सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पूर्वजों का संक्षिप्त वर्णन :- वासुदेव जी सपादलक्ष के चौहान वंश के वास्तविक संस्थापक थे। वासुदेव चौहान का शासन 6ठी शताब्दी में रहा था। वासुदेव चौहान के वंश क्रम में ही 11वीं सदी में पृथ्वीराज प्रथम हुए। पृथ्वीराज चौहान प्रथम का शासनकाल 1090-1110 ई. तक रहा।
1110 ई. से 1135 ई. तक अजयदेव/अजयराज द्वितीय का शासन रहा। इनकी रानी सोमलेखा के नाम से सिक्के भी चलाये गए थे। इन्होंने ही अपने नाम से अजयमेरु दुर्ग का निर्माण करवाया। अजयमेरु दुर्ग ही बाद में अजमेर दुर्ग, तारागढ़ दुर्ग आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ।
फिर अर्णोराज/आनाजी यहां के नए शासक बने, जो कि अजयदेव के पुत्र थे। अर्णोराज के समय मुसलमानों ने राजपूताने पर चढ़ाई की और पुष्कर को नष्ट करते हुए उनकी फौज अजमेर की तरफ बढ़ी और आनासागर स्थान पर पहुंची, जहां अर्णोराज ने उनको सख़्त लड़ाई के बाद परास्त किया।
इस लड़ाई में इतना रक्त बहा कि उसे साफ़ करवाने के लिए अर्णोराज ने आनासागर नामक तालाब का निर्माण करवाया। 1150 ई. में चालुक्य शासक कुमारपाल ने अजमेर पर आक्रमण करके उसे लूटा और अर्णोराज से अधीनता स्वीकार करवाई।

चौहान वंश में पितृहन्ता कहे जाने वाले जगदेव ने अपने पिता अर्णोराज की हत्या कर दी। 1150 ई. से 1164 ई. तक इस वंश के परमप्रतापी शासक विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) ने शासन किया। ये अर्णोराज के पुत्र थे। बीसलदेव ने अपने भाई जगदेव का वध किया। जगदेव का बेटा पृथ्वीभट्ट हुआ।
बीसलदेव के समय मुस्लिम फौज बब्बेरा तक पहुंच गई। बब्बेरा शेखावाटी के किसी इलाके का प्राचीन नाम है। बीसलदेव ने मुस्लिम फौज को परास्त कर आर्यावर्त से उनको खदेड़ने के लिए उत्तर की तरफ चढ़ाई की।
बीसलदेव ने संस्कृत विद्यालय की स्थापना की, बीसलसर नामक झील बनवाई व बीसलपुर नामक कस्बा बसाया। नरपति नाल्ह ने बीसलदेव रासो की रचना की थी। बीसलदेव ने हरकेलि नाटक कई शिलापट्टों पर उत्कीर्ण करवाया था।
बीसलदेव के दो पुत्र हुए :- अपरगांगेय और नागार्जुन। अपरगांगेय ने 1164 ई. से 1165 ई. तक मात्र एक वर्ष तक शासन किया। पितृहन्ता जगदेव के बेटे पृथ्वीभट्ट ने तोमरों के गढ़ हांसी पर कब्ज़ा कर लिया और फिर कुछ समय बाद बीसलदेव चौहान के पुत्र अपरगांगेय को मार दिया।
अपरगांगेय के बाद पृथ्वीराज चौहान द्वितीय राजगद्दी पर बैठे। इन्होंने 1165 ई. से 1169 ई. तक शासन किया। पृथ्वीराज द्वितीय ने सतलज नदी के निकट स्थित नगर पंचपुर पर अधिकार किया।
तत्पश्चात सोमेश्वर देव चौहान वंश की गद्दी पर बैठे और 1178 ई. तक शासन किया। इन्हीं सोमेश्वर देव के पुत्र सम्राट पृथ्वीराज चौहान हुए, जिन्हें पृथ्वीराज तृतीय भी कहा जाता है, क्योंकि इसी नाम के दो शासक पहले ही इस वंश में हो चुके।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के इतिहास लेखन में प्रयोग में ली गई पुस्तकों का विवरण :- विरुद्ध-विधि-विध्वंस :- इस ग्रंथ की रचना सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सेनापति स्कंद के पौत्र लक्ष्मीधर ने की। यह एक प्रामाणिक ग्रंथ है, जिसमें व्यर्थ का पक्षपात देखने को नहीं मिलता।
