मेवाड़ महाराणा अरिसिंह द्वितीय (भाग – 3)

1765 ई. – सामंतों का क्रोध :- चीरवे के घाटे में सामंतों का अपमान करना, सिंध व गुजरात के मुस्लिमों को फौज में भर्ती करना व दोनों सामंतों (बागोर के महाराज नाथसिंह व सलूम्बर के रावत जोधसिंह चुंडावत) की हत्या जैसे पाप महाराणा अरिसिंह के हाथों हुए, तो सामंतों ने उनको राजगद्दी से हटाने का निर्णय लिया।

गोगुन्दा के झाला जसवंतसिंह ने कुँवर रतनसिंह, जो कि स्वर्गीय महाराणा राजसिंह द्वितीय के पुत्र थे, उन्हें कुम्भलगढ़ में महाराणा रतनसिंह के नाम से प्रसिद्ध कर दिया। मेवाड़ के कई सामंतों ने महाराणा रतनसिंह को ही अपना मालिक मान लिया।

वसन्तपाल देपुरा को रतनसिंह का प्रधानमंत्री बनाया गया। ये सम्भवतः आशा देपुरा के वंशज थे। भींडर, देवगढ़, सादड़ी, गोगुन्दा, बेदला, कोठारिया आदि ठिकानों के सामंतों ने रतनसिंह का मददगार बनना तय किया।

सलूम्बर, बिजोलिया, कानोड़, आमेट, बदनोर, घाणेराव जैसे 6 प्रथम श्रेणी ठिकानों के सामंत महाराणा अरिसिंह के साथ रहे। कोटा के झाला जालिमसिंह भी महाराणा अरिसिंह का साथ देने मेवाड़ पहुंचे, तो महाराणा को कुछ हिम्मत बंधी।

क्योंकि राजपूताने के इस दौर में कूटनीति व राजनीति के मामले में झाला जालिमसिंह से ज्यादा माहिर शख्स कोई दूसरा न था। महाराणा ने उनको चीताखेड़े की जागीर व राजराणा का खिताब दिया। महाराणा अरिसिंह ने देलवाड़ा के झाला राघवदेव को बहुत कुछ लिखकर अपनी तरफ मिला लिया।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह को अपनी तरफ मिलाने के लिए महाराणा अरिसिंह ने प्रयत्न किए। राजा उम्मेदसिंह ने कहा कि महाराणा जगतसिंह जी ने हमको जो काछोला का परगना देने का वादा किया था, वह अब तक नहीं मिला है।

इस पर महाराणा अरिसिंह ने उनको काछोला का परगना दे दिया और इस बात का फ़रमान देकर अपने धायभाई को शाहपुरा भेजा। फिर राजा उम्मेदसिंह उदयपुर आ गए। बनेड़े के राजा रायसिंह भी महाराणा अरिसिंह के मददगार रहे।

इस तरह महाराणा अरिसिंह की ताकत बहुत बढ़ गई। उधर महाराणा रतनसिंह, जो कि अभी बालक थे, उनके संरक्षक सामंतों ने उदयपुर के पास तक अपने थाने बिठा दिए और यहां तक अधिकार कर लिया, लेकिन महाराणा अरिसिंह ने फिर से ये थाने उठा दिये।

दोनों पक्षों द्वारा मराठों की मदद लेना :- महाराणा अरिसिंह को मेवाड़ की गद्दी से पदच्युत करने में सबसे आगे देवगढ़ के रावत जसवंतसिंह चुण्डावत थे। उन्होंने ठान लिया था कि साम, दाम, दंड, भेद किसी भी तरह से महाराणा को गद्दी से हटाना ही है।

रावत जसवंतसिंह ने अपने पुत्र राघवदेव को माधवराव सिंधिया के पास भेजा और फौजी मदद मांगी, जिसके बदले में उसने सवा करोड़ रुपए मांगे। इसी तरह महाराणा अरिसिंह ने झाला जालिमसिंह और महता अगरचन्द को पेशवा के अफ़सर रघु पायगिया और दौलामिया के पास भेजा और फौजी मदद मांगी।

रघु पायगिया के पास 5 हज़ार व दौलामिया के पास 3 हज़ार सैनिक थे। पेशवा के इन दोनों अफ़सरों ने माधवराव सिंधिया को समझाया कि रतनसिंह का साथ न दे, लेकिन सिंधिया ने मोटी रकम के लालच में आकर बात न मानी।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

फिर पेशवा के अफसरों ने झाला जालिमसिंह और महता अगरचन्द के साथ मिलकर तय किया कि 8 हज़ार सैनिकों की फ़ौजी मदद के बदले 20 लाख रुपए महाराणा से लिए जाएंगे। इस प्रकार दोनों पक्षों ने मराठों की मदद लेकर इस विनाश को और बढ़ावा दे दिया।

महाराणा अरिसिंह द्वारा माधवराव सिंधिया को समझाने का प्रयास :- महाराणा अरिसिंह ने सलूम्बर के रावत पहाड़सिंह चुंडावत, शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह और देलवाड़ा के झाला राघवदेव को माधवराव सिंधिया के पास भेजा, लेकिन सिंधिया ने इनकी कोई बात नहीं मानी। फिर महाराणा अरिसिंह को संदेह हुआ कि देलवाड़ा के झाला राघवदेव के कारण माधवराव सिंधिया ने बात नहीं मानी।

देलवाड़ा के झाला राघवदेव की हत्या :- महाराणा अरिसिंह पहले ही झाला राघवदेव से बिगड़े हुए ही थे। एक दिन झाला राघवदेव ने महाराणा के पास आकर कहा कि “आप मालिक हैं, मैं आपसे कोई बात छिपाकर नहीं रखना चाहता। अब मेरा मन खैरख्वाही में नहीं लगता, मुझको नौकरी से हमेशा के लिए छुट्टी दी जावे और मुझको काशी व गया तीर्थ पर जाने की आज्ञा देवें”।

इस पर महाराणा अरिसिंह ने बिगड़कर कहा कि “भले ही द्वारका जाओ, मुझको क्या”। इन्हीं दिनों सिंधी मुस्लिम, जो मेवाड़ी फौज में थे, वेतन न मिलने से बहुत नाराज हो गए थे।

महाराणा अरिसिंह द्वितीय

तब महाराणा अरिसिंह ने सलूम्बर के रावत पहाड़सिंह चुंडावत के ज़रिए उनको कहलवा दिया कि यदि तुम देलवाड़ा के झाला राघवदेव को मार दो, तो तुम्हें वेतन मिल जाएगा। दूसरी तरफ महाराणा ने झाला राघवदेव से कहा कि सिंधी सिपाही बहुत बिगड़ रहे हैं, उनको जाकर समझा दो।

षड्यंत्र से अनजान राघवदेव जब वहां पहुंचे, तो एक सिंधी मुस्लिम ने पीछे से आकर तलवार का जोरदार वार करके राघवदेव के दो टुकड़े कर दिए। इस तरह महाराणा अरिसिंह की गलत नीतियों के कारण न सिर्फ मेवाड़ की आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंच रहा था, बल्कि सामन्तों की हत्याओं का सिलसिला भी थमने का नाम नहीं ले रहा था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Manish
    October 3, 2021 / 10:59 am

    रोज की रोज post डाला करो सर बार बार आकर देखना पड़ता है की new post आयी क्या कोई पढ़े ना पढ़े मेरे लिए तो डाल ही दिया करो इतना इंतजार मत करवाया करो 🙏🙏🙏🙏

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