बरौली नरेश राव प्रताप सिंह बड़गूजर (1183 ई.-1191 ई.) का विस्तृत इतिहास :- राजा प्रताप सिंह का परिचय :- इनके पिता राजौरगढ़ नरेश महाराज पृथ्वीपालदेव बड़गूजर और माता चौहानवंशी रानी कैलाशदेवी थी। राजा प्रताप सिंह का जन्म 15 मई 1156 ई. में हुआ था।
बड़वाजी की पोथी, बीकानेर अभिलेखागार, पृथ्वीराज रासो और मुरादाबाद ज़िला गजेटियर में राजा प्रताप सिंह के पिता का नाम राजा कर्णदेव लिखा है। मुझे एक अन्य स्रोत से राजा प्रताप सिंह के पिता का नाम राजा महासिंह भी मिला है।
अभी तक प्राप्त शिलालेखों के आधार पर 1151 ई. से 1182 ई. तक राजौरगढ़ पर राजा पृथ्वीपालदेव बड़गूजर का शासन रहा है। माचेड़ी-राजगढ़ नरेश राजा बाघराज बड़गूजर द्वितीय के वि.स. 1208 (1151 ई.) चतुर्भुजनाथजी मंदिर के शिलालेख में राजौरगढ़ पर राजा पृथ्वीपालदेव का राज करना बताया गया है।
राजा पृथ्वीपालदेव का ही वि.स. 1239 (1182 ई.) का एक शिलालेख मिला है। यह शिलालेख साढ़े तीन पंक्तियों का है, जिसमें राजा का नाम और रानी का नाम कैलाशदेवी लिखा हुआ है। वर्तमान में यह शिलालेख ‘राष्ट्रीय दिल्ली संग्रहालय’ में मौजूद है। अतः राजा कर्णदेव और राजा महासिंह, राजौरगढ़ नरेश पृथ्वीपालदेव बड़गूजर के ही अन्य नाम रहे होंगे।
राजा पृथ्वीपालदेव बड़गूजर के समय देवती किला प्रताप सिंह के अधिकार में था। सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दिग्विजय अभियान के दौरान हुए राजौरगढ़ युद्ध में कुंवर प्रताप सिंह बड़गूजर ने भी सम्राट के विरुद्ध भाग लिया था।
इस लड़ाई में शाकम्भरी के चौहान विजयी रहे और महाराज पृथ्वीपालदेव बड़गूजर ने अपनी पौत्री नंदकुंवरी (महाराजकुमार रामराय की पुत्री) का विवाह सम्राट के साथ किया था। यह घटना 1180 ई. के आसपास की है।
राजा पृथ्वीपालदेव बड़गूजर ने अपने तीसरे पुत्र कुंवर प्रताप सिंह को सेना की एक टुकड़ी के साथ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी सहायता के लिए भेजा था। सेना की इस टुकड़ी में राजा चंदराय बड़गूजर और राजा विजयराय बड़गूजर भी शामिल थे।
चंदेलों से लड़ाई – 1182 ई. :- सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर चढ़ाई की। सम्राट के साथ इस सेना में कुंवर प्रताप सिंह बड़गूजर भी थे। चंदेल नरेश राजा परमर्दिदेव ने अपने सामंत मलखान को फौज देकर विदा किया।
सिरसागढ़ की लड़ाई :- सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने एक बड़ी सेना लेकर महोबा पर आक्रमण किया, जिसका पहला शिकार सिरसागढ़ बना जो पहूज नदी के पश्चिमी तट पर अवस्थित था। सिरसागढ़ पर परमर्दिदेव चंदेल के सामन्त मलखान तैनात थे, जो आल्हा केे मौसेरे भाई थे।
सिरसागढ़ में सम्राट और मलखान के बीच हुई लड़ाई में सम्राट के सेनापति कैमास ने मलखान को मार गिराया। मलखान के मरते ही सेना की कमान सलखान और राजा पूरणमल ने संभाली। राजा प्रताप सिंह ने राजा पूरणमल और सेनापति कैमास ने सलखान को मार गिराया।
राजा परमर्दिदेव ने संदेश भिजवाकर कन्नौज से आल्हा और ऊदल को बुलाया। आल्हा और ऊदल बड़े दर्जे के वीर योद्धा थे। गहड़वाल राजा जयचंद ने आल्हा और ऊदल को एक फौज देकर विदा किया। इस तरह इस मिली-जुली फौज को सम्राट पृथ्वीराज ने शिकस्त दी।
