रावल सिंह (शासनकाल 8वीं सदी उत्तरार्द्ध) :- मेवाड़ के रावल भर्तृभट्ट प्रथम के ज्येष्ठ पुत्र रावल सिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। रावल सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनके शासनकाल में प्रसिद्ध प्रतिहार शासक मिहिरभोज ने चित्तौड़ का किला छीन लिया था।
लेकिन इस बात में कोई सच्चाई नहीं है, क्योंकि ये दोनों ही शासक समकालीन नहीं थे। मिहिरभोज के जन्म से पहले ही रावल सिंह का देहांत हो चुका था। रावल सिंह के पुत्र खुमाण द्वितीय हुए, जो इतिहास में बड़े प्रसिद्ध हुए।
रावल खुमाण द्वितीय :- मेवाड़ राजवंश में खुमाण नाम के 3 शासक हुए, जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध व प्रतापी शासक खुमाण द्वितीय थे। इनका राज्याभिषेक 805 ई. से 812 ई. के बीच हुआ।
पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण :- रावल खुमाण के शासनकाल में शाह खीमा करेड़ा के पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस मंदिर की प्रतिष्ठा जयानन्द सूरीश्वर ने की थी।
राष्ट्रकूटों से संघर्ष :- दक्षिण भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वंश के अधिकतर शासकों ने कम से कम एक बार उत्तरी भारत पर आक्रमण अवश्य किया है और सब अधिकतर युद्धों में विजयी हुए। इसी तरह राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय ने भी उत्तरी भारत पर आक्रमण किया।
राजा गोविंद तृतीय ने अपनी भारी भरकम फ़ौज के साथ केलवाड़ा की ओर से मेवाड़ में प्रवेश करते हुए मेवाड़ पर आक्रमण किया। रावल खुमाण के पास इतनी बड़ी फौज नहीं थी कि राष्ट्रकूटों का सामना कर सके, इसलिए वे धन संपदा व आवश्यक सामान साथ लेकर पहाड़ी इलाकों में चले गए।
राजा गोविंद तृतीय ने मेवाड़ के धनोप, गोडवाड़ के हठूंडी, शाहपुरा के निकटवर्ती इलाके व चित्तौड़गढ़ पर विजय प्राप्त की। इन क्षेत्रों को जीतकर राजा गोविंद तृतीय ने अपने संबंधियों को यहां की जागीरें दे दीं और खुद मालवा चले गए।
इस तरह मेवाड़ के कई क्षेत्रों पर राष्ट्रकूटों का कब्ज़ा हो गया। 815 ई. के डबोक के शिलालेख व 830 ई. के नासून के शिलालेख से चित्तौड़गढ़ सहित मेवाड़ के कई क्षेत्रों के राष्ट्रकूटों के अधीन रहने की जानकारी मिलती है।
राजा गोविंद तृतीय के पुत्र अमोघवर्ष के गुरु वीरसेनाचार्य भी इन दिनों चित्तौड़ में रहने लगे, जहां उन्होंने चित्तौड़ में ही अपने गुरु की खोज की और गुरु एलाचार्य से शिक्षा प्राप्त की।
गुरु वीरसेनाचार्य द्वारा लिखित ग्रंथ में चित्तौड़ की स्त्रियों की सुंदरता की तुलना उज्जैन की स्त्रियों से की गई है। रावल खुमाण द्वितीय ने अवसर पाकर मेवाड़ के इलाकों पर पुन: आक्रमण किया और कुछ स्थानों पर राष्ट्रकूटों को परास्त किया।
अलमामू को परास्त करना :- 813 से 833 ई. के मध्य बगदाद के ख़लीफ़ा अलमामू ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया। खुमाण द्वितीय ने कई राजाओं को न्यौते वगैरह भेजकर बुलाया और एक बड़ी फौज इकट्ठी कर ख़लीफ़ा को करारी शिकस्त दी।
इस लड़ाई में राजा अचलदेव बडगूजर ने भी भाग लिया था। इस लड़ाई का इतना ही वर्णन शुद्ध है, इसके अतिरिक्त विस्तार से खुमाण रासो में लिखा गया है जिसका वर्णन काल्पनिक है।
उक्त रासो में कई राजाओं और रियासतों के नाम भी लिखे हैं, जिन्होंने इस लड़ाई में भाग लिया। इन रियासतों में अजमेर, सिरोही, जैसलमेर रियासतों के नाम भी लिख दिए, जो उस समय अस्तित्व में ही नहीं थे।
इस रासो में रावल खुमाण द्वारा सोनगरा, देवड़ा, खींची चौहानों को बुलाने के बारे में भी लिखा है, जबकि इस समय तक इनका प्रादुर्भाव ही नहीं हुआ था। खुमाण रासो में कश्मीर से पड़िहारों का, राहरगढ़ से चालुक्यों का व रुणेजा से सांखलों का आना लिखा है, जबकि उस समय उक्त रियासतों में इन राजवंशों का राज था ही नहीं।
खुमाण द्वितीय ने अपने जीवनकाल में 24 लड़ाइयां लड़ी, पर इतिहास अधिक पुराना होने से प्रकाश में नहीं है। 24 वर्ष राज करने के उपरांत 836 ई. में खुमाण द्वितीय का देहांत हो गया। खुमाण रासो के अनुसार खुमाण की हत्या उन्हीं के पुत्र मंगलराज द्वारा की गई।
मेवाड़ के शासकों में रावल खुमाण इतने अधिक प्रसिद्ध हुए कि बाद के शासक स्वयं को खुमाण का वंशज बतलाने में गौरव का अनुभव करते थे। इस प्रसिद्धि का प्रमुख कारण संकट के समय रावल खुमाण द्वारा सभी क्षत्रियों को एक झंडे के नीचे लाना है।
रावल महायक :- ये रावल खुमाण द्वितीय के पुत्र थे। इनका शासनकाल लगभग 837 ई. से 877 ई. तक रहा। इनके समयकाल के दौरान प्रतिहार व राष्ट्रकूटों का वर्चस्व बहुत बढ़ गया था।
रावल खुमाण तृतीय :- रावल खुमाण तृतीय का शासनकाल 877 ई. से 926 ई. तक रहा। रावल खुमाण तृतीय ने मेवाड़ के कई इलाकों को पुनः जीत लिया।
इनके बारे में चित्तौड़गढ़ अभिलेख (1274 ई.) में लिखा है कि ये अपने अधीनस्थ राजाओं के मुकुटमणि थे। सादड़ी अभिलेख (1439 ई.) से प्राप्त जानकारी के अनुसार खुमाण तृतीय ने स्वर्ण का तुलादान किया। इनके पुत्र भर्तृभट हुए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)