मेवाड़ महाराणा राजसिंह द्वितीय का सम्पूर्ण इतिहास

महाराणा राजसिंह द्वितीय का जन्म परिचय :- इन महाराणा का जन्म 25 अप्रैल, 1743 ई. को हुआ। इनके पिता महाराणा प्रतापसिंह द्वितीय थे व माता काठियावाड के रणछोड़पुरी (लख़्तर) के राजा कर्णसिंह झाला की पुत्री बख्तकंवर बाई थीं।

राजतिलक व राज्याभिषेक :- 10 जनवरी, 1754 ई. को महाराणा राजसिंह द्वितीय का राजतिलक मात्र 10 वर्ष की उम्र में हुआ। 3 जून, 1756 ई. को राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया व महाराणा ने स्वर्ण का तुलादान किया।

महाराणा की आयु कम थी, लेकिन इनका विवाह हो चुका था। मेवाड़ में यह रिवाज था कि महाराणा के राज्याभिषेक के समय पटरानी (वह जिनसे पहला विवाह हुआ हो) भी महाराणा के साथ बिराजती थीं। महाराणा राजसिंह द्वितीय अंतिम महाराणा थे, जिनके साथ महारानी सा भी बिराजे। इनके बाद यह रिवाज बन्द हो गया।

शासन प्रबंध :- महाराणा राजसिंह द्वितीय बालक थे, इस वजह से राज परम्परा के अनुसार सलूम्बर रावत जैतसिंह चुण्डावत महाराणा के संरक्षक बने और राजकाज का कार्य अपने हाथों में लिया।

महाराणा राजसिंह द्वितीय के शासनकाल में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सदाराम, पुरोहित नन्दराम, खजांची जीवनदास, पाकशाला के अध्यक्ष हिन्दू सिंह, धर्माध्यक्ष लालू व दानाध्यक्ष परमानन्द थे। परमानन्द के पिता शम्भूदत्त व दादाजी देवराम थे।

महाराणा राजसिंह द्वितीय

1759 ई. – मराठों से लड़ाई व संधि :- पिछले कुछ वर्षों से मराठों का ज़ोर बढ़ता जा रहा था। महाराणा राजसिंह द्वितीय ने सुना कि मराठे मल्हारगढ़ की तरफ़ बढ़ने लगे हैं। जिन दिनों मेवाड़ के सामंत आपस में लड़ने में मशगूल हुए, उन्हीं दिनों में मेवाड़ के सारंगदेवोत राजपूतों ने युद्धों वगैरह में नेतृत्व करते हुए काफी नामवारी हासिल कर मेवाड़ का रुतबा कायम रखा।

इस ख़ातिर मराठों से लड़ने के लिए महाराणा ने पंचोली काशीनाथ व कानोड़ के रावत जगतसिंह सारंगदेवोत को फौज समेत भेजा। मेवाड़ी फौज मल्हारगढ़ पहुंची, जहां मराठों से सख्त लड़ाई के बाद मराठों को भागना पड़ा और मेवाड़ी फौज ने मल्हारगढ़ पर अधिकार कर लिया।

लेकिन इसके बाद भी मेवाड़ पर मराठों के हमले बदस्तूर जारी रहे, जिससे तंग आकर महाराणा राजसिंह द्वितीय ने चंबल नदी के निकट के परगने कणजेड़ा, जारड़ा, हिंगलाजगढ़, जामुणिया, बूडसू वगैरह ठेके पर देकर इनसे होने वाली आमदनी मराठों को देना तय कर उनसे पीछा छुड़ाया।

सलूम्बर रावत जैतसिंह चुण्डावत का बलिदान :- जोधपुर महाराजा विजयसिंह राठौड़ के समय मराठों ने जोधपुर पर कब्ज़ा कर लिया व महाराजा को नागौर जाना पड़ा। मराठों ने नागौर तक भी उनका पीछा किया, तो महाराजा ने मेवाड़ नरेश को संदेश भेजकर सलूम्बर रावत जैतसिंह चुण्डावत को मराठों से समझौता करने की ख़ातिर बुलवाया।

