भोमट के भोमियों की बगावत कुचलना :- महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के समय भोमट के भोमिये बागी हो गए। महाराणा ने केलवा के किशनदास राठौड़ को फौज समेत भेजा।
किशनदास राठौड़ के बहुत से कुटुंबी काम आए, लेकिन भोमिये मेवाड़ के अधीन हो गए। महाराणा ने ख़ुश होकर किशनदास राठौड़ व उनके कुटुंब वालों को देसूरी की जागीर समेत 27 गांव जागीर में दिए।
चित्रशाला में उत्सव :- 4 मार्च, 1723 ई. को महाराणा संग्रामसिंह ने चीनी की चित्रशाला में रहने का उत्सव किया। चीनी की ईंटें महाराणा ने पोर्चुगीज़ों के ज़रिए चीन से मंगवाई थीं और उनमें बहुत सी यूरोप की बनी हुई थीं, जो उदयपुर महल में लाई गई और अब तक मौजूद हैं।
कुँवर जगतसिंह का विवाह :- 27 अप्रैल, 1723 ई. को कुँवर जगतसिंह का यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। जून, 1723 ई. में कुंवर जगतसिंह की बारात लूणावाड़ा गई, जहां सोलंकी नाहरसिंह की पुत्री के साथ कुँवर जगतसिंह का विवाह हुआ। इस विवाह समारोह में महाराणा संग्रामसिंह ने लाखों रुपए खर्च किए।
करणीदान को दान :- अप्रैल, 1723 ई. में मेवाड़ के सूलवाड़ा गांव के चारण कवि करणीदान गरीबी की हालत में घर से निकले और शाहपुरा के कुँवर उम्मेदसिंह के यहां गए और अपने दोहे सुनाए। उम्मेदसिंह उदार थे और दोहों से खुश भी हुए थे, इसलिये करणीदान को ज्यादा उम्मीद थी, लेकिन उम्मेदसिंह ने करणीदान को 800 रुपए राह खर्च देकर विदा कर दिया।
करणीदान डूंगरपुर गए, जहां रावल शिवसिंह ने उनके दोहों से खुश होकर लाख पशाव भेंट किए। करणीदान प्रसन्न हुए और फिर मेवाड़ की तरफ रुख किया। उदयपुर राजमहलों में आकर करणीदान ने दरबार में महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय को पांच गीत सुनाए।
खुश होकर महाराणा ने कहा कि “तुम चाहो तो तुम्हारे इन गीतों को हम अपने हाथों से पूजें और तुम चाहो तो तुम्हें लाख पशाव दिए जावें”। करणीदान ने सम्मान खातिर गीत पूजवाने की बात स्वीकार की। महाराणा ने गीत भी पूजे और लाख पशाव भी दिए।
लाख पशाव के रूप में यह सब दिया गया था :- एक हाथी व 2 घोड़े (सामान व ज़ेवर सहित), 2 ऊंट, एक पालकी, 20 से 50 हजार का धन नकद व एक हजार रुपए से लेकर 5 हज़ार रुपए तक की सालाना आमदनी का गांव, एक सिरोपाव (सिर से पांव तक पहनने की कीमती पोशाक) व 5 हज़ार रुपए के ज़ेवर।
भंवर प्रतापसिंह का जन्म :- 8 अगस्त, 1724 ई. को कुंवर जगतसिंह की सोलंकिनी रानी से पुत्र का जन्म हुआ, जिनका नाम भंवर प्रतापसिंह रखा गया। महाराणा संग्रामसिंह ने अपने पौत्र के जन्म पर खुश होकर बड़ा उत्सव रखा।
1724 ई. – ईडर पर महाराणा का अधिकार :- महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय को अपने पिता महाराणा अमरसिंह द्वितीय की ख्वाहिश पूरी करने की बड़ी आरज़ू थी कि ईडर पर अधिकार किया जावे। इन्हीं दिनों मारवाड़ के कुँवर अभयसिंह ने बख्तसिंह के ज़रिए अपने पिता महाराजा अजीतसिंह की हत्या करवा दी और खुद गद्दी पर बैठे।
मारवाड़ के अधिकतर सामंत इस कुकृत्य से नाराज होकर अभयसिंह के भाई अनंदसिंह और रायसिंह से जा मिले। दोनों भाइयों ने ईडर पर कब्ज़ा कर लिया। महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ईडर पर अधिकार करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जयपुर के सवाई जयसिंह को मारवाड़ नरेश अभयसिंह के पास भेजा।
महाराजा अभयसिंह ने कहा कि अगर महाराणा मेरे दोनों भाइयों को मार दे, तो मैं ये परगना उन्हें सौंप दूँगा। महाराणा संग्रामसिंह ने भींडर के महाराज जैतसिंह शक्तावत व धायभाई नगराज को फौज समेत ईडर की तरफ रवाना किया।
जब मेवाड़ी फ़ौज ईडर पहुंची और किले को घेर लिया, तो अनंदसिंह और रायसिंह ने बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया। महाराज जैतसिंह शक्तावत, अनंदसिंह और रायसिंह को साथ लेकर महाराणा के सामने हाजिर हुए।
महाराणा संग्रामसिंह ने महाराजा अभयसिंह की शर्त नहीं मानी। महाराणा ने उन दोनों भाइयों को नहीं मारा। इसके बाद इन दोनों भाइयों ने महाराणा की मदद पाकर मारवाड़ के मेड़ता आदि कई परगने लूट लिए। इस तरह महाराणा संग्रामसिंह ने यहां शर्त के बर्ख़िलाफ कार्रवाई करके महाराजा अभयसिंह से बिगाड़ किया।
नाराज़ होकर महाराजा अभयसिंह ने महाराणा को एक पत्र लिखा, लेकिन महाराणा ने इस पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया। फिर महाराजा अभयसिंह ने जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह को पत्र लिखा, क्योंकि महाराणा को ईडर दिलाने में महाराजा जयसिंह ने मध्यस्थता की थी।
महाराणा संग्रामसिंह ने अनंदसिंह और रायसिंह को ईडर का थोड़ा सा इलाका दे दिया। महाराणा ने ईडर का पोलां व पाल नामक इलाके ईडर के कुँवर को दे दिए और शेष सारा हिस्सा मेवाड़ में मिला लिया।
1724 ई. में ही शाहपुरा के राजा भारथसिंह ने जगमालोत राणावतों (महाराणा उदयसिंह के पुत्र जगमाल के वंशजों) से जहाजपुर का परगना छीन लिया और महाराणा को ख़ुश करके एक परवाना भी हासिल कर लिया। राजा भारथसिंह के पुत्र कुँवर उम्मेदसिंह ने पेशकशी भरने के लिए जहाजपुर व फूलिया परगने मेवाड़ में मिलाने की गरज से एक मुचलका लिख दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)