किशनगढ़ रियासत की तरफ से आया हुआ विवाह प्रस्ताव :- 22 जून, 1876 ई. को किशनगढ़ रियासत की तरफ से आए हुए विवाह प्रस्ताव को महाराणा सज्जनसिंह ने स्वीकार कर लिया।
जोधपुर रियासत की तरफ से विवाह प्रस्ताव आना :- इन्हीं दिनों जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह राठौड़ ने अपनी बहन का विवाह प्रस्ताव प्रसिद्ध चारण कवि मुरारीदान के हाथों महाराणा सज्जनसिंह के पास भिजवाया। 5 अगस्त को मुरारीदान उदयपुर पहुंचे।
उनकी पेशवाई के लिए धरियावद के रावत केसरीसिंह व बेमाली के रावत लक्ष्मणसिंह को धायभाई की पुलां तक भेजा गया। मुरारीदान ने कहा कि जोधपुर में मुझे बांहपसाव का सम्मान मिला है, तो यहां भी वैसा ही सम्मान मिलना चाहिए।
महाराणा सज्जनसिंह ने पहले तो कविराजा श्यामलदास को बांहपसाव से सम्मानित किया और फिर 8 अगस्त को कविराजा मुरारीदान को ताजीम और बांहपसाव से सम्मानित किया। परंतु कुछ अड़चनें ऐसी आईं कि ये विवाह सम्बन्ध न हो सका। 3 अक्टूबर को मुरारीदान को जोधपुर जाने के लिए विदा कर दिया गया।
बारात का किशनगढ़ प्रस्थान :- 18 अक्टूबर को किशनगढ़ वाले विवाह की तैयारियां शुरू हुई और इस दिन उदयपुर राजमहलों में गणपति स्थापना हुई। 24 अक्टूबर को कविराजा श्यामलदास ने महाराणा को दावत दी।
इसी तरह महता गोकुलचंद, बागोर के महाराज शक्तिसिंह, बख्तावरसिंह राठौड़, राव बदनमल, ढींकड्या तेजराम, महता मुरलीधर, करजाली के महाराज सूरतसिंह, महता लालचंद, शिवरती के महाराज गजसिंह, पुरोहित पद्मनाथ, पीपलिया के रावत कृष्णसिंह, धायभाई गणेशलाल,
सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया, ताणा के राज देवीसिंह झाला, पारसोली के राव लक्ष्मणसिंह चौहान, बेदला के राव बख्तसिंह चौहान, अर्जुनसिंह कायस्थ, कुराबड़ के रावत रतनसिंह चुंडावत, काकरवा के उदयसिंह राणावत ने भी महाराणा को बिंदोले/बनोले (दावतें) दीं।
4 नवम्बर को उदयपुर से बारात रवाना हुई। 8 नवम्बर को गुरलां में पड़ाव हुआ। फिर वहां से भीलवाड़ा होते हुए बनेड़ा पहुंचे, जहां राजा गोविन्ददास की तरफ से किले में दावत दी गई। वहां से शाहपुरा गए, जहां के राजाधिराज नाहरसिंह ने दावत दी।
फिर महाराणा फूलिया होते हुए सरवाड़ पहुंचे। सरवाड़ में किशनगढ़ के महता सौभाग्यसिंह और रघुनाथपुरा के जागीरदार भारतसिंह राठौड़ टीके का दस्तूर लेकर आए। फिर महाराणा सज्जनसिंह आकोदड़ा से कुछ दूर पहुंचे।
वहां 16 नवम्बर को किशनगढ़ के महाराजा पद्मसिंह राठौड़, कुंवर शार्दूलसिंह, कुंवर जवानसिंह, पोलिटिकल एजेंट बेली सहित पेशवाई हेतु आए। बग्घियों में सवार होकर महाराणा सज्जनसिंह व सरदार आदि सब बाराती किशनगढ़ पहुंचे।
शाम के वक्त बड़ी धूमधाम से किशनगढ़ महाराजा पृथ्वीसिंह राठौड़ की पुत्री राजकुमारी जवाहर कुंवर बाई के साथ महाराणा सज्जनसिंह का विवाह संपन्न हुआ।
