मारवाड़ का प्राचीन इतिहास :- मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने मारवाड़ प्रदेश पर अधिकार किया। जयपुर के बैराठ में सम्राट अशोक के समय के शिलालेख आदि मिलने से यह अनुमान लगाया जाता है कि मारवाड़ पर भी उनका राज रहा होगा।
मौर्यों के बाद कुषाणों ने इस प्रदेश पर अधिकार किया। दूसरी सदी की शुरुआत में क्षत्रपों ने मारवाड़ पर अधिकार कर लिया। मरुप्रदेश पर शक क्षत्रप रुद्रदामन द्वारा अधिकार करने का वर्णन मिलता है।
पश्चिमी क्षत्रप नहपान के दामाद ऋषभदत्त द्वारा पुष्कर में दान-पुण्य करने का वर्णन मिलता है, जिससे नहपान के मारवाड़ पर अधिकार करने की पुष्टि होती है। कुछ समय बाद गौतमीपुत्र शातकर्णी ने नहपान के राज्य पर अधिकार कर लिया।
फिर यहां गुप्त वंश का राज रहा। गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य से लेकर भानुगुप्त तक के सिक्के भी मारवाड़ से मिले हैं। मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर के विशीर्ण दुर्ग में 2 तोरण स्तम्भ मिले हैं, जो वहां गुप्त शासकों के अधिकार की पुष्टि करते हैं।
गुप्त वंश के बाद मारवाड़ पर हूण राजा तोरमाण ने अधिकार किया। लगभग 532 ई. में मालवा के राजा यशोधर्म ने हूणों से मारवाड़ छीन लिया, लेकिन फिर भी एक हिस्से पर गुप्तों का शासन बना रहा।
गुप्तों का एक शिलालेख मारवाड़ में गोठ और मांगलोद की सीमा पर स्थित दधिमती माता के मंदिर से मिला है, जो की 617 ई. का है। फिर यहां चावड़ा वंश का राज रहा। चावड़ों की राजधानी भीनमाल रही। भीनमाल वर्तमान में राजस्थान के जालोर जिले में स्थित है।
फिर कन्नौज के बैसवंशी राजा हर्षवर्द्धन ने चावड़ों को अपने अधीन कर लिया। भीनमाल के प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय ने मारवाड़ पर अधिकार कर लिया। मारवाड़ में बुचकुला नामक स्थान से नागभट्ट का एक शिलालेख मिला है, जो की 815 ई. का है।
उनके पौत्र राजा भोज प्रतिहार का एक शिलालेख डीडवाना से मिला है, जो की 843 ई. का है। इस समय प्रसिद्ध राजा हरिश्चंद्र के वंशजों का राज मंडोर पर था।
मारवाड़ से मंडोर के राजा बाउक का एक शिलालेख मिला है, जो 837 ई. का है। घटियाला से 861 ई. के 2 शिलालेख बाउक के भाई कक्कुक के भी मिले हैं।
फिर मेवाड़ के गुहिलवंशी शासकों ने मारवाड़ के खेड़, पीपाड़ आदि स्थानों पर अधिकार कर लिया। इस समय जो प्रतिहार थे, उनके सामन्त परमारों ने मारवाड़ के कई हिस्से अपने अधीन कर लिए।
मारवाड़ में ओसियां, भीनमाल, जालोर, नाणा, किराडू आदि स्थानों से परमारों के शिलालेख मिले हैं। गुजरात के चालुक्यों ने परमारों को अपने अधीन कर लिया। चालुक्य शासक मूलराज ने 995 ई. में सत्यपुर (वर्तमान सांचोर) में स्थित वरणक नामक गाँव दान में दिया।
भीनमाल, किराडू, सांचोर, नाडौल, बाली, नारलाई, पाली, नाणा आदि स्थानों से चालुक्यों के शिलालेख मिले हैं। मारवाड़ के एक हिस्से पर चौहानों का राज भी रहा। शाकम्भरी के राजा वाक्पतिराज के एक पुत्र लक्ष्मण चौहान ने नाडौल में चौहान शासन स्थापित कर दिया।
इन्हीं लक्ष्मण चौहान के एक वंशज कीर्तिपाल चौहान ने जालोर का राज परमारों से छीन लिया और जालोर में चौहान वंश की नींव रखी। इस तरह सोनगरा चौहानों ने नाडौल, मंडोर, बाड़मेर, भीनमाल, रतनपुर, सांचोर पर अधिकार कर लिया, इनकी राजधानी जालोर रही।
मारवाड़ पर होने वाले प्रारंभिक मुस्लिम आक्रमण :- 8वीं सदी में अरब के खलीफा हाशम, 11वीं सदी में महमूद गजनवी व 12वीं सदी में मुहम्मद बहलीम ने मारवाड़ के विभिन्न इलाकों पर आक्रमण किए।
फिर 12वीं सदी के अंत में मुहम्मद गौरी ने भी मारवाड़ के कुछ इलाकों पर आक्रमण किए। 1210 ई. में इल्तुतमिश ने जालोर पर आक्रमण किया। 1217 ई. में लाहौर के सूबेदार नासिरुद्दीन महमूद ने मंडोर पर आक्रमण किया।
मारवाड़ के पशु, मेले, बोली, जनसंख्या आदि का वर्णन :- परबतसर और तिलवाड़ा के पशु मेले विख्यात हैं, जिनमें पशुओं की बिक्री बहुत ज्यादा होती है। मारवाड़ में बाघ, चीता, रीछ, सूअर, भेड़िया, लकड़बग्घा, नीलगाय, हिरण आदि जंगली जानवर होते थे।
इनमें हिरणों की संख्या तो आज भी मारवाड़ में बहुत ज्यादा है। मारवाड़ के गांवों में मोर, कबूतर व तोते बहुत होते हैं। रियासतकाल में मोर, कबूतर और बंदरों को मारने पर प्रतिबंध था।
1881 ई. की जनगणना में मारवाड़ की जनसंख्या 17,46,802 थी। जल की समस्या होने के कारण मारवाड़ के लोग अपने-अपने घरों का जल एकत्र करने के लिए टांके बनवाते थे। कुओं से जल खेतों तक पहुंचाने के लिए चड़स या रहट का प्रयोग किया जाता था।
जालोर और सोजत की खानों से पहले जस्ता और तांबा निकलता था, लेकिन फिर ये खानें बन्द कर दी गईं। मारवाड़ में मकराणा का संगमरमर बहुत प्रसिद्ध है, बड़ी-बड़ी प्रसिद्ध इमारतों और महलों का निर्माण इससे हुआ है।
मारवाड़ में जोधपुर, नागौर, जालोर और सिवाना के दुर्ग प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा और भी कई छोटे-बड़े गढ़ हैं। मारवाड़ में बोली जाने वाली मुख्य बोली मारवाड़ी है।
ओझा जी ने मारवाड़ में प्रथम श्रेणी के जागीरदारों की संख्या 144 बताई है। इन सबको ताजीम का अधिकार प्राप्त था। इनमें पोकरण, आऊवा, रास, आसोप, रायपुर, नीमाज, खैरवा, आलनियावास, भाद्राजूण, अगेवा, कंटालिया आदि प्रमुख हैं। इन सबकी पदवी ‘ठाकुर’ है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Bhài sahab please ek kitab likhiye aap , ya apke sabhi lekh ek sath mil sake esi koi vyavstha kijiye…