बरौली नरेश राव प्रताप सिंह बड़गूजर (1183 ई.-1191 ई.) का विस्तृत इतिहास :- राज्य विस्तार – 1184-1185 ई. :- इतिहासकार मिस्टर मेहता अपनी किताब ‘The Hind Rajasthan, Part-3’ में लिखते हैं कि
“राजा प्रतापसिंह ने लगातार 2 वर्षों तक गंगा नदी के दोनों किनारों की ओर विजय अभियान चलाकर 1656 गाँवों पर अधिकार करके एक बड़े राज्य की स्थापना की और बरौली, जिला-अलीगढ़ को 1185 ई. में राजधानी बनाया।”
इस दौरान राजा प्रताप सिंह बड़गूजर ने गंगा नदी के पूर्व में 800 गाँवों और गंगा नदी के पश्चिम में 856 गाँवों पर अधिकार किया, जो मुख्यतः वतर्मान उत्तरप्रदेश के अलीगढ़, बुलंदशहर, मोरादाबाद, बदायूं, सम्भल, एटा और मुरादाबाद जिले में फैले हुए थे।
इन इलाकों में से कुछ कनौज के गहड़वाल राजा जयचंद से, राठौड़ों से और कुछ महोबा के राजा परमर्दिदेव चंदेल के सामंतों को हराकर लिए थे।
तराइन का पहला युद्ध – 1191 ई. :- मोहम्मद गौरी से हुई लड़ाई में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ राजा प्रतापसिंह बड़गूजर भी थे। सम्राट की अश्व सेना के दाहिने भाग का नेतृत्व राजा रामराय बड़गूजर कर रहे थे।
दिल्ली के राजा चाहड़पाल तोमर भी हाथी पर विराजमान थे। उनकी सहायता के लिए राजा प्रतापसिंह बड़गूजर भाला व तलवार लिए घोड़े पर सवार थे।
राजा प्रतापसिंह बड़गूजर का वीरगति पाना :- रजवट राखण ठेट रा, खग बाजी धर काज। सरगां सूं अपछर कहे, जय बड़-उज्ज्वल राज।।”
भावार्थ :- चिरकाल से ही रजपूती आन बान को बनाए रखने वाले उस बड़गूजर वीर (राजा प्रताप सिंह बड़गूजर) ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए जैसे ही तलवार उठाई वैसे ही स्वर्ग से अप्सरायें भी “जय हो बड़गूजर राज” बोल उठी।
सामने से राजा प्रताप सिंह बड़गूजर ने गौरी के दाहिने बाजू की सेना पर आक्रमण किया। मुहम्मद गौरी ने सेना को पीछे हटा कर राजा प्रताप सिंह को सेना के मध्य भाग तक आने दिया।
इस समय राजा प्रताप सिंह बड़गूजर मुहम्मद गौरी की सेना के मध्य भाग और दाहिने बाजू के बीच फंस कर युद्ध करने लगे। राजा प्रताप सिंह गौरी की सेना से लडते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
राजा प्रताप सिंह बड़गूजर की रानियां और संतानें :- राजा प्रताप सिंह बड़गूजर का पहला विवाह कुँवरकाल में
मांट के राणा अमान सिंह पंवार की पुत्री स्वरूपदे कुंवरी के साथ हुआ था। इनसे राजा प्रताप सिंह को 2 पुत्र रणपालदेव और जैत्रपालदेव हुए।
राजा प्रतापसिंह बड़गूजर ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कुंवर रणपालदेव बड़गूजर को बरौली (अलीगढ़) में 425 गांवों की जागीर दी। मुरादाबाद जिला गजेटियर में राजा रणपालदेव को ‘राणूजी’ लिखा है।
दूसरे पुत्र कुंवर जैत्रपालदेव बड़गूजर को चौढेरा, परगना-पहासू क्षेत्र के 431 गांवों की जागीर मिली। मुरादाबाद जिला गजेटियर में राजा जैत्रपालदेव को ‘जैतूजी’ लिखा है।
