मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह (भाग – 6)

नवम्बर, 1875 ई. – महाराणा सज्जनसिंह का बम्बई से उदयपुर प्रस्थान :- महाराणा सज्जनसिंह बम्बई अवश्य गए, लेकिन 9 नवम्बर, 1875 ई. को हुए ब्रिटिश दरबार में सम्मिलित नहीं हुए। जब महाराणा बम्बई स्थित अपने डेरों में जा रहे थे, तब इतनी ज्यादा बग्घियां चल रही थी कि बग्घी मोड़ना भी बड़ा मुश्किल हो रहा था।

10 नवम्बर को ख़ुद प्रिंस ऑफ वेल्स महाराणा से मिलने आया। 11 नवम्बर की शाम को महाराणा ने स्पेशल ट्रेन में सवार होकर बम्बई से प्रस्थान किया और 12 नवम्बर को भड़ौच में नर्मदा नदी में स्नान किया। फिर उसी ट्रेन में सवार होकर बड़ौदा पहुंचे।

बड़ौदा में महाराणा के सम्मान में तोपों व फ़ौज की सलामी सर हुई। फिर महाराणा अहमदाबाद पहुंचे, जहां छावनी से महाराणा के सम्मान में 19 तोपों की सलामी सर हुई। वहां स्थित सेठ मगनभाई हटीभाई के बंगले पर पधारे।

महाराणा सज्जनसिंह 14 नवम्बर को वहां से रवाना हुए और देवगाम, हरसोल की छावनी, बाकरोल, समेरा, सीसोद, धूलेव में पड़ाव डालते हुए 19 नवम्बर को उदयपुर के राजमहलों में दाखिल हुए।

उदयपुर सिटी पैलेस

भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक का उदयपुर आना :- 23 नवम्बर को गवर्नर जनरल लॉर्ड नॉर्थब्रुक खुद उदयपुर आया। उदयपुर से करीब 3-4 मील दूर लॉर्ड नॉर्थब्रुक व महाराणा सज्जनसिंह की मुलाकात हुई। दोनों अपने-अपने हाथी पर सवार थे।

लॉर्ड नॉर्थब्रुक को शम्भूनिवास महल में ठहराया गया। इस वक्त खेरवाड़ा की भील कोर्प्स भी यहीं मौजूद थी। 24 नवम्बर को महाराणा सज्जनसिंह अपने सरदारों के साथ शम्भूनिवास महल में लॉर्ड नॉर्थब्रुक से मिलने गए।

इस वक्त उनके साथ बेदला के राव बख्तसिंह चौहान, सलूम्बर के रावत जोधसिंह चुंडावत, देलवाड़ा के राज फतहसिंह झाला, गोगुन्दा के राजराणा मानसिंह झाला, बदनोर के ठाकुर केसरीसिंह मेड़तिया राठौड़, बांसी के रावत मानसिंह शक्तावत, पारसोली के राव लक्ष्मणसिंह चौहान, आसींद के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत व करजाली के महाराज सूरतसिंह मौजूद थे।

25 नवम्बर को लॉर्ड नॉर्थब्रुक महाराणा से मिलने राजमहलों में आया। उदयपुर के इस सफर में लॉर्ड नॉर्थब्रुक ने जगमंदिर महल, गोवर्द्धनविलास महल, जगनिवास महल व महासतिया स्थित मेवाड़ महाराणाओं की छतरियों के दर्शन किए।

लॉर्ड नॉर्थब्रुक उदयपुर की खूबसूरती से काफी प्रभावित हुआ। 3 दिन उदयपुर में ठहरकर 26 नवम्बर को लॉर्ड नॉर्थब्रुक राजनगर होते हुए जोधपुर की तरफ चला गया।

