1777 ई. – किशनगढ़ में महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय का विवाह :- मराठों के बढ़ते प्रभाव के कारण राजमाता ने किशनगढ़ के राजा बहादुरसिंह राठौड़ को अपना सहायक बनाना चाहा, तो राजा बहादुरसिंह ने कहलवाया कि “मैं अपनी जान और माल के साथ मेवाड़ के लिए तैयार हूं, आप मेरी पोती का विवाह महाराणा से करवा दीजिये।”
राजमाता ने प्रस्ताव मंज़ूर किया। महाराणा हम्मीरसिंह ने उदयपुर में राज्यप्रबन्ध हेतु देलवाड़ा के राज सज्जा झाला, कोठारिया के रावत विजयसिंह चौहान व महाराज बाबा बाघसिंह को नियुक्त किया।
फिर महाराणा हम्मीरसिंह ने निम्नलिखित सरदारों व साथियों को बारात में साथ लेकर किशनगढ़ की तरफ प्रस्थान किया :- महाराणा के छोटे भाई भीमसिंह, बाबा महाराज अर्जुनसिंह, बिजोलिया के राव शुभकरण पंवार, भैंसरोड के रावत मानसिंह,
कुराबड़ के रावत अर्जुनसिंह चुंडावत व उनके पुत्र जगतसिंह चुंडावत, आर्ज्या के बाबा पद्मसिंह पुरावत, थांवला के कुशलसिंह चौहान, सनवाड़ के बाबा जैतसिंह राणावत, बनेड्या के चतुरसिंह चौहान, महाराज अनोपसिंह,
जहाजपुर के बाबा भोपतसिंह खुमाणसिंहोत राणावत, रावत सरदारसिंह कृष्णावत चुंडावत, पुरोहित नन्दराम, साह किशोरदास देपुरा, मांडलगढ़ के किलेदार अगरचन्द के पुत्र महता देवीचंद मांडलगढ़ की फ़ौज समेत, धायभाई कीका, चारण पन्ना आढा, जमादार सादिक, जमादार चंदर आदि।
ये सब अपनी-अपनी फ़ौजी टुकड़ियों सहित गए थे। फ़ौज सहित किशनगढ़ जाने के पीछे राजमाता की सोच ये थी कि रतनसिंह (नकली महाराणा) के साथी राजपूत कहीं मेरे पुत्र (महाराणा हम्मीरसिंह) पर हमला न कर दे।
महाराणा हम्मीरसिंह ने मार्ग में शाहपुरा के राजा भीमसिंह को भी अपने साथ बारात में शामिल कर लिया। जब महाराणा किशनगढ़ पहुंचे, तो राजा बहादुरसिंह राठौड़ पेशवाई हेतु साढ़े चार कोस तक आए और स्वागत सत्कार के बाद महाराणा को महलों में ले गए।
5 फरवरी, 1777 ई. को राजा बहादुर सिंह की पोती अमर कँवर (कुँवर विरद सिंह की पुत्री) का विवाह किशनगढ़ दुर्ग में महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय के साथ संपन्न हुआ। राजा बहादुर सिंह ने ढेर सारा दहेज दिया।
विदाई के वक्त राजा बहादुरसिंह ने अपने पुत्र कुँवर विरद सिंह को 2 हज़ार घुड़सवारों के साथ महाराणा को पहुंचाने भेजा। नाहरमगरा तक पहुंचने के बाद महाराणा ने कुँवर विरद सिंह को किशनगढ़ के लिए विदा कर दिया।
महाराणा नाहरमगरा में ठहरे हुए थे कि तभी चित्तौड़गढ़ के किलेदार सलूम्बर के रावत भीमसिंह चुंडावत निम्नलिखित सरदारों व साथियों सहित महाराणा के सामने हाजिर हुए :-
कानोड़ के रावत जगतसिंह सारंगदेवोत, सादड़ी के राज सुल्तानसिंह झाला, बेदला के राव प्रतापसिंह चौहान, आमेट के रावत प्रतापसिंह जगावत चुंडावत, बेगूं के रावत मेघसिंह चुंडावत, बागोर के महाराज बाबा भीमसिंह,
बनेड़ा के राजा हम्मीरसिंह, महुवा के बाबा सूरतसिंह राणावत, हम्मीरगढ़ के रावत धीरतसिंह राणावत, साह नन्दलाल देपुरा, साह मौजीराम बौल्या, साह एकलिंगदास बौल्या, साह विजयसिंह नाणावटी आदि।
महाराणा व रतनसिंह के बीच लड़ाई :- किशनगढ़ में विवाह करके लौटते समय नाहरमगरे व श्रीनाथ जी की तरफ होते हुए महाराणा ने कुम्भलगढ़ की ओर रतनसिंह (जो कि स्वयं को महाराणा घोषित करके दुर्ग पर कब्ज़ा जमाए हुए था) को सबक सिखाने के लिये प्रयाण किया।
मार्ग में रिंछेड के पास देवगढ़ के रावत राघवसिंह चुंडावत की फौज दिखाई पड़ी, जो कि रतनसिंह की मदद खातिर जा रहे थे। महाराणा ने राघवसिंह की फौज पर आक्रमण किया, जिसमें राघवसिंह ने शिकस्त खाई और फौज समेत कुम्भलगढ़ में शरण ली।
फिर महाराणा कुम्भलगढ़ जैसे सुदृढ़ दुर्ग पर विजय प्राप्त करना मुश्किल समझकर चारभुजा होते हुए उदयपुर आ गए। कुम्भलगढ़ पर रतनसिंह का कब्ज़ा था।
6 जनवरी, 1778 ई. – महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय का देहांत :- 1677 ई. में दिसम्बर के महीने में महाराणा हम्मीरसिंह शिकार के लिए निकले। उन्होंने एक हिरण पर बंदूक से निशाना साधा लेकिन बंदूक फट गई, जिससे उनके हाथ का मांझा बिखर गया।
हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली के बीच वाली चमड़े की सीवन को मांझा कहते हैं। महाराणा के हाथ का घाव हर दिन बढ़ता रहा। महाराणा ने एक दिन कहा कि “जिन हरामखोरों ने मेवाड़ की बर्बादी करने के प्रयास किए, मैं उनसे बदला लूंगा”।
किसी विश्वासघाती को ये बात सहन न हुई व उसने छल से महाराणा के घाव पर विष की पट्टी बंधवा दी, जिससे विष धीरे-धीरे सारे शरीर में फैलता गया और 6 जनवरी, 1678 ई. को 16 वर्ष की अल्पायु में महाराणा का देहांत हुआ। महाराणा हम्मीरसिंह के साथ 3 पासवान सती हुईं।
महाराणा हम्मीरसिंह के विचार नेक थे, परन्तु अल्पायु के कारण ज्यादा राजकाज की समझ नहीं थी और योग्य सलाहकारों की कमी के चलते इन महाराणा के शासनकाल में मेवाड़ को मराठों ने हानि पहुंचाई।
महाराणा हम्मीरसिंह की कोई संतान नहीं हुई, इसलिए इनके छोटे भाई महाराणा भीमसिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। अगले भाग से महाराणा भीमसिंह का इतिहास लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)