1870 ई. – अजमेर में लॉर्ड मेयो के दरबार में शामिल होने हेतु महाराणा शम्भूसिंह का अजमेर जाना :- भैंसरोड के रावत अमरसिंह के गुज़र जाने से उनकी मातमपुरसी ख़ातिर महाराणा वहां के रावत भीमसिंह के यहां भी पधारे। 15 अक्टूबर को बड़ी रूपाहेली में ठहरकर 16 अक्टूबर को महाराणा ने बरल गांव में पड़ाव डाला, जहां अजमेर और मेवाड़ की सीमा मिलती है।
बरल गांव में अंग्रेज सरकार की तरफ से महाराणा के स्वागत हेतु मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कर्नल निक्सन, ब्यावर के असिस्टेंट रेप्टेन व एजेंट गवर्नर जनरल के दूसरे सेक्रेटरी चार्ल्स बटन को भेजा गया।
अफ़सर स्वागत के लिए आगे आए और महाराणा को हाथी पर सवार करके बरल के बंगले में आदर सहित ले गए। अंग्रेज सरकार ने पहले ही महाराणा से कहा था कि आपकी कुल फ़ौज 4 हज़ार से ज्यादा न हो।
लेकिन सरदारों की जमइयत भी साथ होने से यह संख्या 6-7 हज़ार तक हो गई थी। अंग्रेज सरकार ने कहा कि यह फौजी संख्या कम की जाए, लेकिन महाराणा ने फ़ौज कम नहीं की। 17 अक्टूबर को महाराणा बांदरवाड़े में पहुंचे।
18 अक्टूबर को नसीराबाद छावनी में पड़ाव हुआ, जहां छावनी के ब्रिगेडियर जनरल और मजिस्ट्रेट 4 मील तक पेशवाई के लिए आए। महाराणा के सम्मान में अंग्रेजों ने 19 तोपों की सलामी सर की। 19 अक्टूबर को महाराणा शम्भूसिंह अजमेर पहुंचे, जहां अंग्रेज अफ़सर पेशवाई के लिए 2 कोस तक आए।
20 अक्टूबर को मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह, जोधपुर महाराजा तख्तसिंह, बूंदी महाराव रामसिंह, कोटा महाराव शत्रुशाल, टोंक नवाब मुहम्मद इब्राहिम अली खां, कृष्णगढ़ महाराजा पृथ्वीसिंह व झालावाड़ महाराजराणा पृथ्वीसिंह अपने-अपने हाथी पर सवार थे।
सामने से लॉर्ड मेयो हाथी पर सवार होकर आया और हौदे में खड़े होकर टोपी उतारकर पहली सलामी महाराणा शम्भूसिंह को दी, तो जवाब में महाराणा ने भी खड़े होकर अभिवादन किया। फिर लॉर्ड मेयो ने जोधपुर व बूंदी के राजाओं को सलाम किया।
इस औपचारिकता के बाद सभी राजा अपने-अपने शिविर में लौट गए। 21 अक्टूबर की सुबह महाराणा शम्भूसिंह अपने व अंग्रेज अफसर लाठ के शिविर के बीच स्थित शामियाने में पहुंचे।
वहां लॉर्ड मेयो का सेक्रेटरी, राजपूताने का ए.जी.जी. कर्नल ब्रुक, मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल निक्सन, हाड़ौती का पोलिटिकल एजेंट आदि कुल 6-7 अंग्रेज अफ़सर हाथियों पर सवार होकर महाराणा को लेने आए।
महाराणा शम्भूसिंह के साथ बेदला के राव बख्तसिंह चौहान, देलवाड़ा के राजराणा फतहसिंह झाला, कानोड़ के रावत उम्मेदसिंह सारंगदेवोत, पारसोली के राव लक्ष्मणसिंह चौहान, आसींद के रावत खुमाणसिंह चुंडावत,
शिवरती के महाराज गजसिंह, करजाली के महाराज सूरतसिंह, बागोर के महाराज सोहनसिंह व प्रधान महता गोकुलचंद अपने-अपने हाथियों पर सवार होकर अंग्रेज अफसर लाठ के शिविर में गए। वहां लाठ की तरफ से महाराणा के सम्मान में 19 तोपों की सलामी सर हुई।
वायसराय पेशवाई हेतु आया। दाईं तरफ महाराणा शम्भूसिंह व बाईं तरफ गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो बैठे। इस अवसर पर महाराणा ने लाठ से अंग्रेजी में बातचीत की। लाठ ने खड़े होकर महाराणा को हीरों का हार पहनाया व निम्नलिखित सामान महाराणा को भेंट किया :-
हीरों का एक सर्पेच, एक जोड़ी हीरों के जड़ाऊ कड़े, चांदी की 2 गुलाबदानी, चांदी की 2 दवातें, एक जोड़ी दुशाला, एक बनारसी दुपट्टा, एक खेस बनारसी जोड़ी, एक साटण थान, सियाह रंग का एक रुमाल, एक बनारसी रुमाल, एक चुग्गा,
एक सफेद चुग्गा, एक मंदील अब्बासी, एक गाज सुनहरी, 7 जामदानी, एक गलीचा, ढाके की एक मलमल, एक कम्खाब, पश्मीने का एक गुलूबंद, 7 पामड़ी जरदोजी जोड़े, 2 बन्दूकें, एक सुनहरी तलवार, सुनहरी फूलों की एक ढाल, एक घड़ी।
इसी तरह साथ आए सामन्तों को भी उपहार भेंट किए गए। फिर लॉर्ड मेयो ने खड़े होकर महाराणा शम्भूसिंह को इत्र व पान दिया। सेक्रेटरी ने सामन्तों को इत्र व पान दिया। फिर लॉर्ड मेयो ने महाराणा को बाहर तक आकर शिविर में जाने हेतु विदा किया।
सबसे पहले महाराणा से मुलाकात के बाद इसी तरह लॉर्ड मेयो ने सभी राजाओं को क्रमशः एक-एक करके आमंत्रित किया और सम्मानित करके विदा किया। 22 अक्टूबर को 10 बजे दरबार हुआ। महाराणा अपने 9 सामन्तों सहित पधारे, तब 19 तोपों की सलामी सर हुई।
इसी तरह एक-एक करके सभी राजा दरबार में उपस्थित हुए। गवर्नर जनरल की कुर्सी के बाईं तरफ सबसे पहली कुर्सी पर महाराणा शम्भूसिंह बिराजे, फिर उनसे कुछ नीचे मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल निक्सन बैठा। उसके बाद जोधपुर महाराजा तख्तसिंह की कुर्सी थी। इसी तरह हर एक राजा के बाद उस रियासत के पोलिटिकल एजेंट की कुर्सी थी।
इस दरबार में सिर्फ एक कुर्सी खाली रही, जो कि जोधपुर महाराजा तख्तसिंह राठौड़ की थी। जब महाराजा तख्तसिंह को बैठक व्यवस्था के बारे में पता चला, तो उन्हें इस बात से आपत्ति हुई कि मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट की कुर्सी उनकी कुर्सी से आगे थी।
महाराणा शम्भूसिंह इस अवसर पर सभी राजाओं से मिले और फिर सभी राजा अपने-अपने शिविर में लौट गए। लौटते समय भी दर्जे के हिसाब से तोपों की सलामी सर हुई। शाम के वक्त अंग्रेज अफसर लाठ ने महाराणा के शिविर में आकर मुलाकात की।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)