गोडवाड़ के परगने का हमेशा के लिए मेवाड़ के हाथों से निकलना :- मेवाड़ के बागी सामन्तों ने महाराणा अरिसिंह को पदच्युत करने के लिए एक राजपूत लड़के को महाराणा रतनसिंह नाम देकर अपने प्रयास जारी रखे।
महाराणा अरिसिंह ने रतनसिंह से गोडवाड़ का इलाका छीन लिया और मारवाड़ के महाराजा विजयसिंह राठौड़ से 3 हज़ार की फ़ौजी मदद मांगी और बदले में गोडवाड़ के परगने की आमदनी महाराजा विजयसिंह को देना तय किया।
महाराजा विजयसिंह ने फ़ौजी मदद दे दी, लेकिन करार के मुताबिक रतनसिंह को कुम्भलगढ़ से बाहर नहीं निकाला। जब महाराणा ने गोडवाड़ का परगना मांगा, तो महाराजा विजयसिंह बात टालने लगे।
फिर 1 मार्च, 1772 ई. को नाथद्वारा में महाराणा अरिसिंह, महाराजा विजयसिंह, बीकानेर के महाराजा गजसिंह राठौड़ और किशनगढ़ के महाराजा बहादुरसिंह राठौड़ की भेंट हुई।
आपस में पेशवाई की रस्में अदा हुईं। फिर महाराजा गजसिंह ने महाराजा विजयसिंह को बहुत समझाया कि गोडवाड़ का परगना आपको खाली कर देना चाहिए, पर महाराजा विजयसिंह नहीं माने।
महाराजा विजयसिंह नाथद्वारा के गुसाईं जी का कहना बहुत मानते थे, इसलिए महाराजा गजसिंह सभी को नाथद्वारा मंदिर में ले गए और वहां गुसाईं जी से महाराजा विजयसिंह को कहलवाया कि गोडवाड़ का परगना आपको खाली कर देना चाहिए।
महाराजा विजयसिंह गुसाईं जी की बात मना नहीं कर पाए और गोडवाड़ का परगना महाराणा को सौंपने को तैयार हो गए, लेकिन इस समय वहीं मौजूद आऊवा और खींवसर के ठाकुरों ने कहा कि “महाराजा विजयसिंह हमारे सिरों के मालिक हैं, पर मुल्क के मुख़्तार नहीं हैं, हम गोडवाड़ का परगना हरगिज़ न छोड़ेंगे।”
महाराणा अरिसिंह ने गुस्से में आकर कहा कि “गोडवाड़ का परगना किसी हाल में तुम्हारे पास नहीं रह सकता, यहां तक की मारवाड़ के परगने पाली और सोजत भी ब्याज में लिए जावेंगे।”
बात बिगड़ती देखकर बीकानेर के महाराजा गजसिंह ने दोनों ठाकुरों को धमकाया और मीठी बातों से महाराणा अरिसिंह का क्रोध शांत किया, लेकिन इस मुलाकात का कोई परिणाम नहीं निकला। महाराणा अरिसिंह उदयपुर की तरफ लौट आए और दूसरे महाराजा भी अपनी-अपनी रियासतों में लौट गए।
जो 3 हज़ार की फ़ौज मारवाड़ के महाराजा विजयसिंह ने नाथद्वारा में भिजवाई थी, उस फ़ौज का नेतृत्व एक सिंधी महाजन ने किया था। यह फ़ौज नाथद्वारा में लालबाग के करीब ठहरी थी। इस सिंधी महाजन के वंशज अब तक नाथद्वारा में मौजूद हैं।
विरोधी सामंतों की जागीरों पर कब्ज़ा :- महाराणा अरिसिंह ने अपनी दमनकारी नीतियों पर चलते हुए भींडर, ऊपरहेड़ा, कोदूकोटा की जागीरें वहां के सामंतों से छीन ली।
