मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह भाग – 24

1884 ई. – मारवाड़ व किशनगढ़ नरेश का मेवाड़ आगमन :- जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह राठौड़ 24 मार्च, 1884 ई. को जोधपुर से रवाना हुए। पाली, अजमेर, चित्तौड़गढ़ होते हुए 27 मार्च को निम्बाहेड़ा स्टेशन पर पहुंचे।

उनके साथ कर्नल प्रतापसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के भाई), महाराज जोरावरसिंह के पुत्र फतहसिंह, नीमाज के ठाकुर छत्रसिंह, रोयट के ठाकुर गिरधारीसिंह, भूभलिया के ठाकुर रणजीतसिंह, कविराजा मुरारीदान, खानबहादुर फैजुल्ला खां, फ़ज़लरुसूल, रिसालदार वज़ीर अली, मीर फैय्याज अली, रणजीतसिंह शोभावत, ड्योढीदार सहसकरण शोभावत, महता कुंदनलाल आदि कुल 300 आदमी थे।

महाराणा सज्जनसिंह के आदेश से हमीरगढ़ के रावत नाहरसिंह, भदेसर के रावत भोपालसिंह, कायस्थ फूलनाथ व कायस्थ जालिमचंद पेशवाई हेतु निम्बाहेड़ा पहुंचे। महाराजा जसवन्तसिंह समेत सभी वहां से रवाना होकर मंगरवाड़ (मंगलवाड़) स्थित बंगले पर पहुंचे।

भोजन करके वहीं रात्रि बिताई। 28 मार्च को महाराजा ने डबोक के बंगले में पड़ाव किया। महाराणा सज्जनसिंह ने इन स्थानों पर पहले ही सारी व्यवस्था करवा रखी थी। डबोक में कुछ देर ठहरकर महाराजा जसवन्तसिंह उदयपुर के सूरजपोल दरवाज़े के बाहर स्थित चम्पाबाग में पहुंचे।

जोधपुर महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़

यहां महाराजा जसवन्तसिंह को सूचना मिली कि महाराणा सज्जनसिंह बीमार हैं। महाराजा ने सन्देश भिजवाकर महाराणा को पेशवाई हेतु आने के लिए मना कर दिया। फिर महाराणा ने पेशवाई हेतु कविराजा श्यामलदास और महता तख्तसिंह को भेजा।

ये दोनों बदनमल की बावड़ी तक गए और पेशवाई की। शाम के वक्त महाराजा जसवन्तसिंह बग्घी में सवार हुए। फिर उदयपुर के फ़ौजी रिसाले, बैंड बाजे व बॉडीगार्ड के साथ सूरजपोल दरवाज़े के रास्ते से बड़े बाजार में होकर शम्भूनिवास में बग्घी से उतरे।

सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया, कविराजा श्यामलदास व महता राय पन्नालाल ने महाराजा की पेशवाई की और उन्हें महलों के भीतर ले आए। यहीं महाराणा सज्जनसिंह व महाराजा जसवन्तसिंह की मुलाकात हुई।

मुलाकात के बाद महाराजा ने तो शम्भूनिवास में रात्रि बिताई और महाराणा अखाड़े की तरफ चले गए। महाराजा को किसी तरह की कमी न हो, इसलिए कविराजा श्यामलदास, महासाणी मोतीलाल आदि को वहीं तैनात किया गया।

29 मार्च को महाराजा जसवंतसिंह ने ‘जलविमान’ नामक नौका में सवार होकर पिछोला झील की सैर की और गणगौर मेला देखा। महाराणा ने बीमारी के कारण सवारी नहीं की। 30 मार्च को ख़बर मिली कि उदयपुर शहरकोट के करीब तीखल्या पहाड़ी पर एक सुनहरी शेरनी दिखाई दी है।

महाराणा सज्जनसिंह

महाराणा तो नहीं गए, पर महाराजा जसवन्तसिंह ने उस शेरनी को ढूंढकर उसका शिकार किया। 31 मार्च को महाराणा व महाराजा दोनों ने एक बड़ी नाव में सवार होकर गणगौर मेला और आतिशबाजी का नज़ारा देखा।

इन्हीं दिनों किशनगढ़ के महाराजा शार्दूलसिंह का भी उदयपुर आना हुआ। ये महाराजा 2 अप्रैल की सुबह निम्बाहेड़ा व शाम को मंगरवाड़ होते हुए 3 अप्रैल को उदयपुर पहुंचे। महाराणा सज्जनसिंह तबियत ख़राब होने के कारण पेशवाई हेतु नहीं गए।

