राव गांगा राठौड़ द्वारा सोजत में थाना कायम करना :- मारवाड़ नरेश राव गांगा राठौड़ व उनके बड़े भाई वीरम जी, जो कि सोजत के स्वामी थे, दोनों के बीच संघर्ष लगातार बना हुआ था। राव गांगा ने वीर कूंपा जी को भी अपने पक्ष में कर लिया था।
कूंपा जी जोधपुर पहुंचे फिर कुछ समय बीतने के बाद सोजत पर अधिकार करने की योजना पर कूंपा जी की राय पूछी गई। कूंपा जी ने कहा कि
“हर साल सोजत के कुछ गांवों को अपने अधिकार में लेते रहना चाहिए, जिससे वीरम जी की धीरे-धीरे क्षति होगी और सोजत के गांव धौलहरा में एक थाना कायम कर देना चाहिए।”
राव गांगा ने कूंपा जी की बात मानकर 4 हज़ार चीधड़ों (अहदियों) को धौलहरे के थाने पर तैनात कर दिया। चीधड़ों की खासियत थी कि ये लोग अमल खाते, आराम से भोजन करते और पलंग पर पड़े रहते, लेकिन जब लड़ाई होती तब लड़कर मरने से पीछे नहीं हटते।
राव गांगा ने अपने 4 उमराव माला रूपावत, सांडा सांखला, रायपाल सांहणी व मांगा डूंगरसियोत को भी कई घुड़सवारों सहित धौलहरा के थाने पर भेज दिया।
राव गांगा की पराजय :- राव गांगा भी अक्सर धौलहरा के थाने पर जाया करते थे, इस समय वे वहीं थे। होली का दिन आया, मुहता रायमल (सोजत के प्रबंधक व वीरमजी के सहयोगी) अपने साथियों सहित माण्डावा गांव में पड़ाव डालकर त्योहार मना रहे थे।
मुहता रायमल ये जानते थे कि होली के दिन राव गांगा जोधपुर जाएंगे, इसलिए उन्होंने जान बूझकर ये दर्शाया कि वे तो होली के रंग में मग्न हैं। राव गांगा अपने कई साथियों सहित थाने से रवाना होने के लिए घोड़ों पर सवार हुए।
तभी रायपाल सांहणी ने राव गांगा से कहा कि अभी आपका यहां से जाना उचित नहीं, क्योंकि मुहता रायमल अपनी सेना सहित 7 कोस दूर ही ठहरा हुआ है। राव गांगा ने कहा कि “वह बनिया (मुहता रायमल) तो अभी फाग खेल रहा है।”
सांहणी ने राव गांगा से फिर कहा कि “आप अभी मेरी बात नहीं मान रहे, पर आप चले गए तो सुबह आकर देखेंगे तो यहाँ लाशों के ढेर मिलेंगे।”
राव गांगा हंसते हुए वहां से रवाना हो गए और पीछे से मुहता रायमल ने सही मौका समझकर धौलहरा के थाने पर आक्रमण कर दिया। धौलहरा के थाने पर हजारों आदमी तैनात थे, पर सांहणी द्वारा सचेत करने पर भी सचेत नहीं हुए।
आक्रमण रात्रि में हुआ और वो भी होली के दिन होने से सब असावधान थे। नतीजतन धौलहरा के थाने पर तैनात कई आदमी मारे गए और बचे खुचे भाग निकले।
मुहता रायमल ने छोटी सी सेना की सहायता से इतना बड़ा काम कर दिखाया। उन्होंने राव गांगा के सिपाहियों के घोड़े लूटकर सोजत जाकर वीरम जी को भेंट किए और कहा कि “आपके बाप-दादों के घोड़े लाया हूँ”।
वीरम जी बड़े प्रसन्न हुए और उधर राव गांगा जी ने अगले 2 वर्षों तक सोजत की तरफ आक्रमण करने का विचार तक न किया।
ऊहड़ राठौड़ हरदास व राव गांगा के बीच हुई लड़ाई :- ऊहड़ राठौड़ हरदास बड़े ही वीर पुरुष थे। एक दिन हरदास व कुँवर मालदेव (राव गांगा के ज्येष्ठ पुत्र) शिकार के लिए गए।
कुँवर मालदेव को एक जंगली सूअर दिखाई दिया, तभी कुँवर ने कहा कि इस सूअर का शिकार कोई दूसरा नहीं करेगा, इसे मैं ही मारूंगा। सूअर भाग निकला, अंधेरा होने को आया लेकिन सूअर दिखाई न दिया।
तभी वह सूअर हरदास को दिखाई दिया और उन्होंने सूअर को मार गिराया। कुँवर मालदेव इस बात से हरदास पर बड़े क्रोधित हुए, जिसके बाद हरदास सोजत में वीरम जी (राव गांगा के बड़े भाई) के पास चले गए।
एक दिन हरदास व राव गांगा की सेना के बीच छुटपुट लड़ाई हुई, जिसमें हरदास जिस घोड़े पर सवार थे उससे गिर पड़े और घोड़ा भी घावों के चलते मर गया। यह घोड़ा वीरम जी ने हरदास को इस लड़ाई में जाने हेतु दिया था।
यह घोड़ा वीरम जी को प्रिय था, इसलिए उन्होंने हरदास को ताना मारा कि तूने मेरा घोड़ा मरवा दिया। हरदास को ये बात बड़ी बुरी लगी कि वीरम जी को मुझसे ज्यादा घोड़े की फिक्र है।
इसलिए हरदास वहां से नागौर जाने के लिए रवाना हुए। मार्ग में शेखा जी (राव सूजा के तीसरे पुत्र) मिले और वे हरदास को पीपाड़ में स्थित अपने घर पर ले गए और उनकी चिकित्सा करवाई।
पदमसी ओसवाल का जोधपुर आगमन :- राव गांगा ने अपने ससुर सिरोही के राव जगमाल देवड़ा से कहा कि मेरी इच्छा है कि मैं आपके राज्य के प्रधानामात्य पदमसी को अपने साथ ले जाऊं।
पदमसी सिंघवी जाति के ओसवाल थे। राव जगमाल ने अपने दामाद की यह इच्छा पूरी कर दी और पदमसी जोधपुर में बस गए। पदमसी के घराने ने जोधपुर राज्य की बड़ी सेवा की।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)