‘आईने-अकबरी’ के अनुसार यहां के बड़गूजर राजपूतों के पास एक क़िला था। इनका राजस्व 21,69,939 दाम था, इन्हें मुग़ल सेवा में 50 घुड़सवार और 1000 पैदल सैनिक भेजने होते थे।
राजा प्रताप सिंह बड़गूजर का दूसरा विवाह सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दिग्विजय अभियान के दौरान राजा अजित सिंह डोड की पुत्री परमानंदी कुंवरी के साथ हुआ था। इनके 3 पुत्र हुए :- कुंवर बसन्तपालदेव, कुंवर हाथीशाह और कुंवर बुद्धदेव।
राजा प्रताप सिंह बड़गूजर ने अपने पुत्र कुंवर बसन्तपालदेव को मझौला, परगना-सम्भल, मुरादाबाद में 450 गांवों की जागीर दी। ‘आईने-अकबरी’ के अनुसार सरकार सम्भल में मझौला राज्य के बड़गूजर राजपूतों के पास 1,42,461 बीघा ज़मीन थी, जिसका राजस्व 1,77,561 दाम था।
यहां के बड़गूजरों को 400 सवार और 8000 पैदल सैनिक मुग़ल सेवा में भेजने होते थे। मुग़ल बादशाह अकबर के समय मझौला राज्य पर राजा दीपचंद बड़गूजर का शासन था, जो धर्म परायण राजा थे। इन्होंने भरे मुग़ल दरबार में अकबर के सामने गायों के काटे जाने का खुलकर विरोध किया था।
राजा प्रतापसिंह ने कुंवर हाथीशाह को नरौली, तहसील-बिल्लारी, मुरादाबाद में 175 गाँवों की जागीर दी। ‘आईने-अकबरी’ के अनुसार नरौली का परगना बड़गूजर राजपूतों की जागीर था। इसका क्षेत्रफल 1,81,621 बीघा और राजस्व 14,08,093 दाम था, जिन्हें मुग़ल सेवा में 40 सवार और 400 पैदल सैनिक देने होते थे।
पांचवे पुत्र कुंवर बुद्धदेव को जड़वार मुख्यालय के साथ तहसील-गिन्नौर, जिला-बदायूं में 175 गांवों की जागीर प्रदान की। ‘आईने-अकबरी’ के अनुसार यह जागीर सम्भल की सरकार के अंतर्गत थी।
यहां के बड़गूजरों के पास 76,757 बीघा जमीन थी जिसका दाम 8,28,846 था। यहां के बड़गूजर राजपूतों को मुग़ल सेवा में 50 घुड़सवार और 200 पैदल सैनिक भेजने होते थे।
वारन (बुलंदशहर) की लड़ाई – 1192 :- तराइन के दूसरे युद्ध में राजपूतों की पराजय के बाद कुतुबद्दीन ऐबक ने दिल्ली पर अधिकार पर लिया। वहां से सेना की एक टुकड़ी लेकर मेरठ और बुलंदशहर पर आक्रमण किया।
वारन स्थान पर राजा चंद्रसेन डोड (राजा अजीतसिंह डोड के पुत्र) और राजा रणपालदेव बड़गूजर की मिली-जुली फौज ने कुतुबुद्दीन ऐबक को कड़ी टक्कर दी।
थोड़ी देर की सख़्त लड़ाई के बाद राजा चंद्रसेन डोड के एक सेनापति अजयपाल को कुतुबुद्दीन ने अपनी ओर मिला लिया। जिस कारण कुतुबुद्दीन यह लड़ाई जीत गया। इसके बाद इस इलाके के बड़गूजरों को कुतुबुद्दीन ऐबक की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
कोल (अलीगढ़) पर कुतुबुद्दीन ऐबक की चढ़ाई – 1194 ई. :- 1193 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ग़जनी चला गया था। वहां वह 6 माह रुका। इस बीच कोल (अलीगढ़) के बड़गूजरों और डोडियों ने अवसर का लाभ उठा कर इस इलाके को अपने अधिकार में कर लिया।
