1792-1793 ई. – कुछ सामंतों व सिंधियों द्वारा हड़पी गई जागीरों पर महाराणा भीमसिंह का अधिकार :- आंबाजी इंगलिया की कार्यवाही के अनुसार जिन बागी सरदारों ने आपसी कलह करके मेवाड़ को हानि पहुंचाई, उनसे जुर्माना वसूला गया। चुंडावतों से 12 लाख व शक्तावतों से 8 लाख रुपए वसूले गए।
आंबाजी इंगलिया ने रायपुर और राजनगर सिंधी सिपाहियों से, गुरलां और गाडरमाला पुरावतों से, हमीरगढ़ रावत सरदार सिंह से, कुरज व कंवारिया सलूम्बर से, जहांजपुर राणावतों से छीनकर महाराणा भीमसिंह को दिलवा दिए।
वैसे तो आंबाजी इंगलिया भी एक लूटेरा सरदार था, लेकिन महाराणा से हुई सन्धि व महादजी सिंधिया से मिली हिदायत के अनुसार उसने मेवाड़ में महाराणा के नज़रिए से बड़ा अच्छा काम कर दिया और बागी सामन्तों को दबाने में सफलता हासिल की।
ईडर में महाराणा का विवाह :- मार्च, 1794 ई. में महाराणा भीमसिंह ईडर के राजा शिवसिंह राठौड़ की पुत्री गुलाब कँवर से विवाह करने हेतु पधारे। बारात में शाहपुरा के राजा भीमसिंह, बनेड़ा के राजा हमीरसिंह के पुत्र भीमसिंह, कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत, बागोर के महाराज शिवदान सिंह,
करजाली के महाराज भैरवसिंह, शिवरती के महाराज सूरजमल, पुरोहित रामराय, कारोई के महाराज बख्तावर सिंह, रावत संग्रामसिंह शक्तावत, बाठरड़ा के रावत एकलिंगदास सारंगदेवोत, हमीरगढ़ के रावत धीरतसिंह राणावत, महाराज बहादुरसिंह, उदयसिंह चौहान,
दलेलसिंह चौहान, कुशालसिंह चौहान, ठाकुर अजीतसिंह चुंडावत, आमेट के मुहब्बत सिंह चुंडावत, बनेडिया के विष्णुसिंह चौहान, अदोतसिंह, महाराणा भीमसिंह के पासवानिये भाई अर्थात महाराणा अरिसिंह की खवासनों से हुए पुत्र (गोपालदास, मनोहरदास, भगवानदास, देवीदास, चैनदास, मोहनदास, जवानदास),
धायभाई हट्टू, धायभाई उदयराम, व्यास शिवदत्त, कायस्थ महासानी रामा, साह एकलिंगदास बौल्या, महता मौजीराम, चारण आढा दूलहसिंह, कायस्थ चतुर्भुज, कायस्थ स्वरूपनाथ, सहीवाला कायस्थ नाथ, सहीवाला वल्लभदास, विष्णुदास पांडे, खवास रघुनाथ,
त्रिवाड़ी गुलाब, ड्योढ़ी के दारोगा भोई लाला, फ़र्राशखाना के दारोगा पुरोहित केशवराय, पाणेरी गजसिंह, पाणेरी मोडा, ढींकड्या गजसिंह, ढींकड्या जोरा, भोई नीका, पुरोहित नान्देश्वर, साह सतीराम गाँधी, परिहार मयाराम आदि के अतिरिक्त आंबाजी इंगलिया की तरफ से पंडित गणेश नानाराव 2 हज़ार घुड़सवारों सहित, जमादार सादिक व जमादार चन्दर भी 2 हज़ार घुड़सवारों सहित शामिल हुए।
महाराणा भीमसिंह द्वारा डूंगरपुर नरेश से जुर्माना वसूल करना :- डूंगरपुर के रावल वैरीसाल का देहांत होने पर उनके पुत्र फतहसिंह ने न तो महाराणा से तलवार बंधाई का दस्तूर कराया और न ही महाराणा के ईडर वाले विवाह में सम्मिलित हुए। (ग्रंथ वीरविनोद में भूलवश फतहसिंह को रावल शिवसिंह का उत्तराधिकारी बता दिया गया जो सही नहीं है, वास्तव में फतहसिंह रावल शिवसिंह के पौत्र थे)
