मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह भाग – 7

1869 ई. – फ़क़ीर को देशनिकाला :- एक फ़क़ीर कमल्या तालाब पर आकर बैठा और खुद को करामाती मशहूर कर दिया। कई लोगों, सामंतों और स्वयं महाराणा शम्भूसिंह भी उस फ़क़ीर की बातों में आ गए।

महाराणा का हाथ उसके सिर पर होने से वह किसी भी कारखाने से कोई भी वस्तु मंगवा लेता था। इसी तरह एक दिन उसने ख़ज़ाने की तरफ से कुछ मंगवाया, जिससे प्रधान केसरीसिंह कोठारी ने उसको मना कर दिया।

आखिरकार कविराजा श्यामलदास व कोठारी केसरीसिंह के प्रयासों से फकीर का पर्दाफाश किया गया, जिसके बाद महाराणा शम्भूसिंह ने उस फ़क़ीर को उदयपुर से निकाल दिया।

नशे की लत :- मतलबी लोगों ने महाराणा शम्भूसिंह से काम निकलवाने के लिए उनको शराब की लत लगवा दी, जो इस क़दर हावी हुई कि महाराणा चाहकर भी इससे छुटकारा न पा सके।

उन्होंने एक बार कविराजा श्यामलदास से कहा कि “मतलबी लोगों ने मुझको नशे, ऐश और इशरत में डालकर ख़त्म कर दिया।”

महाराणा शम्भूसिंह

15 जुलाई, 1869 ई. – बागोर का बखेड़ा :- बागोर महाराज समरथ सिंह का हैजे की बीमारी से देहांत हो गया। समरथ सिंह के कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने सोहनसिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया था।

पर बेदला के राव बख्तसिंह चौहान और कोठारी केसरीसिंह ने महाराणा से कहा कि जब समरथ सिंह का छोटा भाई शक्तिसिंह विद्यमान है, तो गद्दी पर सबसे छोटे भाई सोहनसिंह को नहीं बैठाना चाहिए।

पोलिटिकल एजेंट ने भी सोहनसिंह का विरोध किया, लेकिन महाराणा शम्भूसिंह अपनी बात पर दृढ़ रहे और सोहनसिंह को ही बागोर का राज दिलाया। महाराणा ने शक्तिसिंह को एक अन्य जागीर दिलवा दी।

पैतृक जागीर न मिलने के कारण शक्तिसिंह ने फ़साद करना शुरू कर दिया, तो महाराणा ने उसे गिरफ्तार करवाकर उदयपुर में नजरबंद कर दिया।

कर्नल निक्सन का उदयपुर आना :- 21 सितंबर, 1869 ई. को मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट कर्नल निक्सन छुट्टियां खत्म करके उदयपुर आया और उसकी जगह नियुक्त कार्यवाहक कर्नल हैचिन्सन लौट गया।

23 दिसम्बर, 1869 ई. – महकमा खास नामक कचहरी की स्थापना :- महाराणा शम्भूसिंह ने ‘महकमा खास’ नाम से एक कचहरी कायम की। इसका सेक्रेटरी मेहता पन्नालाल को बनाया गया।

उदयपुर सिटी पैलेस

महाराणा की बीमारी :- 1869 ई. से 1870 ई. के बीच महाराणा शम्भूसिंह को नासूर की बीमारी हो गई। कई ऑपरेशन असफल हुए, लेकिन महाराणा ने अपनी जीवनशैली को प्रभावित नहीं होने दिया व सदा हंसमुख रहे, जिससे बीमारी ज्यादा असर नहीं डाल सकी। यह बीमारी 5 माह तक रही।

उदयपुर का क़ैदख़ाना :- इस समय उदयपुर के क़ैदख़ाने में 209 कैदी थे, जिनमें से 1869 ई. में 13 कैदी मर गए। इनमें से 5 हैजा की बीमारी से मरे। कैदियों से उदयपुर की सड़कों पर काम करवाया जाता था।

उदयपुर के अस्पताल :- 1869 ई. में उदयपुर के अस्पतालों में 5451 मरीजों का इलाज हुआ, 537 टिके लगाए गए, 21 बड़े ऑपरेशन हुए व 315 छोटे सफल ऑपरेशन हुए, जिनका श्रेय डॉक्टर गेलवे को जाता है।

25 जुलाई, 1870 ई. – कोठारी केसरीसिंह द्वारा इस्तीफा देना :- कोठारी केसरीसिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। महाराणा ने उनका काम मेहता गोकुलचंद व पंडित लक्ष्मणराव को सौंपा।

अक्टूबर, 1870 ई. – महाराणा का अजमेर प्रस्थान :- गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो का अजमेर आना हुआ, तो उसने महाराणा को अजमेर आने का न्यौता दिया। महाराणा शम्भूसिंह ने इस न्यौते को पहली बार तो स्वीकार न किया, परंतु पोलिटिकल एजेंट कर्नल निक्सन के बार-बार आग्रह करने पर महाराणा राज़ी हो गए।

महाराणा शम्भूसिंह ने पहली बार मना इसलिए किया था, क्योंकि महाराणा जवानसिंह और लॉर्ड बैंटिक के बीच एक करार हुआ था कि मेवाड़ के महाराणा गवर्नर जनरल से मिलने की ख़ातिर मेवाड़ से बाहर नहीं जाएंगे।

इस घटना के बाद कई मौके आये जब मेवाड़ से बाहर दरबार हुआ और सभी राजा-महाराजा आये, लेकिन मेवाड़ महाराणा की तरफ से किसी सामंत को भेज दिया जाता था।

महाराणा शम्भूसिंह

6 अक्टूबर, 1870 ई. को महाराणा ने अपनी फ़ौज को कर्नल निक्सन के साथ रवाना किया, जो कि खेमली व देपुर में पड़ाव डालते हुए 9 अक्टूबर को राजनगर (वर्तमान राजसमन्द) पहुंचे।

इसी दिन महाराणा शम्भूसिंह शेष सैन्य सहित उदयपुर से रवाना हुए व एकलिंगनाथ जी के दर्शन करते हुए देलवाड़ा के राज फतहसिंह झाला के यहां दावत स्वीकार की। फिर बग्घी में सवार होकर राजसमन्द झील किनारे पहुंचे, जहां कर्नल निक्सन से मुलाकात हुई।

रात झील किनारे ही शिविर में बिताने के बाद महाराणा ने कुरज गांव में पड़ाव डाला। महाराणा शम्भूसिंह कोठारिया रावत संग्रामसिंह के यहां पहुंचे और संग्रामसिंह के पिता रावत जोधसिंह की मातमपुरसी की रस्म अदा की।

फिर महाराणा कांकरोली की तरफ पधारे, जहां दर्शन करके रात वहीं बिताई। 11 अक्टूबर को कुरज गांव में भोजन करके के बाद महाराणा सहाड़ा गांव में पधारे। फिर शिवरती के महाराज गजसिंह और बागोर के महाराज सोहनसिंह की तरफ से भी महाराणा को दावत दी गई।

दावत के बाद महाराणा ल्हेसवे गांव में पधारे। 13 अक्टूबर को भगवानपुरा व 14 अक्टूबर को रायला गांव में पड़ाव हुआ। वहां से महाराणा शाहपुरा के राजाधिराज लछमणसिंह की मातमपुरसी के लिए पधारे जहां राजाधिराज नाहरसिंह ने अच्छा स्वागत किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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