रावल समरसिंह से संबंधित शिलालेख :- चीरवा का शिलालेख :- रावल समरसिंह ने अपना पहला शिलालेख उदयपुर से 8 मील उत्तर में स्थित चीरवा गाँव में स्थित एक मंदिर की बाहरी दीवार पर 13 अक्टूबर, 1273 ई. को खुदवाया। इस शिलालेख में 51 पंक्तियां हैं।
इस शिलालेख के प्रशस्तिकार रत्नप्रभसूरि, लेखक पार्श्वचन्द्र, खोदने वाले केलिसिंह व शिल्पी देल्हण थे। इस शिलालेख में मेवाड़ के शासक मथनसिंह से लेकर समरसिंह तक के शासनकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है।
इस शिलालेख में सती प्रथा, गोचर भूमि, पाशुपत शैव धर्म आदि का उल्लेख भी है। शिलालेख में ‘कालेलाय’ नामक जलाशय का उल्लेख भी है। इस जलाशय से सिंचित खेतों को दान किया गया था। इन खेतों को ‘केदार’ कहा गया था, जिसका आशय है ‘धान्योत्पादन करने वाली भूमि’।
इस शिलालेख में चित्तौड़गढ़ के फ़ौजदार मदन का उल्लेख भी है। इसमें लिखा है कि “रत्न के छोटे भाई निष्पापी मदन ने रावल समरसिंह की कृपा से चित्तौड़ की वंश परंपरागत तलारता (फ़ौजदारी) प्राप्त की। वह भोजराज के बनवाए हुए त्रिभुवन नारायण मंदिर में अपने कल्याण के लिए सदाशिव पूजा किया करता था।”
रसिया की छतरी का शिलालेख :- रावल समरसिंह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित रसिया की छतरी के भीतर 15 जून, 1274 ई. को यह शिलालेख खुदवाया। इस शिलालेख की रचना चित्तौड़ के निवासी नागर ब्राह्मण प्रियपटु के पुत्र वेदशर्मा ने की है।
शिलालेख के उत्कीर्णक सज्जन थे। इस शिलालेख में बप्पा रावल से लेकर नरवर्मा तक के शासकों की उपलब्धियों का वर्णन है। इस शिलालेख में नागदा और देलवाड़ा का वर्णन भी है, जिससे 13वीं सदी के जनजीवन की जानकारी मिलती है।
इस शिलालेख में मेवाड़, गोडवाड़ व सिरोही के पहाड़ी भाग, आदिम निवासियों के आभूषणों, रानियों के श्रृंगार, वैदिक यज्ञ परंपरा व तत्कालीन समय की शिक्षा के स्तर की जानकारी भी है।
चीरवा का एक और शिलालेख :- रावल समरसिंह के शासनकाल में 1275 ई. का एक शिलालेख चीरवा गांव के मंदिर में खुदवाया गया। इस गांव का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह शिलालेख चित्तौड़ के निवासी चैत्रगच्छ के जैन साधु भुवनसिंह सूरी के शिष्य रत्नप्रभ सूरी ने तैयार किया।
चित्तौड़गढ़ का शिलालेख :- रावल समरसिंह का एक शिलालेख गौरीशंकर ओझा को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रामपोल दरवाजे के बाहर नीम के पेड़ वाले एक चबूतरे पर पड़ा मिला।
पार्श्वनाथ मन्दिर का शिलालेख :- रावल समरसिंह ने 5 मई, 1278 ई. को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित पार्श्वनाथ मंदिर में एक शिलालेख खुदवाया। इस शिलालेख में रावल समरसिंह की माता जयतल्लदेवी द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाने का वर्णन है।
इस शिलालेख के अनुसार प्रद्युम्न सूरि के उपदेश से रावल समरसिंह ने इस पार्श्वनाथ मंदिर के मठ के लिए भूमिदान किया और मंदिर के लिए मण्डपिकाओं से द्रम्म, घी, तेल आदि की व्यवस्था करवाई।
आबू का शिलालेख :- यह शिलालेख 6 दिसम्बर, 1285 ई. को खुदवाया गया। इस शिलालेख में 62 श्लोक हैं, जिनकी रचना वेदशर्मा ने की थी। इस शिलालेख के लेखक शुभचन्द्र व शिल्पी सूत्रधार कर्मसिंह थे। इस शिलालेख में मेवाड़ को मेदपाट कहा गया है।
आबू के शिलालेख में लिखा है कि “रावल समरसिंह ने राज्य में कृषि व वनोत्पादन पर पूरा ध्यान दिया। उन्होंने जो वृक्ष आबू में उगवाए थे, वे समस्त ऋतुओं में फल, पुष्प आदि उत्पन्न करने लगे। इस कारण उस प्रदेश में मुनियों की आवाजाही बढ़ने लगी। वे मुनिगण श्रेष्ठ तपस्वी सिद्ध हुए और विषयवृत्तियों के त्याग के लिए प्रशंसित हुए।”
आबू के शिलालेख से जानकारी मिलती है कि रावल समरसिंह ने अचलेश्वर के मठाधीश भावशंकर की आज्ञा से इस मठ का जीर्णोद्धार करवाया व तपस्वियों के भोजन हेतु व्यवस्था करवाई। इस शिलालेख में यज्ञ आदि से संबंधित मान्यताओं व आबू की वनस्पति का भी उल्लेख है।
गम्भीरी नदी के पुल का शिलालेख :- अलाउद्दीन खिलजी के समय चित्तौड़ में बनवाए गए गम्भीरी नदी के पुल के 10वें कोठे में किसी ने एक शिलालेख लगवा दिया। इस शिलालेख का वर्ष अनिश्चित है, परन्तु इसे पढ़ने पर प्रतीत होता है कि यह शिलालेख रावल समरसिंह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में खुदवाया था।
बाद में मेवाड़ का इतिहास मिटाने के उद्देश्य से अलाउद्दीन खिलजी के बेटे खिज्र खां ने इस शिलालेख को गम्भीरी नदी के पुल का निर्माण करते समय उसमें चुनवा दिया। इस शिलालेख में जानकारी है कि रावल समरसिंह ने भर्तृपुरिय आचार्य के लिए पौषधशाला हेतु भूमिदान किया।
चित्तौड़गढ़ का शिलालेख :- रावल समरसिंह ने यह शिलालेख 1287 ई. में खुदवाया। इस शिलालेख से जानकारी मिलती है कि रावल समरसिंह ने वैद्यनाथ के मंदिर में द्रम्म भेंट किए थे।
दरीबा का शिलालेख :- रावल समरसिंह द्वारा खुदवाया गया यह शिलालेख 1299 ई. का है। इससे जानकारी मिलती है कि दरीबा में स्थित सूरजबारी माता के मन्दिर के लिए रावल समरसिंह ने 16 द्रम्म भेंट किए।
दरीबा का शिलालेख जानकारी देता है कि रावल समरसिंह के शासनकाल में 1299 ई. में निम्बा मुख्यमंत्री थे, करणा व सोहड़ा राज्य के प्रमुख कर्मचारी थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)