महाराणा सज्जनसिंह

ईडर महाराजा का उदयपुर आगमन :- ईडर के महाराजा केसरीसिंह राठौड़ सलूम्बर में विवाह करके 5 मार्च, 1876 ई. को अपने बहनोई महाराणा सज्जनसिंह से मिलने उदयपुर आए। उनको सहेलियों की बाड़ी में ठहराया गया। 9 दिन ठहरकर 14 मार्च को वे ईडर की तरफ रवाना हो गए।

किशनगढ़ से विवाह प्रस्ताव आना :- किशनगढ़ के महाराजा पृथ्वीसिंह राठौड़ ने अपनी कन्या का विवाह महाराणा सज्जनसिंह से करवाने हेतु इस सम्बंध में मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल हर्बर्ट के ज़रिए महाराणा से बातचीत की।

19 मई को किशनगढ़ की तरफ से कोटड़ी के ठाकुर मेघसिंह और महता महेशदास महाराणा की गद्दीनशीनी का टीका लेकर उदयपुर आए, तब इस विवाह सम्बन्ध के बारे में बातचीत आगे बढ़ी।

महाराणा – एक सुकवि के रूप में :- महाराणा सज्जनसिंह अपने काव्यानुराग के कारण हर सोमवार को उदयपुर में कवि सम्मेलन आयोजित करवाते थे। महाराणा सज्जनसिंह स्वयं कवि व कवियों के आश्रयदाता थे।

महाराणा ने स्वयं भी कई दोहे आदि रचे थे। महाराणा द्वारा रचित बहुत से दोहों, सोरठों आदि का संग्रह बिजोलिया के राव कृष्णसिंह पंवार ने ‘रसिकविनोद’ नामक पुस्तक बनाकर प्रकाशित की।

महाराणा सज्जनसिंह ने मेवाड़ के कविराजा श्यामलदास, मारवाड़ के कविराजा मुरारीदान, भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र को सम्मानित किया। महाराणा ने कविराजा श्यामलदास से वीर विनोद नामक ग्रंथ लिखवाया।

महाराणा ने न्याय और अलंकार के ज्ञाता सुब्रमण्य शास्त्री द्रविड़, ज्योतिष व धर्मशास्त्र के विद्वान विनायक शास्त्री वेताल, सुप्रसिद्ध ज्योतिषी नारायणदेव, वैयाकरण पंडित अजीतदेव को मेवाड़ में आमंत्रित करके अपने यहीं रखा।

10वीं सदी से भी पुराने शिलालेखों को पढ़वाने के लिए महाराणा ने संस्कृत साहित्य और व्याकरण के विद्वान पंडित रामप्रताप ज्योतिषी को नियुक्त किया। ऐतिहासिक संस्कृत ग्रंथों के हिंदी अनुवाद के लिए महाराणा ने पंडित परमानंद भटमेवाड़ा को नियुक्त किया।

प्रताप नाटक नामक गुजराती ग्रंथकर्ता गणपतराम राजाराम भट्ट का उदयपुर आना हुआ, तो महाराणा सज्जनसिंह ने ग्रंथ सुनकर प्रसन्नता से उनको 400 रुपए (सरूपशाही) भेंट किए। इस प्रकार महाराणा सज्जनसिंह के शासनकाल में साहित्य के क्षेत्र में बड़ी ही उन्नति हुई।

महाराणा सज्जनसिंह

चापलूसों की बातों को अनसुना करना :- मेवाड़ के खैरख्वाह महता पन्नालाल के बारे में चापलूसों ने महाराणा सज्जनसिंह के कान भरे और कहा कि ये रिश्वत बहुत लेता है, पर महाराणा असलियत जानते थे इसलिए उन्होंने चापलूसों की बातों पर ध्यान न दिया।

महता अक्षयसिंह की समझदारी :- महाराणा सज्जनसिंह ने महता अक्षयसिंह को मगरा क्षेत्र का दायित्व सौंपा, जहां अक्षयसिंह ने भीलों को खेती के काम में लगाकर राज्य की आय में वृद्धि की।

अगले भाग में नाथद्वारा के गोस्वामी द्वारा बग़ावत करने का वर्णन विस्तृत रुप से लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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