इस अभियान के दौरान सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने कुंवर प्रताप सिंह बड़गूजर को बरौली में 5 गाँव दिए और यहां एक चौकी स्थापित की। मुस्लिम इतिहासकार वज़ीब-उल-अर्ज़ अपनी क़िताब ‘मिस्ल-ए-बंदोबस्त’ (1866 ई.) में लिखता है कि
“अलीगढ़ जिले के बड़गूजरों के पूर्वज राव प्रताप सिंह को बारहवीं शताब्दी में सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने अपने कुमायूं अभियान में विजय प्राप्त करने की खुशी में परगना बरौली में 5 गाँव (तमकोली, प्रतापपुर, पोथा, मलिकपुर और गाँवरी) इनायत किए। राव प्रताप सिंह ने बरौली को राजधानी बनाकर इस क्षेत्र पर राज किया।”
राजा अजीत सिंह डोड की सहायता करना – 1183 ई :- राजा अर्णोराज चौहान ने दिल्ली के तंवरों को पराजित करने के बाद गंगा घाटी स्थित वारन (बुलंदशहर) पर आक्रमण क़िया था। वारन पर उस समय राजा सहजादित्य डोड का शासन था, जो कनौज के राजा गोविंदचंद्र गहड़वाल (1110 ई.-1156 ई.) के सामन्त थे।
राजा अजीत सिंह डोड (डोडिया) इन्हीं राजा सहजादित्य डोड के पौत्र और राजा बलवंत सिंह डोड के पुत्र थे। राजा परमर्दिदेव चंदेल के विरुद्ध युद्ध के बाद राजा प्रताप सिंह बड़गूजर ने अपनी सेना का शिविर खैरिया नामक गाँव में डाला।
राजा अजीत सिंह डोड को राजा प्रताप सिंह के बारे में पता लगा तो वह उनसे मिलने खैरिया गाँव पधारे और उन्हें मेवातियों के आक्रमण के बारे में बता कर उनसे छुटकारा दिलाने को कहा।
पहले तो राजा प्रताप सिंह ने मना कर दिया क्योंकि महोबा के युद्ध के बाद सेना पहले ही थकी हुई थी, उस पर दूसरा आक्रमण करना भी ठीक नहीं था, लेकिन राजा अजीत सिंह डोड के विशेष आग्रह पर राजा प्रताप सिंह बड़गूजर ने मेवातियों को सबक सिखाने का फैसला लिया।
राजा प्रताप सिंह ने सेना सहित मेवातियों पर आक्रमण किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ और मेवाती पराजित हुए। एक स्रोत के अनुसार इस लड़ाई में 200 बड़गूजर राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए थे।
इस लड़ाई में खैरिया गांव का एक कहार जाति का व्यक्ति बड़गूजरों की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। उसकी पत्नी उसके साथ सती हुई। बाद में उस जगह पर सतीजी का मंदिर बनवाया गया।
राजा प्रताप सिंह ने इस वीर के त्याग व बलिदान को ध्यान में रखते हुए वचन दिया कि “हमारे कुल के सभी वंशज शादी-विवाह के अवसर पर यहां धोक दिया करेंगे।”
इस घटना के बाद से वर्तमान समय तक राजा प्रताप सिंह बड़गूजर के वंशज शादी – विवाह के अवसर पर सतीजी के धोक लगाते हैं। चंदेल शासक राजा परमर्दिदेव राजा अजीत सिंह डोड को पहले परेशान किया करते थे।
इसलिए इसी समय राजा प्रताप सिंह ने इस इलाके से चंदेलों को पीछे हटाया। ज़िला गजेटियर मुरादाबाद में लिखा है कि “प्रताप सिंह ने चंदेलों को पीछे हटाकर इस क्षेत्र में शांति कायम की और कोल (अलीगढ़) के राजा अजीत सिंह डोड को क्षेत्र वापस दिए।”
राजा प्रताप सिंह की वीरता से प्रभावित होकर राजा अजीत सिंह डोड ने अपनी पुत्री परमानंदी कंवर का विवाह राजा प्रताप सिंह के साथ कर दिया। राजा अजित सिंह डोड द्वारा राजा प्रताप सिंह बड़गूजर को 200 गांव दिए गए, जिनका विवरण निम्न प्रकार है :-
(1) अलीगढ़ (बरौली) के 40 गाँव (2) पहासू, तहसील – शिकारपुर के 64 गाँव (3) पीतमपुर के 64 गाँव (4) वर्तमान अनूपशहर के 32 गाँव। पोस्ट लेखक :- जितेंद्र सिंह बडगूजर