इन बातों से क्रोधित होकर महाराणा भीमसिंह ने ईडर से उदयपुर लौटते समय डूंगरपुर को घेर लिया। डूंगरपुर रावल फतहसिंह महाराणा की फ़ौज देखकर घबराए और सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत के माध्यम से महाराणा के सामने हाजिर होकर 3 लाख रुपए दस्तूर और फ़ौज खर्च के रूप में महाराणा को भेंट किए, जिसके बाद महाराणा ने घेरा उठा लिया।
महाराणा भीमसिंह की बांसवाड़ा पर चढ़ाई :- जिस समय महाराणा भीमसिंह डूंगरपुर में थे, उसी समय देवगढ़ के रावत गोकुलदास चुंडावत, आमेट के रावत प्रतापसिंह चुंडावत, आंबाजी इंगलिया के छोटे भाई 8 हज़ार की फ़ौज और 25 तोपों के साथ महाराणा के साथ आ मिले।
मेवाड़ी फौज बांसवाड़ा पर हमला करने के लिए माही नदी के तट पर पहुंची, क्योंकि वहां के रावल विजयसिंह ने भी महाराणा से बग़ावत कर रखी थी। महाराणा की फ़ौज देखकर बांसवाड़ा के रावल विजयसिंह ने गढ़ी के ठाकुर जोधसिंह चौहान को भेजकर महाराणा को 3 लाख रुपए नज़र किए।
देवलिया में कार्यवाही :- देवलिया (प्रतापगढ़) के रावत सामंतसिंह ने रावत रघुनाथसिंह से धरियावद का परगना छीन लिया था। इसके अलावा रावत सामंतसिंह ने महाराणा को पेश किए जाने वाले दस्तूर भी नहीं किए। लेकिन जब महाराणा ने डूंगरपुर और बांसवाड़ा पर कार्रवाइयां कीं, तो रावत सामंतसिंह घबराए।
रावत सामंतसिंह ने पहले ही अपने मंत्री आदि को भेजकर धरियावद का परगना महाराणा को देना मंज़ूर किया और साथ ही जुर्माने के तौर पर 3 लाख रुपए नज़र करवाए। महाराणा भीमसिंह ने धरियावद का परगना रावत रघुनाथसिंह को दे दिया।
आर्थिक तंगी :- इन दिनों मेवाड़ आर्थिक रूप से जर्जर होता जा रहा था। महाराणा भीमसिंह ने मुल्की बंदोबस्त के बदले आंबाजी इंगलिया को 60 लाख रुपए देने का भी वादा कर रखा था, परन्तु इतनी बड़ी धनराशि का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा था।
1794 ई. में महाराणा भीमसिंह की बड़ी बहन चंद्र कँवर बाई का विवाह जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह कछवाहा से तय हुआ। इस विवाह हेतु महाराणा को 5 लाख रुपए मराठों से कर्ज लेना पड़ा, लेकिन विवाह में देरी होने के कारण ये धनराशि पहले ही खर्च हो गई।
1795 ई. में महाराणा भीमसिंह की माता का देहांत हो गया। इन दिनों एक और मुसीबत ये आई कि बारिश ज्यादा होने से पिछोला झील का बांध टूट गया और एक तिहाई शहर जलमग्न हो गया। जनता और रोजगार को बचाने हेतु फौरन इस बाँध की मरम्मत करवानी पड़ी, जिसमें बहुत सारा धन खर्च हुआ।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)