1194 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक वापस दिल्ली लौटा तो उसे अलीगढ़ के समाचार मिले। कुतुबुद्दीन ऐबक ने फौज तैयार करके अलीगढ़ पर आक्रमण किया।
डोडियों और बड़गूजरों की मिली-जुली फौज ने कुतुबुद्दीन ऐबक का सामना किया, लेकिन इस युद्ध में कुतुबुद्दीन की विजय हुई और उसने स्थानीय राजपूतों से अधीनता स्वीकार करवाई।
बदायूं की लड़ाई – 1197 – 1198 ई. :- बदायूं पर पहले राठौड़ों का अधिकार था। बदायूं के राठौड़, कन्नौज के गहड़वालों के सामन्त थे। राजा प्रतापसिंह बड़गूजर ने अपने विजय अभियान के दौरान यहां के राठौड़ों को पीछे हटाकर कर अधिकांश भाग पर कब्जा कर लिया था और अपने पुत्र राजकुमार बुद्धदेव बड़गूजर को 175 गाँवों की जागीर दी थी।
इसके बाद भी यहां के कुछ इलाकों पर गहड़वालों और राठौड़ों का अधिकार था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं पर आक्रमण कर यहां के राजपूतों (बड़गूजरों, राठौड़ों और गहड़वालों) को अधीनता स्वीकार करवाई।
मुस्लिम इतिहासकार हसन निज़ामी ‘ताज-उल-मासिर’ में कुतुबुद्दीन ऐबक की बदायूं विजय का वर्णन करता है। वर्तमान समय में उत्तरप्रदेश के अधिकांश बड़गूजर राजपूत राजा प्रताप सिंह बड़गूजर के ही वंशज हैं, इनकी खांप राजौरा है, क्योंकि इनका मूल निकास राजौरगढ़ है।
राजा प्रताप सिंह बड़गूजर के वंशजों द्वारा कई प्रतिष्ठित रियासतें स्थापित की गई, जिनमें बरौली, बेलोन, चांदोक, गोरहा, नरौली, सरथल, गवां, जहांगीराबाद, अनूपशहर, चौंडेरा, मझौला आदि प्रमुख हैं।
राजा प्रताप सिंह बड़गूजर के साथ दिग्विजय अभियान के दौरान वशिष्ठ गौत्रीय ब्राह्मण बरौली (जिला अलीगढ़) आए थे, जिनके द्वारा बरौली के बड़गूजरों को विद्या अध्ययन और राज्याभिषेक किया जाता है।
इस कारण उत्तरप्रदेश के सभी बड़गूजर राजपूतों का ऋषि गौत्र वशिष्ठ है। इन ब्राह्मणों के कुछ वंशज आज भी मौजूद है और पुरोहिताई करते हैं।
उत्तरप्रदेश के बड़गूजर आराध्य देवी के रूप में माँ बेलोन भवानी को पूजते हैं। बेला भवानी मंदिर में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी और आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को बड़गूजर राजाओं द्वारा बलिदान महोत्सव मनाया जाता था।
संदर्भ :- (1) क्षत्रिय राजवंश, बड़गूजर-सिकरवार-मडाढ़ (कुंवर अमित सिंह राघव, डॉ. खेमराज राघव, पवनजी बख्शी) (2) दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान एवं उनका युग-डॉ. बिन्ध्यराज चौहान (3) दिल्ली के तोमर – हरिहरनिवास द्विवेदी
(4) बड़गूजर राजवंश – महेंद्र सिंह तलवाना (5) The Hind Rajasthan, Part – 3 – मिस्टर मेहता
(6) Protected Monument Of Rajasthan – डॉ. चंद्रमणि सिंह (7) बड़गूजरों का इतिहास — मोहन सिंह कानोता (8) ओझा निबंध संग्रह – डॉ. गौरीशंकर ओझा
पोस्ट लेखक :- जितेंद्र सिंह बडगूजर
, हुकुम बनवीर के इतिहास पर भी जरा प्रकाश डालते