मारवाड़ नरेश राव जोधा राठौड़ (भाग -10)

बीकानेर राज्य की स्थापना :- जांगलू प्रदेश में जाटों की संख्या अधिक थी, जिनके मुखिया अक्सर आपस में लड़ते थे। फिर राव जोधा ने जांगल प्रदेश पर पूरी तरह से काबू पाने के लिए अपने पुत्र बीका को उस तरफ भेजा।

कुँवर बीका असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने पिता से संघर्ष व नए राज्य जोधपुर की स्थापना से बहुत कुछ सीखा था। कुँवर बीका 1465 ई. में अपने काका कांधल व सांखला के साथ सेना सहित जांगलू की तरफ रवाना हुए।

20 वर्षों तक राव बीका ने संघर्ष किया और 1485 ई. में नया दुर्ग बनवाकर 1488 ई. में बीकानेर की स्थापना कर दी। बीकानेर राजपूताने में राठौड़ों की दूसरी रियासत थी। राव बीका का विस्तृत इतिहास भविष्य में बीकानेर के इतिहास में लिखा जाएगा।

राव जोधा की नागौर विजय :- नागौर पर इस समय फतन खां कायमखानी का राज था। 1467 ई. में राव जोधा के 3 पुत्र रायपाल, करमसी व वणवीर नागौर में फतन खां के पास पहुंचे।

राव बीका राठौड़

फतन खां ने विचार किया कि राठौड़ों का प्रभाव हर दिन बढ़ता जा रहा है, ऐसे में इन्हें शरण देकर अपने यहां नियुक्त कर दिया जावे तो तरक्की होगी। फतन खां ने करमसी को खींवसर व रायपाल को आसोप की जागीर दे दी।

वणवीर अपने बड़े भाई करमसी के साथ खींवसर में ही रहने लगे। इस बात का पता राव जोधा को चला, तो उन्होंने फौरन अपने पुत्रों को लौट आने के लिए कहलवाया।

फिर तीनों भाई अपने बड़े भाई बीका जी के पास जांगलू की तरफ चले गए। फतन खां को यह बात खराब लगी कि उसे बताए बिना तीनों भाई जागीरें छोड़कर चले गए। इस कारण फतन खां ने मारवाड़ में उत्पात मचाते हुए गांव लूटना शुरू किया।

मारवाड़ में होने वाली लूटखसोट को भला राव जैसा कैसे सहन करते। राव जोधा ने इसका मुंहतोड़ उत्तर देते हुए नागौर पर सेना सहित चढ़ाई करके कायमखानियों को परास्त किया।

फतन खां भागकर झुंझुनूं की तरफ चला गया। राव जोधा ने नागौर को अपने राज्य में शामिल कर लिया और अपने पुत्रों को अपने पास बुलाया। राव जोधा ने करमसी को खींवसर व रायपाल को आसोप की जागीरें देकर सन्तुष्ट किया।

राव जोधा का अजमेर व सांभर पर अधिकार :- 1468 ई. में मेवाड़ के उदयकर्ण (ऊदा) ने अपने महान पिता महाराणा कुम्भा की हत्या कर दी। उदयकर्ण ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए अपने पड़ोसियों को जागीरें देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया।

उदयकर्ण ने विचार किया कि यदि राठौड़ों को संतुष्ट कर दिया जावे, तो आवश्यकता पड़ने पर उनकी भी मदद ली जा सकेगी। इसी बीच उसने राव जोधा को अजमेर व सांभर के इलाके दे दिए।

उदयकर्ण

छापर-द्रोणपुर पर अधिकार :- दयालदास री ख्यात में लिखा है कि राव जोधा ने छापर-द्रोणपुर के स्वामी राणा बैरसल को परास्त करके इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। राव जोधा अपने पुत्र जोगा को द्रोणपुर में प्रबंधक नियुक्त करके लौट गए।

जोगा इस क्षेत्र का उचित प्रबंध नहीं कर सके, यह बात स्वयं उनकी पत्नी ने ही अपने ससुर राव जोधा तक पहुंचा दी। फिर राव जोधा ने जोगा को अपने पास बुलाकर अपने दूसरे पुत्र बीदा को वहां भेजा।

इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं कि पति द्वारा राज्य प्रबंध ठीक से ना करवाने पर स्वयं पत्नी ने पति का विरोध किया हो। बीदा ने इस क्षेत्र का प्रबंध अच्छी तरह किया, जिससे यह क्षेत्र मोहिलवाटी के स्थान पर बीदावाटी कहा जाने लगा।

बाघा राठौड़ (राव जोधा के भाई कांधल के पुत्र), राणा बैरसल व उनके भाई नरबद ने दिल्ली जाकर बादशाह बहलोल लोदी से मदद मांगी। बहलोल लोदी ने हिसार के सूबेदार सारंग खां को सेना सहित उनकी मदद की खातिर भेजा।

जब यह सेना द्रोणपुर पहुंची, तो वहां नियुक्त बीदा (राव जोधा के पुत्र) ने इस सेना का सामना करने की बजाय अपने भाई बीका के पास बीकानेर जाना उचित समझा। इस तरह राणा बैरसल ने छापर-द्रोणपुर पर पुनः अधिकार कर लिया।

राव बीका ने अपने पिता राव जोधा के पास सन्देश भेजकर कहलवाया कि यदि आप सहायता दें, तो बीदा को द्रोणपुर का राज्य पुनः दिलवा दें। राव जोधा ने राव बीका के निवेदन पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि राव जोधा बीदा से नाराज़ थे।

इस नाराजगी का कारण ये था कि एक बार राव जोधा ने हाड़ी रानी के कहने पर बीदा से लाडनूं मांगा था, पर बीदा ने देने से मना कर दिया। राव जोधा से सहायता न मिलने पर राव बीका ने स्वयं ही अपने भाई बीदा को द्रोणपुर का राज्य दिलाने का फैसला लिया।

राव जोधा

राव बीका ने सारंग खां को परास्त करके द्रोणपुर का राज्य बीदा को दिलवा दिया। इस घटना का मुहणौत नैणसी ने कुछ अलग ढंग से लिखा है और राव जोधा द्वारा सारंग खां को परास्त करने का वर्णन किया है।

परन्तु सभी पक्षों पर गौर करने के बाद मुझे दयालदास री ख्यात का वर्णन सही लगा, इसलिए यहां केवल वही वर्णन किया गया है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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