मेवाड़ के महाराणा रायमल (भाग – 5)

महाराणा रायमल के पुत्र कुँवर पृथ्वीराज, कुँवर जयमल व कुँवर संग्रामसिंह के बीच उत्तराधिकार संघर्ष हुआ। 1504 ई. के बाद कुँवर संग्रामसिंह तो अजमेर में छिपकर रहे, कुँवर जयमल कुम्भलगढ़ की तरफ गए।

कुँवर पृथ्वीराज की गोडवाड़ विजय :- कुंवर पृथ्वीराज के घाव ठीक हुए और वे चित्तौड़ पहुंचे, तो महाराणा रायमल ने नाराज़ होकर कहा कि “तुमने मेरे जीते-जी उत्तराधिकार की लड़ाइयां लड़कर क्लेश करवा दिया है, अब तुम चित्तौड़ मत आओ, जहां तुम्हारी मर्जी हो वहां रहो”

कुंवर पृथ्वीराज ने कुम्भलगढ़ में रहना शुरु किया। कुम्भलगढ़ में कुंवर पृथ्वीराज ने एक महाजन से ऋण लेकर खुद की एक सैनिक टुकड़ी तैयार की। कुम्भलगढ़ के पास गोडवाड़ के मादड़ेचा बालेचा वगैरह पालवी राजपूत मेवाड़ के हुक्म नहीं मानते थे।

कुंवर पृथ्वीराज ने गोडवाड़ पर हमला कर इन राजपूतों से अधीनता स्वीकार करवाई, पर देवसूरी के मादड़ेचा राजपूत काबू में नहीं आए। कुँवर पृथ्वीराज ने देवसूरी पर हमला किया, पर विजय प्राप्त न कर सके।

कुम्भलगढ़ दुर्ग

इन्हीं दिनों सिरोही के राव लाखा देवड़ा और सिरोही के लांछ गांव में रहने वाले सोलंकी राजपूतों में लड़ाई हुई। राव लाखा ने ईडर के राजा भाण की मदद लेकर सोलंकियों पर हमला किया, जिसमें भोज सोलंकी काम आए।

भोज के रिश्तेदार रायमल सोलंकी, शंकरसी, सामंतसी, सखरा, भाण आदि सोलंकी राजपूतों ने कुम्भलमेर में कुँवर पृथ्वीराज की शरण ली। कुँवर पृथ्वीराज ने उनसे कहा कि “मैं तुमको देवसूरी का पट्टा जागीर में देता हूं, तुम मादड़ेचों को वहां से निकाल दो”

सोलंकियों ने अर्ज किया कि “मादड़ेचा राजपूत तो हमारे संबंधी हैं”। कुँवर पृथ्वीराज ने कहा कि “अगर तुमको ठिकाना लेना है, तो यही मिलेगा”। सोलंकियों के पास और कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने कूटनीति से देवसूरी पर हमला करने की योजना बनाई।

सोलंकियों ने सामंतसी और शंकरसी सोलंकी को अपने ननिहाल देवसूरी के गढ़ में भेजा। फिर गढ़ से उन्होंने इशारा किया, तब सोलंकियों ने धावा बोलकर देवसूरी का किला फ़तह किया।

देवसूरी वालों की तरफ़ से सांडा मादड़ेचा समेत कई राजपूत काम आए। कुंवर पृथ्वीराज ने खुश होकर रायमल सोलंकी को 140 गांवों समेत देवसूरी का किला जागीर में दिया।

इन 140 गांवों में आगरिया, बाँसरोट, धामणिया, सेवन्त्री, ढोलाना, देवसूरी, आना, कर्णवास, बाँसड़ा, मांडपुरा, केशूली, गांथी, गोडला, चावडिया आदि गांव शामिल थे।

रायमल सोलंकी के पुत्र शंकरसी के वंशजों का ठिकाना झीलवाड़ा है व रायमल सोलंकी के पुत्र सामंतसी के वंशजों का ठिकाना रूपनगर है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

कुंवर जयमल की हत्या :- कुँवर पृथ्वीराज ने गोडवाड़ और मगरा जिलों पर विजय प्राप्त करके अपना वर्चस्व जमाना शुरू कर दिया। कुंवर जयमल अपने बड़े भाई कुंवर पृथ्वीराज के साथ ही कुम्भलगढ़ में रहते थे।

लल्ला खां पठान ने टोडा पर हमला कर फतह हासिल की, तो टोडा के राव श्यामसिंह सौलंकी चित्तौड़ आ गए। महाराणा रायमल ने उनको बदनोर की जागीर दी।

श्यामसिंह के देहांत के बाद सुल्तान सिंह सोलंकी बदनोर की गद्दी पर बैठे, तब कुंवर जयमल ने राव सुल्तान से कहलवाया कि “तुम्हारी पुत्री ताराबाई की खूबसूरती के काफ़ी चर्चे हैं। मैं उससे विवाह करना चाहता हूं, पर उससे पहले तुम मुझे उससे मिलवाओ”

तब राव सुल्तान ने कहा कि “आपको विवाह करना है तो अवश्य करें, पर राजपूतों में विवाह से पहले लड़की नहीं दिखाई जाती है”। कुँवर जयमल ने कहा कि “मैंने कहा वही करना होगा”।

राव सुल्तान ने अपने साले रतनसिंह सांखला को कुँवर जयमल के पास भेजा और कहलवाया कि “हम सोलंकियों को आपके पिता ने मुश्किल समय में शरण देकर हम पर उपकार किया है, इसलिए हम निवेदन करते हैं कि आप ऐसा न करें”

पर कुँवर जयमल ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और बदनोर पर चढ़ाई की तैयारी कर दी। राव सुल्तान को जब ये खबर मिली, तो उन्होंने महाराणा रायमल के पुत्र से लड़ना उचित न समझा और सब सामान व साथियों समेत बदनोर छोड़कर चले गए।

बदनोर से 7 कोस की दूरी पर आकड़सादा गांव के पास मशालों की रोशनी देखकर राव सुल्तान की पत्नी ने अपने भाई रतनसिंह सांखला से कहा कि “शत्रु आ पहुंचे हैं”

रतनसिंह सांखला अपने साथियों सहित आगे बढ़े और रथ में सवार कुँवर जयमल के पास जाकर कहा “कुँवर जी, सांखला रतना का मुजरा पहुंचे”

इतना कहकर उन्होंने कुँवर जयमल को बर्छी से मार डाला। कुँवर जयमल के साथी राजपूतों ने भी उसी समय रतनसिंह को मार दिया। अगले दिन कुँवर जयमल और रतनसिंह सांखला का दाह संस्कार उसी स्थान पर किया गया।

महाराणा रायमल

कुँवर जयमल के साथी राजपूतों ने राव सुल्तान पर हमला करके बदला नहीं लिया, क्योंकि वे जानते थे कि कुँवर अनैतिक रूप से यह विवाह करना चाहते थे, इसलिए वे सब कुंभलगढ़ लौट गए।

राव सुल्तान सोलंकी पुनः बदनोर आए और वहां से खत द्वारा सारा हाल महाराणा रायमल को लिख भेजा। महाराणा रायमल ने कहलवाया कि “इसमें आपका कोई दोष नहीं, सारा दोष उसी कपूत का था”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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