रावत सारंगदेव की हत्या :- महाराणा लाखा के पौत्र रावत सारंगदेव व महाराणा रायमल के पुत्र कुँवर पृथ्वीराज के बीच हुई गम्भीरी नदी की लड़ाई के पहले दिन रावत सारंगदेव व रावत सूरजमल की पराजय हुई।
अगले दिन सुबह फिर लड़ाई हुई, जिसमें रावत सूरजमल बुरी तरह ज़ख्मी हुए, उनको 84 घाव लगे। कुंवर पृथ्वीराज को 7 व रावत सारंगदेव को 35 घाव लगे। रावत सारंगदेव के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर लिम्बा सारंगदेवोत वीरगति को प्राप्त हुए।
मुकाबला बराबरी पर खत्म हुआ। ज़ख्मी कुँवर पृथ्वीराज को महाराणा रायमल चित्तौड़गढ़ किले में ले गए और इलाज करवाया। ज़ख्मी रावत सारंगदेव को उनके साथी राजपूत बाठरड़ा ले गए। रावत सूरजमल तो सादड़ी में व रावत सारंगदेव बाठरड़ा में रहने लगे।
इस लड़ाई के बाद कुछ दिनों तक सब योद्धाओं ने अपना-अपना इलाज वगैरह करवाया और तंदुरुस्त हुए। सर्दी का मौसम था। इन दिनों रावत सूरजमल भी बाठरड़ा आए हुए थे।
रावत सारंगदेव, रावत सूरजमल और उनके साथी राजपूत बाठरड़ा में रात के समय आग जलाकर गर्मी सेंक रहे थे। इसी दौरान कुँवर पृथ्वीराज ने एक हज़ार घुड़सवारों समेत चढ़ाई की और बाठरड़ा गांव का फलसा तोड़कर भीतर घुस आए।
कांटे और लकड़ियों से बनी हुई फाटक को फलसा कहते हैं। रावत सारंगदेव की तरफ के राजपूतों ने भी तलवारें निकाली। लेकिन कुँवर पृथ्वीराज के सामने जो कोई लड़ने आया, कत्ल हुआ।
रावत सूरजमल ने कुँवर पृथ्वीराज से कहा कि “भतीजे, मैं आपको नहीं मारना चाहता, आप बेशक तलवार चला सकते हो। क्योंकि आप तो उत्तराधिकारी हो मेवाड़ के”
तब कुँवर पृथ्वीराज तलवार म्यान में रखकर घोड़े से उतरे और रावत सूरजमल से पूछा “काकाजी, क्या कर रहे थे ?” रावत सूरजमल ने कहा “बेखटके होकर बैठे-बैठे गर्मी सेंक रहे थे”
कुँवर पृथ्वीराज ने कहा “काकाजी, मेरे जैसा दुश्मन सिर पर होने की हालत में बेख़ौफ़ होकर गर्मी सेंकनी चाहिए ?” (यह चेतावनी थी, जिसके कारण रावत सूरजमल को आभास हो गया कि उनका वहां रुकना ठीक नहीं)
इस तरह की बातें हुईं और अगली सुबह रावत सूरजमल सादड़ी की तरफ़ रवाना हो गए। रावत सारंगदेव अपने साथी राजपूतों समेत वहीं रुके रहे। कुँवर पृथ्वीराज रावत सारंगदेव से बोले “चलिए काकाजी, देवी के दर्शन कर लें”
दोनों काली माता के मन्दिर में गए, जहां कुंवर पृथ्वीराज ने कटार निकालकर रावत सारंगदेव के सीने में घोंप दी। रावत सारंगदेव ने भी तलवार से वार किया पर तलवार देवी के पाट पर जा लगी, जिससे उनका निशाना चूक गया और रावत सारंगदेव के प्राण चले गए।
कुछ समय बाद महाराणा रायमल ने रावत सारंगदेव के पुत्र जोगा सारंगदेवोत को मेवल में बाठरड़ा आदि जागीरें देकर रंज मिटाया और रावत जोगा का सम्मान करते हुए उन्हें सिरोपाव भेंट किया।
रावत सारंगदेव के वंशज सारंगदेवोत कहलाए, जिनके मुख्य ठिकाने कानोड़ व बाठरड़ा हैं। रावत सारंगदेव ने गयासुद्दीन खिलजी से हुई लड़ाई में महाराणा रायमल की तरफ से लड़ते हुए बहादुरी दिखाई।
फिर 2 बार कुँवर संग्रामसिंह के प्राण बचाए। आखिर में आपसी लड़ाई लड़े और कुँवर पृथ्वीराज द्वारा मारे गए। रावत सारंगदेव की अगली कई पीढ़ियों ने मेवाड़ के लिए अपने प्राणों के बलिदान दिए।
रावत सूरजमल द्वारा कुँवर पृथ्वीराज के प्राणों की रक्षा :- कुंवर पृथ्वीराज रावत सारंगदेव की हत्या करके रावत सूरजमल के मकान पर सादड़ी पहुंचे। रावत सूरजमल से मिलने के बाद कुँवर पृथ्वीराज अन्तःपुर में गए और अपनी काकी (रावत सूरजमल की पत्नी) से कहा कि “मुझको भूख लगी है”
अन्तःपुर में भोजन की तैयारी की गई और भोजन का थाल परोसा गया। उसी वक्त रावत सूरजमल भी वहां आ पहुंचे, तो कुँवर पृथ्वीराज द्वारा मनुहार करने पर वे भी उसी थाल में भोजन करने लगे।
रावत सूरजमल की पत्नी को पता चला, तो उन्होंने फौरन उस थाल में से एक कटोरी उठा ली। रावत सूरजमल की पत्नी ने उसमें विष मिला रखा था। जब कुँवर पृथ्वीराज ने रावत सूरजमल से इसका कारण पूछा, तो रावत सूरजमल ने कहा कि
“मैं तो तुम्हारा काका हूँ, इसलिए रक्त संबंध से तुम्हारी मृत्यु नहीं देख सकता, पर तुम्हारी काकी को तुम्हें मारने से कैसा दुःख ? इसीलिए उसने विष मिलाया होगा।”
रावत सूरजमल ने अपनी पत्नी को फटकार कर कहा कि “ये महाराणा के बड़े बेटे हैं, इनको मारने का पाप नहीं करना चाहिए हमें”। कुंवर पृथ्वीराज ने खुश होकर रावत सूरजमल से कहा कि “काकाजी, अब आपके लिए सारा मेवाड़ हाजिर है”।
पर रावत सूरजमल ने एक भी जागीर लेना स्वीकार न किया और कहा कि “अब हमको आपकी ज़मीन से पानी पीने की भी सौगंध है”। कुँवर पृथ्वीराज ने रावत सूरजमल को मनाने के कई प्रयास किए, परन्तु रावत नहीं माने।
रावत सूरजमल ने कांठल में भीलों पर विजय प्राप्त की और वहीं बस गए। कांठल वर्तमान में राजस्थान का प्रतापगढ़ जिला है और यहां के सिसोदिया राजपूत इन्हीं के वंशज हैं।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)