पठान हाकीम खां सूर के प्रारम्भिक आक्रमण की सफलता के बाद महाराणा प्रताप की फौजी टुकड़ी ने मुगल फौज पर आक्रमण की तैयारी की। महाराणा प्रताप ने चेतक पर सवार होकर अपनी फौज में घूम-घूमकर अपने ओजस्वी स्वरों में कहा कि
“चित्तौड़ के शाका में केसरिया करने वाले वीरों और जौहर करने वाली वीरांगनाओं की सौगन्ध हे तुम्हें, ऐसा आक्रमण करो कि तुर्कों की आने वाली नस्लें मेवाड़ की इस रणभूमि को याद कर कांपती नज़र आए, हर-हर महादेव”
काजी खां पर आक्रमण :- महाराणा प्रताप का मुकाबला काजी खां की फौजी टुकड़ी से हुआ। काजी खां पहले तो बहादुरी दिखाकर खड़ा रहा, पर एक अंगूठा कटते ही भाग निकला।
शैखजादों पर आक्रमण :- महाराणा प्रताप ने सीकरी के शैखजादों की फौजी टुकड़ी पर आक्रमण किया। शैखजादों समेत उनका मुखिया शैख मंसूर भी भागने लगा,
तभी महाराणा प्रताप ने तलवार म्यान में रखकर धनुष हाथ में लिया और तीर चलाया। ये तीर शैख मंसूर के कूल्हे पर लगा।
काजी खां और शैखजादे 5-6 कोस तक भागते रहे। महाराणा प्रताप की सैनिक टुकड़ी ने उनका लगातार पीछा किया। जब वे दोनों एक नाले के पास आकर रुके, तो उनका सामना एक और मेवाड़ी सैनिक टुकड़ी से हो गया।
गाज़ी खां पर आक्रमण :- महाराणा प्रताप की सैनिक टुकड़ी का मुकाबला गाज़ी खां बदख्शी की सैनिक टुकड़ी से हुआ। महाराणा प्रताप के हमले से गाज़ी खां बदख्शी को भागना पड़ा।
आसफ़ खां पर आक्रमण :- महाराणा प्रताप व राजा रामशाह तोमर की टुकड़ियों ने मिलकर मीर बख्शी आसफ खां की फौजी टुकड़ी पर हमला किया। आसफ खां व मुगल लेखक अब्दुल कादिर बंदायूनी भागकर मुगल फौज के दायीं तरफ खड़े सैयदों के पीछे छिप गए।
राजा मानसिंह की सैनिक टुकड़ी पर आक्रमण :- महाराणा प्रताप और रामशाह तोमर का सामना राजा मानसिंह के नेतृत्व वाली कछवाहों की सैनिक टुकड़ी से हुआ।
इस समय राजा मानसिंह ने पहले तो हाथी के महावत की जगह बैठकर बड़ी बहादुरी दिखाई, लेकिन तोमर वंश के सामने राजा मानसिंह को पीछे हटना पड़ा।
राजा मानसिंह पर लिखे गए ग्रंथ मानप्रकाश में लिखा है कि “राणा के योद्धा एकाएक मानसिंह पर आक्रमण करने लगे। राणा के योद्धाओं ने बाण, तलवार, शक्ति, कष्टी, परशु आदि अस्त्रों की वर्षा कर दी, जिस प्रकार मेघ समूह
जल की वर्षा करते हैं। जिस प्रकार सिंह महान हाथी को मारने की इच्छा रखता है, उसी प्रकार प्रताप पक्षीय योद्धाओं के प्रताप को देखकर राजा मान ने स्वयं युद्ध के लिए ललकारा।”
महाराणा प्रताप के समकालीन चारण कवि दुरसा आढा लिखते हैं :- पातल घड पतसाह री, ऐम विधू सी आण। जाण चढी कर बंदरां, पोथी वेद पुराण।
अर्थात् महाराणा प्रताप ने आते ही मुगल फौज का इस तरह विध्वंस कर दिया, मानो कोई वेद पुराण की पोथी बन्दरों के हाथ लग गई हो।
मेरे द्वारा ऊपर लिखा वर्णन पक्षपात भरा ना लगे, इसलिए नीचे युद्ध में मौजूद मुगल लेखक अब्दुल कादिर बदायूनी द्वारा लिखा गया वर्णन दिया जाता है। अब्दुल कादिर बदायूनी मुन्तख़ब उत तवारीख में आंखों देखा हाल लिखता है कि