महाराणा ने रावत जैतसिंह को भेज दिया, लेकिन महाराजा विजयसिंह ने छल से काम लेते हुए 2 राजपूतों के ज़रिए मराठा नेतृत्वकर्ता जयआपा सिंधिया को मरवा डाला। इससे मराठे क्रोधित हुए और ये अफवाह फैल गई कि मेवाड़ वालों ने दगा किया। मराठों ने बैर निकालते हुए मेवाड़ के राजपूतों पर हमला कर दिया, जिसमें जैतसिंह जी को भी निरर्थक प्राण गंवाने पड़े।

महाराणा राजसिंह द्वितीय

बनेड़ा के रायसिंह को उनका हक़ दिलाना :- महाराणा राजसिंह द्वितीय को बालक समझकर शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह ने फिर बगावत करते हुए राजा सरदारसिंह से बनेड़ा का परगना छीन लिया। राजा सरदारसिंह महाराणा के पास पहुंचे, जहां कुछ दिनों बाद उदयपुर में ही उनका देहांत हो गया।

महाराणा राजसिंह द्वितीय ने बनेड़ा पर सेना भेजकर सरदारसिंह के बेटे रायसिंह को वहां का मालिक बना दिया। महाराणा ने उनकी रक्षा के लिए वहां रुपाहेली के राठौड़ शिवसिंह की ज़मानत पर तोपखाना व कुछ सेना रखी।

जागीर देना :- महाराणा राजसिंह द्वितीय ने देवगढ़ के रावत जसवंतसिंह चुण्डावत के पुत्र गोपालदास को करेड़ा की जागीर दी। महाराणा ने कोठारिया के रावत रुक्मांगद चौहान के पुत्र हरिनाथ के पुत्र ठाकुर नाथसिंह को फलीचड़ा की जागीर दी। महाराणा ने आमेट के रावत पृथ्वीसिंह चुण्डावत के पुत्र नाथसिंह को जीलोले की जागीर दी।

महाराणा राजसिंह द्वितीय के शासनकाल में मराठों के आक्रमण से आर्थिक व्यवस्था को आघात पहुंचा, इसलिए ज्यादा निर्माण कार्य नहीं करवाए गए। इन महाराणा के शासनकाल में सनावड़ जाति के भवाड़ी देवकरण के पौत्र और मायाराम के पुत्र शिवदास ने भगवान शिव व भगवान विष्णु के निमित्त मंदिरों का निर्माण करवाया।

महाराणा राजसिंह द्वितीय का देहांत :- 3 अप्रैल, 1761 ई. को 7 वर्ष राज करने के बाद महाराणा राजसिंह द्वितीय का देहांत हो गया। 18 वर्ष की आयु में ही इन महाराणा का देहांत होने के कारण यह शक किया गया कि इनको अरिसिंह ने मरवाया, जो कि महाराणा जगतसिंह द्वितीय के दूसरे पुत्र थे।

महाराणा राजसिंह द्वितीय

महाराणा राजसिंह द्वितीय का परिवार :- महाराणा राजसिंह द्वितीय की 4 रानियां थीं :- 1) बेदला के राव रामचन्द चौहान की पुत्री गुलाब कँवर, जिनके साथ महाराणा का विवाह 27 जून, 1754 ई. को हुआ। महारानी गुलाब कँवर महाराणा के साथ सती हुईं। ये मेवाड़ की पटरानी थीं।

2) गोगुन्दा के झाला राज कान्हसिंह की पौत्री व यशवंत सिंह की पुत्री सरस कँवर। 3) ईडर के राजा अनोपसिंह राठौड़ की पुत्री सरदार कँवर। 4) रतलाम के राजा पृथ्वीसिंह राठौड़ की पुत्री सरदार कँवर।

महाराणा राजसिंह द्वितीय के जीते जी उनकी कोई संतान नहीं थी। उनके देहांत के दो-चार माह बाद झाली रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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