकता है। जैसलमेर के रावल जैसल भाटी ने झील बनवाई, जिसका पुनर्निर्माण बाद में रावल घडसी भाटी ने करवाया। यह झील गडीसर (घड़सीसर) नाम से प्रसिद्ध है।
भाटी शासकों ने इस झील के चारों तरफ मंदिर व बगीचों का निर्माण करवाया। गड़ीसर झील का जो द्वार है, वो टीलो नाम की एक राज नर्तकी ने बनवाया। वर्तमान समय में जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए इस झील में बोटिंग की सुविधा उपलब्ध है।
* जनता के लिए नीमराणा में राजा टोडरमल चौहान ने एक भव्य 9 मंजिला बावड़ी का निर्माण शुरू करवाया। यह निर्माण कार्य उनके पुत्र राजा महासिंह जी ने पूर्ण करवाया। नीमराणा की यह ऐतिहासिक बावड़ी 18वीं सदी की है।
* हिंदुस्तान में राजपूतों ने अनेक रियासतों, नगरों, गांवों की स्थापना की है। इनमें से कई नगर ऐसे भी हैं, जहां कबीलों का राज हुआ करता था।
लेकिन इन कबीलों के राज में अन्य जातियों को लाकर बसाने व रोजगार दिलाने का सामर्थ्य नहीं था। राजपूतों ने जब भी किसी गांव, नगर, रियासत की स्थापना की, तब वहां हर जाति के लोगों को लाकर बसाया और उन्हें उनके कार्यों के अनुसार रोजगार उपलब्ध करवाया,
ताकि सुनियोजित रूप से स्थापना हो सके व राज्य की उन्नति हो। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
* गोरहा रियासत का सम्बंध अनूपशहर राज्य से है। गोरहा कासगंज से 5 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यहां के ठाकुर जसवंत सिंह जी के पुत्र कुँवर कंचन सिंह बड़गूजर थे।
कुँवर कंचन सिंह बड़गूजर ने महिलाओं की शिक्षा के लिए एक महाविद्यालय बनवाया और महिला शिक्षा को लेकर कई प्रयास किए।
आगरा डिवीजन में गंगानदी में आई एक बाढ़ के दौरान नरौरा से कछला तक बाढ़ में फँसे लोगों को बचाने के लिए कुंवर कंचन सिंह बड़गूजर ने अपने सबसे समझदार हाथी ‘जंग बहादुर’ को लगाया,
जिसके चारों ओर लंबी रस्सियां बांध दी गई और बाढ़ग्रस्त गाँवो में घूम घूमकर लोगों को बचाया। पोस्ट लेखक :- जितेंद्र सिंह बड़गूजर
* आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा के शासनकाल में एक अकाल पड़ा था, जिसके कुछ वर्ष बाद उन्होंने मानसागर झील का निर्माण करवाया, ताकि भविष्य में अकाल के प्रभाव को कम किया जा सके।
बाद में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने इस झील को मजबूती प्रदान की। इस झील में जलमहल भी स्थित है।
* 17वीं सदी में अकाल राहत कार्य के तहत मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने राजसमन्द झील बनवाई, जिसमें उस ज़माने के 1 करोड़ 44 लाख रुपए खर्च हुए थे।
इस खर्च में झील निर्माण, प्रतिष्ठा व दान सम्मिलित है। खर्च की राशि इसी झील की प्रशस्ति में खुदवाई गई। यह झील बनवाने में 15 वर्ष लगे।
राजसमन्द झील की पाल नौचौकी कहलाती है, क्योंकि इसकी लंबाई 999 फीट, चौड़ाई 99 फीट, तीन छतरियां स्थित हैं,
जिनमें प्रत्येक में 9 का कोण, प्रत्येक छतरी की ऊंचाई 9 फीट, पाल की सीढ़ियां किसी भी तरफ़ से गिनने पर प्राप्त संख्या 9, पाल पर बनी चौकियों की संख्या भी 9 है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)