जनवरी, 1773 ई. – बाबा गुमानसिंह पुरावत का बलिदान :- महाराणा अरिसिंह ने अपने क्रूर रवैये और विरोधी सामंतों के दमन की नीति के चलते आठूंण के सर्दार बाबा गुमानसिंह पुरावत के विरुद्ध चढ़ाई कर किले को घेर लिया।
गुमानसिंह वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के पुत्र पूरणमल जी के वंशज थे। महाराणा अरिसिंह गुमानसिंह को जीवित पकड़ कर अपमानित करना चाहते थे। ये बात गुमानसिंह को पता चली, तो उस वीर योद्धा ने ऐसा कारनामा किया, जो पहले कभी किसी राजपूत ने न किया होगा।
गुमानसिंह ने अपने साथियों समेत लड़ाई के लिए तैयार होकर दुर्ग के द्वार खोल दिए। गुमानसिंह स्वयं को आग के सुपुर्द कर तलवार लेकर महाराणा की सेना पर टूट पड़े। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई आग का गोला महाराणा की सेना का विनाश कर रहा हो।
ये देखकर महाराणा ने उन पर गोली चलाने का आदेश दिया और गुमानसिंह वीरगति को प्राप्त हुए। महाराणा अरिसिंह ने कहा कि “अगर ये बहादुर इस क़दर न मरता, तो मैं जरूर इसको अपमानित करता।” 1 फरवरी, 1773 ई. को महाराणा अरिसिंह ने गुमानसिंह की आठूंण की जागीर ठाकुर अमरचंद को दे दी।
महाराणा अरिसिंह का परिवार :- महाराणा अरिसिंह की 8 रानियां :- 1) महारानी सरदार कँवर झाली। 2) महारानी अमृत कँवर देवड़ी, जो कि नाथसिंह देवड़ा की पुत्री थीं। 3) महारानी सरदार कँवर राठौड़, जो कि रतलाम के राजा पृथ्वीसिंह राठौड़ की पुत्री थीं।
4) महारानी गेंद कँवर राठौड़, जो कि ईडर के भोपतसिंह राठौड़ की पुत्री थीं। 5) महारानी सरस कँवर राठौड़, जो कि छप्पन के चन्द्रसेन राठौड़ की पुत्री थीं। 6) महारानी कुँवरा बाई सोलंकिनी, जो कि वीरपुरा के अभयसिंह सोलंकी की पुत्री थीं।
7) महारानी गुमान कँवर भटियाणी, जो कि मोही के जागीरदार पृथ्वीसिंह भाटी की पुत्री थीं। 8) महारानी राधा कँवर चौहान, जो कि उदयभान चौहान की पुत्री थीं।
महाराणा अरिसिंह के 2 पुत्र क्रमश: कुँवर हम्मीर सिंह व कुँवर भीमसिंह हुए, जो कि एक के बाद एक गद्दी पर बैठे। महाराणा अरिसिंह की 2 पुत्रियां हुईं, जिनमें से बड़ी पुत्री चंद्र कंवर बाई का जन्म 22 अगस्त, 1763 ई. को हुआ। छोटी पुत्री अनूप कंवर बाई का जन्म 21 फरवरी, 1765 ई. को हुआ।
महाराणा अरिसिंह की 12 खवासों के नाम कुछ इस तरह हैं :- गुलाबराय, रूपराय, कुशालराय, देवड़ी, मनभावन, गणेशराय, सज्जनराय, सुखवालेसी, कमलराय, चैनराय, बृजराय, पेमराय।
महाराणा अरिसिंह की खवासों से 7 पुत्र हुए, जिनके नाम गोपालदास, देवीदास, भगवानदास, मनोहरदास, चैनदास, मोहनदास, जवानदास थे। महाराणा अरिसिंह की खवासों से 5 पुत्रियां हुईं, जिनके नाम पेमवतां, फूलवतां, चन्द्रमतां, इंद्रमतां व सूरजमतां थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)