1458 ई. – महाराणा कुम्भा की नागौर पर चढ़ाई :- 1457 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी और गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन ने एक साथ मेवाड़ पर आक्रमण किया था। दोनों ही सुल्तान महाराणा कुम्भा द्वारा परास्त कर दिए गए थे।
लेकिन जब महमूद खिलजी ने मांडलगढ़ पर हमला किया था, तब उसके साथ नागौर के मुसलमानों की फ़ौज भी थी। महाराणा कुम्भा ने 1456 ई. में अर्थात 2 वर्ष पूर्व ही नागौर का विध्वंस किया था।
1458 ई. में महाराणा कुम्भा ने नागौर वालों को सबक सिखाने के लिए फिर से नागौर पर चढ़ाई की। महाराणा कुम्भा के साथ इस समय 50 हज़ार सैनिकों की जर्रार फ़ौज थी।
नागौर वाले कभी महाराणा कुम्भा से सामना करने की क्षमता रखते ही नहीं थे। नागौर वालों को महाराणा कुम्भा के आक्रमण की सूचना मिली, तो वे भागकर गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन की शरण में गए।

मिरात-ए-सिकन्दरी में लिखा है कि “राणा के हमले की ख़बर जब अहमदाबाद पहुंची, तो वज़ीर इमादुलमुल्क को बड़ी फिक्र हुई। उस वक्त आधी रात थी, फिर भी वज़ीर ने सुल्तान के महल में दाख़िल होकर एक नौकर से सुल्तान
को जगाने को कहा। नौकर ने सुल्तान को जगाने से साफ मना कर दिया, तब वज़ीर खुद सुल्तान के कमरे में गया और सुल्तान को उठाया। सुल्तान ने चौंक कर पूछा “कौन है ?” तो वज़ीर ने कहा “मैं आपका नौकर”। सुल्तान ने
जगाने की वजह पूछी, तब वज़ीर ने सारा हाल बयां कर दिया और कहा कि आपको फ़ौज भेजनी चाहिए। सुल्तान उस वक्त रास-रंग में डूबा हुआ था। उसे शराब और खूबसूरत लड़की ने वश में कर रखा था। उसने कहा कि
“मेरे सिर में दर्द है, मैं घोड़े पर नहीं चढ़ सकता।” वज़ीर ने कहा कि “मैं आपके लिए पालकी मंगवा लेता हूँ”। इस तरह सुल्तान को पालकी में बिठाकर ले जाया गया।”
इस प्रकार मिरात-ए-सिकन्दरी में सुल्तान के भी फौज के साथ नागौर की तरफ कूच करने का वर्णन लिखा है। परन्तु अन्य फ़ारसी तवारिखें सिर्फ वज़ीर के ही फ़ौज समेत जाने का वर्णन लिखती हैं।
इस वक्त सुल्तान की सेना भी तैयार नहीं थी। वज़ीर को ही सेना को तैयार करना पड़ा, जिस कारण एक माह तक पड़ाव डालना पड़ा। तब तक ख़बर मिली कि महाराणा कुम्भा ने नागौर पर विजय प्राप्त कर ली है। ये ख़बर सुनकर गुजराती फ़ौज फिर से अहमदाबाद लौट गई।
अहमदाबाद पहुंचकर सुल्तान कुतुबुद्दीन फिर से शराब के नशे में चूर हो गया। महाराणा कुम्भा को नागौर में ही यह समाचार मिल गया था कि गुजरात का सुल्तान कुतुबुद्दीन फ़ौज सहित नागौर आ रहा है, इसलिए महाराणा कुम्भा नागौर में ही रहे।

लेकिन जब अगला समाचार आया कि सुल्तान की फ़ौज गुजरात लौट गई है, तो महाराणा कुम्भा भी नागौर से रवाना हुए और चित्तौड़ चले आए। यहां महाराणा कुम्भा की बहादुरी देखनी चाहिए कि वे मेवाड़ से बाहर होने के बावजूद सुल्तान के हमले की ख़बर सुनकर उसका इंतजार करते रहे।
ग्रंथ वीरविनोद में नागौर का युद्ध 1467 ई. में होना लिखा है, जो कि गलत है। यह युद्ध 1458 ई. में ही हुआ था, क्योंकि समकालीन फ़ारसी तवारिखें यही समय बताती हैं। वीरविनोद में महाराणा कुम्भा के युद्धों से सम्बंधित तो संवत आदि दिए गए हैं, वे अक्सर गलत हैं।
वीरविनोद में नागौर से हनुमान जी की मूर्ति लाकर कुम्भलगढ़ दुर्ग के एक दरवाज़े पर स्थापित करना लिखा है, यह तथ्य भी गलत है। क्योंकि कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति में उक्त मूर्ति महाराणा कुम्भा द्वारा मंडोवर पर विजय प्राप्त करने के बाद वहां से लाने का उल्लेख है।
1458 ई. – गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन की मेवाड़ पर अंतिम चढ़ाई :- गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन ने थोड़ा होश संभाला और नागौर की पराजय का बदला लेने के लिए फ़ौज समेत कुंभलगढ़ की तरफ़ कूच किया।
सबसे पहले उसने सिरोही पर हमला किया, जहां सिरोही के राजा बचकर कुंभलगढ़ आ गए। कुतुबुद्दीन ने सिरोही में तबाही मचाई और कुंभलगढ़ पहुंचा।
कुंभलगढ़ किले की मजबूती और उससे भी अधिक मज़बूत किले में खड़े महाराणा कुम्भा के हौंसले बड़े-बड़े शत्रुओं के साहस को डिगा देने वाले थे। कुतुबुद्दीन और महाराणा की सेनाओं में लड़ाई हुई, जिसमें कुतुबुद्दीन परास्त हुआ।
इस लड़ाई में कुतुबुद्दीन के सैनिकों के बहुत से घोड़े मारे गए थे, इसलिए उन्हें राजकीय कोष से नए घोड़े दिलवाए गए।

फ़ारसी तवारीखों में कुतुबुद्दीन के कुम्भलगढ़ अभियान को छोड़कर गुजरात लौटने के पीछे यह कारण बताया है कि मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने गुजरात पर हमला कर दिया।
यह बात मात्र कुतुबुद्दीन की असफलता को छिपाने के लिए लिखी गई है, क्योंकि इस समय मालवे का सुल्तान गुजरात में नहीं, बल्कि हाड़ौती में लड़ाइयां लड़ रहा था।
25 मई, 1458 ई. को गुजरात का सुल्तान कुतुबुद्दीन मेवाड़ फतह करने की ख़्वाहिश मन में रखकर ही मर गया। उसके मरने की वजह कोई तलवार का घाव तो कोई पत्नी द्वारा ज़हर देना बताते हैं। इसको अहमदाबाद में ही दफनाया गया, जहां इसकी मजार है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)