पृथ्वीराज विजय :- ये ग्रंथ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी विद्वान जयानक द्वारा लिखित है। जयानक का जन्म कश्मीरी ऋषि उपमन्यु के भार्गव कुलीन ब्राम्हण परिवार में हुआ था। जयानक कश्मीर से पृथ्वीराज चौहान के दरबार में आए और कविता सुनाई जिससे खुश होकर सम्राट ने उनको आश्रय दिया।

पृथ्वीराज विजय में सम्राट से जुड़ी कई जानकारियां प्राप्त होती हैं, लेकिन इस ग्रंथ में कुछ पक्षपात भी किया गया है। जयानक ने तराइन की अंतिम लड़ाई व सम्राट के देहांत का वर्णन नहीं लिखा है, सम्भव है कि जयानक अपनी रचना का अंत नायक की पराजय से न करना चाहता हो या कोई और कारण भी हो सकता है।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान को जयानक ने भारतेश्वर की उपाधि दी। जयानक ने चौहानों को सूर्यवंशी बताया है। जयानक खुद के बारे में लिखता है कि उसको 6 जन्मों की कठोर तपस्या के बाद माँ सरवस्ती ने आशीर्वाद दिया कि हरि की वीरता और यशगान को लिपिबद्ध करोगे। हरि से आशय सम्राट पृथ्वीराज चौहान से है।
पृथ्वीराज विजय रामायण को आधार मानकर लिखा गया है। जयानक ने स्वयं को वाल्मीकि का अवतार, सम्राट पृथ्वीराज को भगवान श्री राम, तिलोत्तमा (संयोगिता) को माता सीता, हरिराज को लक्ष्मण, भुवनैक मल्ल को गरुड़, कदम्बवास को हनुमानजी व मुहम्मद गौरी को रावण का अवतार बताया है।
पृथ्वीराज विजय व उसका ऐतिहासिक महत्व, पृथ्वीराज प्रबंध, हरिहर द्विवेदी द्वारा लिखित दिल्ली के तोमर, राजशेखर द्वारा लिखित पुरातन प्रबंध संग्रह, मेरुतुंग द्वारा रचित प्रबंध चिंतामणि, डॉक्टर गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, ओझा निबंध संग्रह आदि पुस्तकों से जानकारी ली गई है।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित अजमेर का वृहद इतिहास, कविराजा श्यामलदास द्वारा रचित वीरविनोद, नयचंद्र सूरी द्वारा रचित हम्मीरमहाकाव्य, कर्नल जेम्स टॉड द्वारा लिखित, एनल्स एंड एंटिक्वीटीज़ ऑफ राजस्थान आदि पुस्तकों का प्रयोग भी इस लेखन कार्य में किया गया है।
तारीख यमीनी, तारीख-ए-फिरिश्ता, मिनहाज सिराज द्वारा लिखित तबकात-ए-नासिरी, ऊफी द्वारा लिखित जामीउल हिकायात, हसन निजामी द्वारा 1205-30 ई. में लिखित ताजुल मआसिर आदि फ़ारसी तवारीखों का भी उपयोग किया गया है।
पाठकों के मन में प्रश्न आ सकता है कि इस विस्तृत सूची में पृथ्वीराज रासो, जो कि सर्वाधिक प्रसिद्ध है, उसका नाम क्यों नहीं है। तो इस प्रश्न का उत्तर अगले भाग में दिया जाएगा। अगले भाग में बताया जाएगा कि पृथ्वीराज रासो में कितनी प्रमाणिकता है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
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