1609 ई. में किसी कारणवश मेवाड़ में तैनात मुइजुलमुल्क बख्शी दुःखी होकर आगरा चला गया। तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है कि “आज राणा अमर के खिलाफ मेवाड़ में तैनात मुइजुलमुल्क बख्शी गमज़दा होकर मेरे पास आया”।
इसी वर्ष महाराणा प्रताप के मामा मानसिंह सोनगरा के पौत्र व जसवन्त सोनगरा के पुत्र राजसिंह सोनगरा चौहान महाराणा अमरसिंह की सेवा छोड़कर मारवाड़ चले गए। मारवाड़ के महाराजा सूरसिंह राठौड़ ने उनको 5 गांवों समेत कूडणा की जागीर दी।
अब्दुल्ला खां का मेवाड़ अभियान :- अब तक जहांगीर ने मेवाड़ के विरुद्ध दो सैन्य अभियान भेज दिए थे, जिनमें से पहला सैन्य अभियान शहज़ादे परवेज़ के नेतृत्व में भेजा गया और दूसरा सैन्य अभियान महाबत खां के नेतृत्व में भेजा गया। उक्त दोनों ही सैन्य अभियान असफल रहे।
जून, 1609 ई. में जहांगीर ने अब्दुल्ला खां को फ़ौज सहित मेवाड़ पर भेजने का फैसला किया। अब्दुल्ला खां अपने साहस और निर्दयी स्वभाव के लिए अकबर के समय से ही प्रसिद्ध था। अब्दुल्ला खां ने जिस भी सैन्य अभियान में भाग लिया, उसमें नाम कमाया। वह अहदी से उठकर मनसबदार बना था।
अब्दुल्ला खां को सेनापति बनाने का एक विशेष कारण भी था। 2 वर्ष पहले ही अब्दुल्ला खां ने मुगल सल्तनत के बागी बदीउज़्ज़मा को मेवाड़ में घुसकर बंदी बनाया था, जो कि एक मुश्किल कार्य था। इस बार जहांगीर ने एक उपयुक्त सेनापति का चयन किया था।
तुजुक-ए-जहांगीरी में जहाँगीर लिखता है कि “मैंने अब्दुल्ला खां को फिरोज़ जंग का खिताब देकर महाबत खां की जगह मेवाड़ भेजा। बाद में बख्शी अब्दुल रज्ज़ाक को भेजकर सब सिपहसालारों से कहलाया कि वे अब्दुल्ला खां के हुक्मों को ना मानने की गुस्ताखी ना करे और उसका कहना माने”
अब्दुल्ला खां के साथ मेवाड़ जाने वाले प्रमुख बादशाही सिपहसालारों की सूची में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुन्देला, गजनी खां जालौरी, राजा विक्रमजीत, शुजात खां, महमूद अली आदि शुमार थे।
अब्दुल्ला खां की कमान में मुगल फौज ने मेवाड़ में प्रवेश किया। किसी पर कोई दया दिखाने का प्रश्न ही नहीं था। जहां-जहां से मुगल फौज गुजरी, वहां भय ने स्थान ले लिया। बस्तियों को जलाते हुए मुगल सेना लगातार आगे बढ़ती जा रही थी। अब्दुल्ला खां ने महाराणा अमरसिंह की फौज पर हमला किया, तो मेवाड़ की सेना परास्त हुई और मेवाड़ के कई हाथी-घोड़े अब्दुल्ला खां के हाथ लगे।
अब्दुल्ला खां ने जहांगीर को एक खत लिखा कि “मैंने उस बागी राणा का पीछा कर उसे पहाड़ियों में ढकेल दिया है। उसके कई हाथी-घोड़े ज़ब्त किये। रात के वक्त राणा अमर ने बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई। अभी उसके हालात खराब हैं, इसलिए जल्द ही उसे कैद कर लिया जावेगा या मार दिया जावेगा।”
बहुत दिनों बाद मेवाड़ भेजे गए किसी सैन्य अभियान के द्वारा ऐसी सकारात्मक खबर शाही दरबार तक पहुंची। जहांगीर की खुशी का ठिकाना न रहा और उसने अब्दुल्ला खां को खत लिखकर कहलवाया कि अब से तुम्हारा मनसब बढ़ाकर 5000 जात किया जाता है, तुम इसी तरह काम करते रहो।
जहांगीर ने अब्दुल्ला खां के लिए 370 अहदी मेवाड़ भेजे। अहदी वे सैनिक होते थे, जो मुगल बादशाह की निजी सेवा में रहते थे। इनके अतिरिक्त जहांगीर ने अब्दुल्ला खां के पास मेवाड़ में 100 घोड़े और भिजवाए और कहा कि इन घोड़ों को अब्दुल्ला खां मेवाड़ में तैनात मनसबदारों और अहदियों में से जिन्हें चाहे उन्हें दे दे।