महाराजा शार्दूलसिंह व महाराजा जसवन्तसिंह ने महाराणा सज्जनसिंह से अर्ज़ किया कि आप तख़्त की सवारी करें। महाराणा ने उनके निवेदन को स्वीकार किया। 4 अप्रैल को बड़ी पोल के रास्ते से महाराणा ने तख़्त की सवारी की।

इस दौरान दोनों महाराजा अपने-अपने घोड़ों पर तख़्त के सामने रहे। तीनों शासकों ने गणगौर घाट से नाव में सवार होकर मेले व आतिशबाजी के आनंद लिए और तालाब की सैर करते हुए शम्भूनिवास पहुंचे।

7 अप्रैल को महाराणा ने दस्तूरी दरबार रखा, जिसमें अपने सरदारों व अहलकारों से महाराजा जसवन्तसिंह को नज़राने करवाए। 9 अप्रैल को कविराजा श्यामलदास द्वारा ‘श्यामल बाग’ में तीनों शासकों को दावत दी गई। 10 अप्रैल को जोधपुर महाराजा जसवन्तसिंह एकलिंगजी के दर्शन करने गए और फिर उदयपुर लौट आए।

11 अप्रैल को तीनों शासक हाथियों की लड़ाई देखने के बाद महाराणा के मामा बख्तावरसिंह की हवेली पर गए और वहीं भोजन किया। 13 अप्रैल को तीनों शासकों ने नाव में सवार होकर ‘धींगा गणगौर मेला’ देखा। यह मेला महाराणा राजसिंह प्रथम ने शुरू किया था। 15-16 अप्रैल को तीनों ने जगमंदिर और जगनिवास देखा।

17 अप्रैल की शाम को जोधपुर महाराजा को विदा किया गया। दस्तूर के अनुसार महाराणा ने महाराजा जसवन्तसिंह को वस्त्रालंकार की 21 किश्तियाँ, युद्धकौशल में प्रवीण ‘मेदिनीमल्ल’ नाम का एक हाथी, हाथी के 2 बच्चे, 4 घोड़े, तलवारें, खुकुड़ी, जमधर आदि भेंट किए।

महाराणा ने 4 किश्तियाँ और एक घोड़ा महाराज प्रतापसिंह को, 3 किश्तियाँ और एक घोड़ा कुंवर फतहसिंह को भेंट किया। महाराणा सज्जनसिंह जोधपुर महाराजा को पहुंचाने हेतु नाहरमगरा तक गए। वहां से महाराजा जसवन्तसिंह राजसमन्द, देसूरी होते हुए मारवाड़ की तरफ गए और महाराणा पुनः उदयपुर लौट आए।

उदयपुर राजमहल

23 अप्रैल को किशनगढ़ के महाराजा शार्दूलसिंह राठौड़ शम्भूनिवास में आए, जहां महाराणा ने दस्तूरी दरबार रखा। महाराणा ने इन महाराजा को वस्त्रालंकार की 15 किश्तियाँ, एक हाथी व 2 घोड़े भेंट किए।

फिर महाराणा ने खुशमहल में किशनगढ़ महाराजा की विदायगी का दस्तूरी दरबार रखा। शाम के वक्त दोनों शासकों ने महता माधवसिंह की दावत कुबूल करके भोजन किया। इसी तरह 28 अप्रैल को महता तख्तसिंह के यहां दावत हुई।

1 मई को महाराणा ने महाराजा शार्दूलसिंह व अपनी भुआ कीकाबाई जी को विदा किया। महाराणा इनको पहुंचाने के लिए सहेलियों की बाड़ी तक गए। रात का पड़ाव यहीं हुआ। अगले दिन 2 मई की सुबह को महाराजा शार्दूलसिंह वहां से किशनगढ़ की तरफ रवाना हो गए। जोधपुर व किशनगढ़ महाराजाओं के स्वागत सत्कार व खातिरदारी में 80 हज़ार रुपए ख़र्च हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. pawan meena
    February 11, 2022 / 4:19 pm

    hukum aap ne bhut hi sunder jankari di hai tha isthas ko hum tak puchane me aap ka bhut bhut dhanyabad hukum

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