मारवाड़ नरेश राव सूजा राठौड़ (भाग – 2)

राव सूजा के पुत्र कुँवर नरा जी की पोकरण पर चढ़ाई :- राव सूजा ने अपने पुत्र नरा को फलौदी की तरफ भेजा, उस समय पोकरण पर खींवा (क्षेमराज) का अधिकार था। एक दिन नरा ने अपनी माता लक्ष्मी भटियाणी को दुःखी देखा, तो पूछा कि क्या बात है ?

माता ने कहा कि “मेरे संबंध के लिए पहले पोकरण के स्वामी खींवा के पास नारियल भेजा गया था, पर उसने यह कहकर मना कर दिया कि मेरे दांत बड़े हैं। यह अपमान आज तक मुझे कचोटता है।”

नरा ने कहा कि “मैं कई दिनों से सोच रहा था कि पोकरण पर अधिकार किया जावे, पर अब आपकी बात सुनकर मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं पोकरण पर आक्रमण अवश्य करूंगा।”

नरा ने एक योजना बनाई और एक पुरोहित से कहा कि हम दोनों बनावटी झगड़ा करेंगे। फिर एक दिन इन दोनों ने सबके सामने झगड़ा किया और फिर पुरोहित नाराज़ होकर पोकरण चले गए।

राव नरा राठौड़

पोकरण के स्वामी खींवा ने उक्त पुरोहित को अपना विश्वासपात्र बना लिया। एक दिन खींवा अपने साथियों सहित उग्रासर गांव में गोठ जीमने के लिए गए। पुरोहित ने नरा के पास सन्देश भिजवा दिया कि यही सही वक्त है।

नरा 500 घुड़सवारों के साथ बारात के रूप में रवाना हुए और स्वयं दूल्हे का वेश धरा। खींवा को कुछ आशंका हुई, तो उन्होंने अपने आदमी भेजकर पता लगाने का प्रयास किया। खींवा के आदमियों ने नरा से पूछताछ की तो मालूम पड़ा कि यह तो बारात है।

यह बात खींवा तक पहुंची, तो उन्हें सन्देह हो गया कि कुछ तो अवश्य गड़बड़ है। नरा अपनी सेना सहित पोकरण के द्वार पर पहुंचे, तब पुरोहित ने द्वारपाल से कहकर द्वार खुलवा दिया।

नरा ने द्वारपाल को भाले से मार दिया और खींवा के थोड़े-बहुत सैनिक जो गढ़ में थे, वे भी मार दिए गए। खींवा पोकरण की तरफ रवाना हुए, तब तक उन्हें पता चला कि पोकरण पर तो नरा ने अधिकार कर लिया है।

खींवा निराश होकर किसी तरह समय व्यतीत करने लगे। खींवा के पुत्र लूका बड़े हुए, तो पोकरण के राठौड़ों ने लूका के नेतृत्व में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। एक बार लूका ने पोकरण वालों से उनके पशु छीन लिए।

पोकरण दुर्ग

जिसके बाद नरा अपने साथियों सहित लूका का सामना करने निकले। दोनों पक्षों में लड़ाई हुई, जिसमें लूका ने तलवार के एक ही वार से नरा राठौड़ का सिर धड़ से अलग कर दिया। नरा की पत्नियां उनके साथ सती हो गईं।

राव सूजा द्वारा पोकरण का प्रबंध करना :- नरा के देहांत का समाचार सुनकर राव सूजा ने बाड़मेर पर आक्रमण करके बाड़मेर, कोटड़ा आदि इलाकों को लूटा और फिर पोकरण चले आए।

राव सूजा ने पोकरण का अधिकारी नरा के पुत्र गोविंद को नियुक्त किया। लेकिन वहां के पोकरणा राठौड़ आए दिन बखेड़ा करते थे, जिसे रोकने में गोविंद राठौड़ असफल रहे।

राव सूजा ने गोविंद व पोकरणा राठौड़ खीवा को अपने यहां बुलाकर दोनों में सन्धि करवा दी। राव सूजा ने आधी-आधी भूमि दोनों में बांट दी। गोविंद राठौड़ के 2 पुत्र हुए :- जैतमाल व हम्मीर। हम्मीर को फलौदी व जैतमाल को सातलमेर का क्षेत्र दिया गया।

राव सूजा राठौड़

रायपुर के सींधल राठौड़ों का उत्पात :- 1498 ई. में रायपुर के सींधल राठौड़ों ने उत्पात मचाया। सींधलों ने सोजत में भी उत्पात मचाया, तब राव सूजा ने अपने पुत्र कुँवर शेखा को रायपुर की तरफ भेजा।

17 दिनों तक दोनों पक्षों में लड़ाइयां हुईं। सींधल राठौड़ों ने बड़ी वीरता से सामना किया, पर रसद की कमी के कारण सींधल राठौड़ों ने लड़ाई समाप्त कर दी।

18वें दिन सींधलों के सरदार खंगार ने कुँवर शेखा से सन्धि कर ली। सींधल खंगार ने कुँवर शेखा को फ़ौज खर्च की रकम अदा कर दी, जिसके बाद कुँवर शेखा अपने पिता के पास लौट आए।

चाणोद के सींधल राठौड़ों का उत्पात :- चाणोद के सींधल राठौड़ों ने उत्पात मचाया, तब 1503 ई. में राव सूजा स्वयं इस बगावत के दमन हेतु गए। राव सूजा राठौड़ व सींधल राठौड़ों में युद्ध हुआ।

राव सूजा राठौड़

5 दिन तक दोनों पक्षों में लड़ाई होती रही, छठे दिन सींधलों के सरदार सूजा, राव सूजा के समक्ष उपस्थित हो गए। राव सूजा उन्हें जोधपुर ले आए, जहां कुछ दिन रहने के बाद राव सूजा ने सींधल सूजा को फिर से चाणोद की जागीर लौटा दी।

जैतारण के सींधल राठौड़ों का उत्पात :- इन्हीं दिनों जैतारण के सींधल राठौड़ों ने बगावत कर दी। इन्होंने पहले भी राव जोधा के समय बगावत की थी और अब राव सूजा के समय भी पुनः बगावत कर दी।

राव सूजा अपने पुत्र कुँवर ऊदा आदि के साथ ससैन्य गए और जैतारण के सींधल राठौड़ों को परास्त किया। राव सूजा ने जैतारण को सींधल राठौड़ों से छीनकर अपने पुत्र ऊदा को सौंप दिया।

कुँवर ऊदा के वंशज ऊदावत राठौड़ कहलाए। 4 पीढ़ी तक जैतारण पर ऊदावतों का ही अधिकार रहा। इस प्रकार मारवाड़ नरेश को बार-बार सींधल राठौड़ों से उलझना पड़ा।

राव सूजा राठौड़

राव सूजा का शिलालेख :- राव सूजा का एक शिलालेख साथीणा (बिलाड़ा) से मिला है। यह शिलालेख 17 मई, 1512 ई. को सोमवार के दिन खुदवाया गया।

कुँवर बाघा का देहांत :- 3 सितंबर, 1514 ई. को राव सूजा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर बाघा राठौड़ का देहांत हो गया। अपने ज्येष्ठ पुत्र के देहांत से राव सूजा का स्वास्थ्य बिल्कुल बिगड़ गया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Varun singh rana
    September 24, 2022 / 11:51 am

    Kindly write something about history of bacchal rajputs of Bagad desh.

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