26 नवंबर को महाराणा सज्जनसिंह गगवाणा होते हुए अजमेर पहुंचे, जहां के कमिश्नर सहित कुल 8 अंग्रेज अफसर पेशवाई हेतु आगे आए। महाराणा प्रसिद्ध आनासागर झील के निकट स्थित सेठ शमीरमल की कोठी में ठहरे। महाराणा ने 29 नवम्बर को पुष्कर में स्नान किया।
महाराणा का दिल्ली प्रस्थान :- इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने केसर-ए-हिन्द की उपाधि धारण की, जिसके उपलक्ष्य में गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन ने 1 जनवरी, 1877 ई. को दिल्ली में दरबार रखना तय किया। सभी प्रतिष्ठित राजा-महाराजाओं को निमंत्रण भेजे गए।
महाराणा सज्जनसिंह ने काफ़ी बहस के बाद निमंत्रण स्वीकार किया। महाराणा सज्जनसिंह इस समय किशनगढ़ से विवाह करके लौटते वक्त पुष्कर में रुके थे।
5 दिसम्बर, 1876 ई. को महाराणा सज्जनसिंह ने जनानी सवारी व कुछ फ़ौज उदयपुर की तरफ रवाना की और स्वयं 17 दिसम्बर को अजमेर से स्पेशल ट्रेन में सवार होकर जयपुर पहुंचे।
जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह कछवाहा पेशवाई हेतु स्टेशन तक आए। फिर कुछ दस्तूरी रस्में अदा हुई, जिसके बाद महाराणा ट्रेन में सवार होकर 18 दिसम्बर, 1876 ई. को दिल्ली पहुंचे।
दिल्ली के कमिश्नर कर्नल डेविस, मेजर ऑडर्स आदि अंग्रेज अफसर पेशवाई हेतु आए। महाराणा सज्जनसिंह के सम्मान में 19 तोपों की सलामी सर हुई। जब महाराणा अपने डेरों में पहुंचे, तब भी 19 तोपों की सलामी सर हुई।
राजपूताने के राजाओं की आपसी भेंट :- इस समय तक मेवाड़ और मारवाड़ के शासकों के बीच पिछले 105 वर्षों से मुलाकात बन्द थी। हालांकि महाराणा शम्भूसिंह व महाराजा तख्तसिंह के बीच मुलाकात हुई थी, लेकिन वह दस्तूरी मुलाकात नहीं थी।
इस वक्त मेवाड़ के कविराजा श्यामलदास व मारवाड़ के कविराजा मुरारीदान ने राजपूताने में एकता लाने के लिए अपने-अपने मालिकों की इच्छाओं के विरुद्ध जाकर उक्त दोनों शासकों की मुलाकात करवाने के प्रयास किए।
कविराजाओं के प्रयासों से 21 दिसम्बर को जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़ महाराणा सज्जनसिंह से मिलने उनके शिविर में आए। महाराणा पेशवाई हेतु आगे आए। कुछ देर बातचीत हुई और फिर जोधपुर महाराजा अपने शिविर में लौट गए।
अगले दिन महाराणा सज्जनसिंह ने जोधपुर महाराजा के शिविर में जाकर मुलाकात की। फिर शाम के वक्त रीवां के महाराजा रघुराजसिंह महाराणा से मिलने के लिए आए। 23 दिसम्बर को भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन दिल्ली पहुंचा।
25 दिसम्बर को किशनगढ़ के महाराजा पृथ्वीसिंह राठौड़ महाराणा सज्जनसिंह से मिलने आए। फिर झालावाड़ के महाराजराणा जालिमसिंह द्वितीय महाराणा से मिलने आए। फिर महाराणा सज्जनसिंह बग्घी में सवार होकर किशनगढ़ महाराजा से मिलने गए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)