महाराणा अमरसिंह के खिलाफ नाडौल पर अब्दुल्ला खां द्वारा थाना तैनात करवाना :- अब्दुल्ला खां को फ़ौज समेत मेवाड़ में डेरे डाले हुए 7 माह से अधिक समय बीत चुका था। इस दौरान अब्दुल्ला खां व महाराणा अमरसिंह की सैनिक टुकड़ियों के बीच कई लड़ाइयां हुईं।
कभी अब्दुल्ला खां की सेना हावी हो जाती, तो कभी महाराणा की सेना हावी हो जाती। महाराणा अमरसिंह द्वारा मेवाड़ के मुगल थानों पर तो आक्रमण होते ही थे, पर अब उन्होंने मालवा, गुजरात, अजमेर और गोडवाड़ के मुगल थानों पर भी आक्रमण करना शुरू कर दिया। इस दौरान जितना सम्भव होता, उतना नुकसान मुगलों का किया जाता।
महाराणा अमरसिंह ने कुँवर कर्णसिंह को फ़ौज सहित सिरोंज की तरफ भेजा। कुँवर कर्णसिंह ने सिरोंज पर भीषण आक्रमण किया और बहुत सा लूट का माल हाथ लगा। इस लड़ाई में कई मुगल सैनिक मारे गए। इस समयकाल में महाराणा अमरसिंह द्वारा मेवाड़ के बाहर करवाए गए आक्रमणों में सिरोंज का आक्रमण सर्वाधिक सफल रहा।
ऐसी स्थिति देखकर अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ की सीमा पर स्थित मुगल थानों को सुदृढ़ किया। अब्दुल्ला खां मेवाड़ के मोही गांव में पहुंचा। वहां उसने मारवाड़ के महाराजा सूरसिंह राठौड़ के पुत्र कुँवर गजसिंह राठौड़ और गोविन्ददास भाटी को बुलवाया।
मारवाड़ में स्थित सोजत के परगने पर इस समय शाही फ़ौज का कब्ज़ा था। अब्दुल्ला खां ने कुँवर गजसिंह राठौड़ से कहा कि मैं तुमको सोजत का परगना दे सकता हूँ, पर इसके बदले में तुम्हें मेरा भी एक काम करना होगा। कुँवर गजसिंह को यह प्रस्ताव उचित लगा और उन्होंने पूछा कि क्या काम करना होगा।
तब अब्दुल्ला खां ने कहा कि मेवाड़ का राणा अमरसिंह आए दिन मेवाड़ की सीमाओं को लांघकर पड़ोसी इलाकों में बादशाही थानों पर हमले करता है, इसलिए हम चाहते हैं कि तुम मेवाड़ के ख़िलाफ़ जाकर अपनी फ़ौज समेत नाडौल के थाने पर तैनात रहो।
कुँवर गजसिंह ने यह सौदा मंज़ूर किया। कुँवर गजसिंह राठौड़ व गोविन्ददास भाटी 2400 घुड़सवारों व 200 तोपचियों के साथ नाडौल के थाने पर तैनात हो गए और अब्दुल्ला खां ने सोजत का परगना उनको दे दिया। इस प्रकार अब्दुल्ला खां को मेवाड़ के इस महत्वपूर्ण स्थान पर अपनी फ़ौज लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ी और थाने का भी पुख़्ता इंतज़ाम हो गया।
मेवाड़ में तैनात एक फौजी टुकड़ी जहांगीर द्वारा हटाकर अन्यत्र भेज दी गई, जिसके बारे में तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है कि “अब्दुल्ला खां की कमान में मेवाड़ गए राजा वीरसिंह देव, शुजात खां, राजा विक्रमजीत वगैरह कई सिपहसालारों समेत 4-5 हज़ार जंगी सवारों को मैंने मेवाड़ से हटाकर खानजहां की मदद के लिए भेज दिया।”
मेवाड़ में तैनात जिन बादशाही सिपहसालारों ने अच्छा काम किया, उनके लिए अब्दुल्ला खां ने जहांगीर को खत लिखकर सिफारिश की, जिनमें गजनी खां जालौरी का नाम प्रमुख है। इस प्रकार की सिफारिश के बाद वे सिपहसालार और मन लगाकर काम करते थे।
मेवाड़ में तैनात गजनी खां जालौरी की सेवा को देखते हुए जहांगीर ने इसके पद में 500 जात और 400 सवार की वृद्धि कर दी। अब्दुल्ला खां की सिफारिश पर जहांगीर ने सगरसिंह सिसोदिया के पुत्र मानसिंह के पद में भी बढ़ोतरी की।
1610 ई. में महाराणा प्रताप का साथ देने वाले सिरोही के महाराव सुरताण देवड़ा का 51 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। एक शानदार व यशस्वी जीवन का अन्त हुआ। महाराव सुरताण देवड़ा महाराणा अमरसिंह के दामाद थे। राव रायसिंह द्वितीय सिरोही के नए शासक बने। राव रायसिंह के नानाजी महाराणा अमरसिंह थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)