बीकानेर चित्रशैली :- बीकानेर राठौड़ राजपूतों की रियासत रही है, जिसकी स्थापना राव जोधा राठौड़ के पुत्र राव बीका राठौड़ ने की। बीकानेर चित्रशैली का उद्भव बीकानेर के महाराजा रायसिंह राठौड़ के शासनकाल (1574 ई. – 1612 ई.) में हुआ।
बीकानेर चित्रशैली के प्रारंभिक चित्रों पर जोधपुर (मारवाड़) चित्रशैली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। इस समय बीकानेर चित्रशैली में जो प्रारंभिक चित्र बनाया गया, वो भागवत पुराण से सम्बंधित था।
बीकानेर चित्रशैली में सबसे महत्वपूर्ण योगदान मथेरण घराने व उस्ता परिवार का है। उस्ता कला में ऊंट की खाल पर सोने का चित्रण किया जाता था व मथेरण कला में शासकों के व्यक्तिगत चित्र उकेरने का प्रचलन था।
उस्ता कला ईरान से भारत आई। उस्ता चित्रकारों को महाराजा रायसिंह बीकानेर लेकर आए। इन चित्रकारों ने उस्ता कला को बीकानेर में शुरू किया।
महाराजा अनूपसिंह राठौड़ के शासनकाल (1669-1698 ई.) में बीकानेर चित्रशैली बहुत ही शुद्ध रूप में पहुंच चुकी थी। महाराजा अनूपसिंह ने अनेक विद्वानों को आश्रय दिया था।
महाराजा अनूपसिंह ने मुस्लिम चित्रकारों से राजपूती सभ्यता और संस्कृति पर आधारित अनेक चित्र बनवाए। इनमें कई चित्र महाराजा अनूपसिंह ने अपनी रुचि के अनुसार पौराणिक कथाओं से संबंधित भी बनवाए।
यह समय बीकानेर चित्रशैली का स्वर्णकाल था। उस्ता कला भी अपने चर्मोत्कर्ष पर थी। महाराजा अनूपसिंह ने मथेरण कला को संरक्षण दिया। मथेरण कला के कलाकार जैन होते थे, जो महात्मा कहलाते थे।
शुरुआत में मथेरण चित्रकार सिर्फ जैन होते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह कला अन्य चित्रकार भी सीखने लगे। मथेरण चित्रकार त्योहार आदि अवसरों पर राजाओं के चित्र बनाकर उन्हें भेंट करते थे।
नई दिल्ली, बड़ौदा और बीकानेर के संग्रहालयों में आज भी महाराजा अनूपसिंह के समयकाल में बने हुए चित्र मौजूद हैं। मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने कई चित्रकारों को अपने यहां से निकाल दिया, तो बीकानेर वालों ने इन कलाकारों को अपने यहां आश्रय दिया।
महाराजा गजसिंह राठौड़ के शासनकाल (1745-1787 ई.) में प्रसिद्ध चित्रकार शाह मुहम्मद थे। बीकानेर शैली का सबसे पुराना व्यक्तिचित्र शाह मुहम्मद ने ही बनाया। महाराजा डूंगरसिंह के शासनकाल (1872-1887 ई.) में बीकानेर चित्रशैली पर यूरोपियन प्रभाव बढ़ने लगा।
बीकानेर चित्रशैली में कलाकार का नाम, कलाकार के पिता का नाम व संवत लिखा होता था। ऐसी विशेषता राजपूताने की किसी अन्य चित्रशैली में देखने को नहीं मिलती।
बीकानेर चित्रशैली में पीले, हरे, लाल व बैंगनी रंगों की प्रधानता रही। पशुओं में घोड़े व ऊंट के चित्र अधिक उकेरे गए व पक्षियों में चील और कौवे का अधिक चित्रांकन हुआ। वृक्ष चित्र में आम को अधिक महत्व दिया गया।
बीकानेर के चित्रों में सुनहरे छत्तों से युक्त बादलों से भरे आकाश, छल्लेदार झालर की तरह झूलते हुए बादल, फव्वारे, चीनी-ईरानी कला से प्रभावित मेघ मण्डल, बरसते बादलों में से सारस-मिथुनों की नयनाभिराम आकृतियां दर्शाई जाती थीं।
बीकानेर चित्रशैली में पुरुष के हाथ में माला, पीठ पर ढाल व ऊंची शिखराकार पगड़ी दर्शाई जाती थी। स्त्री को पारदर्शी ओढ़नी में दर्शाया जाता था व मोतियों के आभूषणों का बहुत ज्यादा अंकन होता था। दीपक सज्जा के रूप में स्त्री का चित्रण किया जाता था।
बीकानेर चित्रशैली पर पंजाबी व दक्षिणी शैली का प्रभाव भी है। इसका कारण ये है कि मुगलकाल में बीकानेर के शासक कई वर्षों तक दक्षिण भारत में गवर्नर के पद पर रहे थे। महाराजा रायसिंह जब बुरहानपुर में गवर्नर थे, तब उन्होंने वहां कई कलाकृतियों का संग्रह किया।
बीकानेर चित्रशैली के चित्र भगवदगीता, कृष्णलीला, राग-रागिनी, रसिकप्रिया, बारहमासा, सामंती वैभव, शिकार, महफ़िल आदि से सम्बंधित होते थे।
बीकानेर की लघु चित्रशैली पर हरमन गोएट्ज ने ‘आर्ट एंड आर्किटेक्स ऑफ बीकानेर’ नामक एक पुस्तक भी लिखी है।
बीकानेर में मथेरण कला के जो प्रमुख चित्रकार हुए, उनके नाम कुछ इस तरह हैं :- जयकिशन, रामकिशन, चंदूलाल, मुन्नालाल, मुकुंद, शिवराम, मेघराज, रामलाल, हसन।
बीकानेर में उस्ता कला के जो प्रमुख चित्रकार हुए, उनके नाम कुछ इस तरह हैं :- उस्ता अली रज़ा, उस्ता हामिद रुकनुद्दीन, कायम, कासिम, शाह मुहम्मद, अबु हमीद, साहबदीन, अहमदअली, आसीर खां, जीवन।
चित्रकार साहबदीन ने भागवत पुराण पर आधारित चित्र बनाए। बीकानेर चित्रशैली के अधिकतर चित्रकार मुसलमान ही रहे, लेकिन इन चित्रकारों ने जिन विषयों पर चित्र बनाए, वे हिंदुओं की ही पौराणिक कथाओं से प्रेरित हैं।
बीकानेर के महलों में भी भित्ति चित्र देखने को मिलते हैं। भित्ति चित्र वे कहलाते हैं, जो दीवारों पर बनाए जाते थे। बीकानेर के राजकीय संग्रहालय में उस्ता कला के जर्मन चित्रकार ए. एच. मूलर द्वारा चित्रित यथार्थवादी शैली के चित्र भी रखे गए हैं।
बीकानेर के राजकीय संग्रहालय में तैलचित्र, ऊंट की खाल पर निर्मित सामग्री, शुतुरमुर्ग के अंडों पर कलात्मक कार्य, शाही नावों को तोड़ने का दृश्य दिखाती अद्भुत चित्रकारी के प्रमाण मिलते हैं।
इसी संग्रहालय में ए. एच. मूलर द्वारा बनाया गया एक चित्र काफी सजीव है, जिसमें महाराणा प्रताप अकबर की अधीनता अस्वीकार करते हैं।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)