“बारहा के सैयदों ने रुस्तम जैसी बहादुरी दिखाई। दोनों तरफ से कई बहादुर मारे गए। राणा कीका की फौज की दूसरी टुकड़ी, जिसकी कमान खुद राणा कीका ने सम्भाल रखी थी, घाटी से निकलकर घाटी के मुहाने पर खड़े काजी खां की फौजी टुकड़ी पर हमला कर दिया।
राणा काजी खां की फौज में तबाही मचाता हुआ फौजी टुकड़ी के बीच तक पहुंच गया। राणा के हमले से सीकरी के शैखज़ादे भाग निकले। शैख मंसूर के पिछवाड़े ऐसा सख्त तीर लगा कि ये घाव बड़े दिनों तक रहा।
काजी खां एक मुल्ला होने के बावजूद बड़ी बहादुरी से टिका रहा, पर उसके दाहिने हाथ का अंगूठा कट जाने के बाद वह ये कहता हुआ भाग निकला कि जब दुश्मन का हमला सहने लायक न हो तब वहां से भाग जाना पैगम्बर की दी हुई तालीम है।
उधर हाकिम खां के हमले से जो फौज पहले भागी थी, वह बनास नदी पार कर भागती ही रही। राणा और रामशाह तोमर के हमले से मानसिंह के साथी राजपूतों ने भागना शुरु किया,
तो आसफ खां की कमान वाली फौजी टुकड़ी भी भाग निकली और ये सब भागकर सैयदों के पीछे छिप गए। अगर इस वक्त बहादुर सैयद न होते तो हमारी फौज की बड़ी बदनामी वाली हार होती।
इस वक्त मेहतर खां, जो कि चन्दावल में था, निकलकर बाहर आया और ढोल पीटकर फौज को जमाने की कोशिश की“
इस तरह अब्दुल कादिर ने युद्ध का प्रत्यक्ष वर्णन किया। डॉक्टर ओझा ने अब्दुल कादिर के लेखन की बड़ी प्रशंसा की है। हल्दीघाटी युद्ध से सम्बंधित कुछ पुराने दोहे मिले हैं, जो अज्ञात कवियों द्वारा लिखे गए। इनमें से एक कवि द्वारा लिखे गए दोहों का सारांश है कि
“खमनौर के युद्ध में राणा प्रताप ने विकट से विकट योद्धाओं को मारकर गिरा दिया। इस युद्ध के समय धरा कांपने लग गई थी व गोलों की आवाज भयंकर रूप से हो रही थी।
शत्रुओं का संहार करते हुए राणा प्रताप दूसरे हम्मीर की तरह प्रतीत हो रहे थे। युद्ध का दृश्य अत्यंत भयंकर था। इसमें राणा प्रताप ने अत्यंत भयंकर रूप से शत्रुओं को मार गिराया।”
एक अन्य अज्ञात कवि द्वारा लिखे गए दोहों का सारांश है कि “महाराणा प्रताप ने समर भूमि में शत्रुओं को भयंकर रूप से मार गिराया। महाराणा द्वारा वध किए गए शत्रुओं के रूधिर से समर भूमि रक्त सरोवर के रूप में परिणत हो गई है।
बढ़ते हुए राजा मानसिंह की सेना पर महाराणा प्रताप की तलवार बज रही है। महाराणा ने रणभूमि में सर्वत्र मांस व रूधिर बिखेर दिया है, जिससे क्षेत्रपाल, चामुंडा व मांसाहारी पशु-पक्षी तृप्त हो रहे हैं।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
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प्लीज प्रताप और मनसिंग के हरावल, मध्य, और चन्दावल टुकड़ियों के बारे में विस्तार से बताइये
आजकल प्रतियोगी परीक्षाओं में ज्यादा प्रश्न यही से आ रहे है