1881 ई. – जनगणना से नाराज़गी व कुछ अन्य मांगों को लेकर ज़बरदस्त भील विद्रोह :- जनगणना, बराड़ टैक्स आदि के कारण भीलों ने ज़बरदस्त विद्रोह किया। इस विद्रोह के दमन हेतु महाराणा सज्जनसिंह द्वारा कविराजा श्यामलदास को भेजा गया था।
इसी दौरान कागदर और ढणकावाड़ा की पाल के कुछ गमेती आए और कविराजा से मिले। इनके और बीलक वालों के बीच में झगड़ा था। कविराजा ने उन गमेतियों को तसल्ली दी।
कागदर वाले गमेतियों ने कविराजा की बात मानकर ऋषभदेव और खेरवाड़ा के बीच का रास्ता खोल दिया गया, जहां 300 गुजराती यात्री इस लड़ाई के दौरान फंसे हुए थे। इन यात्रियों की जान में जान आई और ये गुजरात की तरफ रवाना हो गए।
कविराजा श्यामलदास खेरवाड़ा गए और अंग्रेज अफसर टेम्पल से मिले। टेम्पल ने खेरवाड़ा में मौजूद मेवाड़ भील कॉर्प के 4 भील अफसरों को कविराजा के साथ भेज दिया, ताकि वे अन्य बग़ावत करने वाले भीलों को समझा सके।
भीलों ने 24 शर्तें कविराजा श्यामलदास के समक्ष रखीं, जिनमें से 15 शर्तें तो कविराजा ने उसी समय ख़ारिज कर दीं और शेष 9 शर्तें महाराणा के सामने पेश करवाने हेतु भिजवा दीं।
महाराणा की तरफ से फिर से एक खत आया, जिसमें लिखा था कि फ़िज़ूल की शर्तें हटाकर कविराजा ने अच्छा काम किया। अब बाकी शर्तों पर भीलों से बातचीत की जावे।
कविराजा श्यामलदास व मामा अमानसिंह और भीलों के मुखिया बीलक का नीमा गमेती और पीपली का खेमा के बीच शर्तों को लेकर बात हो रही थी। उस वक्त थोड़ी ही दूर डेढ़ हजार भील खड़े थे, जो कविराजा की हर बात काटते थे और शोरोगुल करते थे।
सिंधी जमादारों ने कविराजा से इशारे में कहा कि अब अंधेरे में भीलों के बीच ठहरना ठीक नहीं। फिर कविराजा वहां से लौट गए। हर रोज भीलों से सुलह की बातचीत होती, लेकिन बाकी के भील किसी न किसी बात पर रोकटोक करते या कोई नई शर्त जोड़ देते थे।
19 अप्रैल को मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल ब्लेअर और मेवाड़ के सेटलमेंट ऑफिसर विंगेट वहां आ पहुंचे। कर्नल ब्लेअर भीलों को समझाने के लिए जाने लगा। कविराजा ने उसे रोकना चाहा, लेकिन फिर भी वह अकेला ही जाने लगा।
3-4 हज़ार भील पहाड़ी पर खड़े थे, उन्होंने ब्लेअर को रोककर दूर से ही चिल्लाकर कहा कि “तुम दिल्ली वाले हो, चले जाओ यहां से। श्रीदरबार महाराणा के भेजे हुए हाकिम यहां आए हुए हैं, हम उन्हीं से बात करेंगे।”
ब्लेअर ने भीलों के नेतृत्वकर्ताओं में से एक-दो गमेतियों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि “हम तुम्हारी सारी तकलीफें मिटा देंगे। तुम्हारी जो भी तकलीफें हैं, वो हमसे कहो।”
गमेतियों ने कहा कि “जमादार बालगोविंद ने जो बराड़ (एक प्रकार का टैक्स) लगाया है वो हटा दिया जावे, जनगणना रोक दी जावे और जमीन की पैमाइश रोकी जावे।” ब्लेअर ने कहा कि “हम महाराणा साहिब के अफसरों से कहकर तुम्हारी तकलीफ मिटा देंगे।”
फिर ब्लेअर ने कविराजा श्यामलदास से कहा कि “भीलों की ये बग़ावत बहुत दूर-दूर तक फैल गई है। बराड़ के बारे में कोई न कोई फैसला जल्द किया जावे, वरना ये बग़ावत महाराणा की फ़ौज से नहीं दबेगी। हमें अलग से अंग्रेज सरकार की फ़ौज मंगवानी पड़ेगी और यदि यहां सरकार की फ़ौज आई, तो ये बात मेवाड़ रियासत के लिए अच्छी नहीं होगी।”
तब कविराजा श्यामलदास ने कहा कि “भीलों ने 1350 वर्षों तक श्री दरबार महाराणाओं की हुकूमत मानी है। यदि हम इन्हें समझाने की हिम्मत न रखते, तो इतनी लंबी हुकूमत कैसे करते। इस ख़ातिर इन्हें किसी पलटन द्वारा ना दबाया जावे, हम खुद इन्हें समझा लेंगे”
ब्लेअर ने कहा कि “आज शाम तक आप उनको समझा लो, वरना कल हम इसका फैसला करेंगे। क्योंकि इस बग़ावत से अंग्रेज सरकार, मेवाड़ रियासत और गरीब जनता सबका नुकसान हो रहा है।”
कविराजा श्यामलदास व मामा अमानसिंह भीलों को समझाने के लिए ऋषभदेव की पुरी के बाहर एक टीले पर कुर्सियों पर बैठे और आसपास करीब 100 से ज्यादा गमेती बैठे और शेष 6-7 हज़ार भील पास की पहाड़ियों पर मौजूद रहे। (भीलों के मुखिया को गमेती कहा जाता था)
कविराजा ने भीलों को लगभग समझा ही लिया था कि तभी महाजन लोगों ने बीच में पड़कर सुलह तुड़वानी चाही, तो कविराजा ने ललकारकर अपने आदमियों से कहा कि इन महाजनों को यहां से हटाओ।
इसी बीच अफरा-तफरी हुई और एक शराबी भील ने बंदूक से गोली चलाई, जो एक मेवाड़ी सैनिक के पैर की पिंडली में लगी। गोली लगते ही सिपाहियों ने भीलों पर फायरिंग शुरू कर दी और भीलों ने भी तीर-बंदूकों से वार किया।
जो 100 गमेती कविराजा के पास मौजूद थे, उनमें से एक गमेती ने कविराजा की छाती में तीर मारने का प्रयास किया, लेकिन नठारा के गोकलिया भील ने उसके हाथ से तीर छीन लिया, क्योंकि गोकलिया भील को कविराजा ने सलूम्बर वालों की क़ैद से छुड़ाया था। भील अपने ऊपर किए गए एहसान को कभी नहीं भूलते थे।
कुछ अंग्रेज अफ़सर घोड़ों पर सवार हुए और खेरवाड़ा की तरफ भाग निकले। इस अचानक छिड़ी लड़ाई में भीलों ने सामान वग़ैरह लूट लिया। कविराजा ने एक कंपनी और 50 सवार भेजकर बाकी का सामान लूटने से बचा लिया।
शेष अगले भाग में। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)