मारवाड़ नरेश राव गांगा राठौड़ (भाग – 1)

राव गांगा राठौड़ का परिचय :- ये मारवाड़ नरेश राव सूजा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर बाघा के दूसरे पुत्र थे। राव गांगा का जन्म 18 अप्रैल, 1483 ई. को हुआ। डॉक्टर ओझा ने राव गांगा का जन्म 6 मई, 1484 ई. को गुरूवार के दिन होना लिखा है।

राव गांगा का व्यक्तित्व :- राव गांगा स्वभाव से बहुत नम्र व सुशील थे। वे अधिक महत्वाकांक्षी नहीं थे और ना ही उन्होंने राज्य वृद्धि के लिए कोई खास प्रयास किए। राव गांगा में एक अवगुण था कि वे अफीम का सेवन बहुत ज्यादा करते थे।

वीरम जी का राजतिलक रद्द होकर राव गांगा का राजतिलक होना :- 1514 ई. में कुँवर बाघा ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपने पिता से कहा कि मेरी इच्छा है कि मेरे ज्येष्ठ पुत्र वीरम को आप अपना उत्तराधिकारी बनाइए।

राव सूजा ने अपने पुत्र शेखा को बुलाकर कहा कि बाघा की इच्छा अनुसार “मैं वीरम को उत्तराधिकारी घोषित करने वाला हूँ, इसलिए मुझे इसमें तुम्हारी सहमति भी चाहिए ताकि बाद में कोई बखेड़ा न हो।”

मेहरानगढ़ दुर्ग

कुँवर शेखा ने कहा कि इस अवस्था में बाघाजी द्वारा कही गई बात को तो मैं भी नहीं टाल सकता, मेरी सहमति है। 1514 ई. में कुँवर बाघा का व 1515 ई. में राव सूजा का देहांत हो गया।

बाघाजी के ज्येष्ठ पुत्र वीरम के राजतिलक की तैयारियां की गई। सभी सरदार व भाई-बेटे आदि मेहरानगढ़ दुर्ग में उपस्थित हुए। बारिश आने से सभी सरदारों के कपड़े भी भीग गए।

पचायण जी (राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र अखैराज के पुत्र) ने वीरम जी की माता से कहा कि “हमारे वस्त्र भीग गए हैं और बालक भी सब भूखे हैं, इसलिए आप कपड़ों व भोजन का प्रबंध करवाइए।”

वीरम जी की माता बहुत जल्द राजमाता बनने वाली थीं, इसलिए अभिमान वश कहा कि “मैं तुम्हारी चाकर नहीं हूँ कि कपड़ों और भोजन का बंदोबस्त करूँ”

मेहरानगढ़ दुर्ग

बाघाजी के द्वितीय पुत्र गांगा की माता, जो कि चौहान वंश से थीं, उनको इस बात का पता चला, तो उन्होंने तुरंत बिछौने व कपड़ों का प्रबंध करवाया और साथ ही भोजन परोसकर थाल भी भिजवा दिए।

मारवाड़ के राठौड़ सरदार भीगे हुए थे और भूखे थे और ऊपर से वीरमजी की माता ने उनका अपमान किया। इसके विपरीत गांगा जी की माता ने उनका आदर सत्कार किया, जिससे सब सरदारों का ध्यान उनकी तरफ गया।

सरदारों ने विचार करके वीरमजी की माता से कहलवा दिया कि आज तो राजतिलक का मुहूर्त टल गया है, अगले मुहूर्त पर राजतिलक करेंगे। सरदारों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उस समय गांगाजी मारवाड़ में नहीं थे।

गांगाजी अक्सर मेवाड़ के महाराणा सांगा के यहीं रहा करते थे और इस समय भी वहीं थे। पचायण राठौड़ ने गांगाजी की माता से कहा कि “राजतिलक तो आपके पुत्र का ही होगा, आप तो तुरंत पत्र लिखकर गांगाजी को बुलाइये।”

राव गांगा राठौड़

फिर यह पत्र चित्तौड़गढ़ में रह रहे गांगाजी के पास पहुंचा, तो उन्होंने महाराणा सांगा से आज्ञा ली और जोधपुर की तरफ रवाना हुए। मेहरानगढ़ पहुंचे, तो सरदारों ने उनको कुँवरपदे के महलों में ठहराया।

वीरमजी कुँवरपदे के महलों के नीचे से निकलने को तैयार नहीं हुए, तो तलहटी तक आने-जाने के लिए चामुंडा माता के मंदिर के तले एक छोटा द्वार बनवाया गया।

आखिरकार सरदारों ने वीरमजी का राजतिलक रद्द करके राव गांगा राठौड़ का राजतिलक कर दिया। यह राजतिलक बगड़ी के ठाकुर पचायण जी ने अपना अंगूठा चीरकर किया।

डॉक्टर ओझा के अनुसार राव गांगा का राजतिलक 8 नवम्बर, 1515 ई. को गुरुवार के दिन हुआ व विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार यह राजतिलक 25 अक्टूबर, 1515 ई. को हुआ।

मेहरानगढ़ का भीतरी दृश्य

इतिहासकार भूरसिंह राठौड़ ने सामन्तों द्वारा की गई इस कार्रवाई को अविवेकपूर्ण कहा है, क्योंकि इस कार्य से राठौड़ों में वैमनस्य हुआ और भविष्य में होने वाले आपसी झगड़ों को बढ़ावा मिला।

शेखाजी द्वारा वीरम जी का पक्ष लेना :- राव सूजा के सामने उनके तीसरे पुत्र शेखा जी ने सहमति प्रदान की थी कि उत्तराधिकारी वीरम जी को ही बनाया जावे, इसलिए शेखा जी ने अभी भी वीरम जी का ही पक्ष लिया।

शेखाजी वीरम जी को लला कोटड़ी में लेकर आए और वहीं अपने हाथ से उनका राजतिलक करके सोजत भेज दिया। वीरम जी अपनी माता सहित सोजत चले गए। मुहता रायमल भी उनके साथ सोजत चले गए, जो कि एक बुद्धिमान व वीर पुरुष थे।

राव गांगा राठौड़

वीरम जी सोजत पर शासन करने लगे, तब राज्य का कारोबार मुहता रायमल के द्वारा ही किया जाता। जोधपुर का राज हाथ से निकल जाने से वीरम जी का मन बड़ा विचलित रहता था, पर रायमल उन्हें सांत्वना देते रहते।

वीरम जी को एक तो मुहता रायमल जैसे योग्य प्रबंधक का साथ था व दूसरा वीर कूंपा राठौड़ (राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र अखैराज के पुत्र मेहराज के पुत्र) का सहयोग प्राप्त था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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