छत्रपति शिवाजी महाराज (भाग – 11)

1666 ई. में औरंगजेब के आदेश के मुताबिक शिवाजी महाराज और उनके पुत्र शम्भाजी को रामसिंह की निगरानी में आगरा में स्थित जयपुर निवास में नज़रबन्द कर दिया गया। शिवाजी महाराज ने यहां से बच निकलने के लिए औरंगज़ेब को तरह-तरह के प्रलोभन दिए, लेकिन कुछ काम न बन सका।

फिर शिवाजी महाराज ने एक दिन औरंगज़ेब को कहलवाया कि “यदि आज्ञा हो तो मैं अपना बाकी का जीवन फ़क़ीर होकर बिताना चाहता हूं”। औरंगज़ेब इस बात पर हंसा और उसने कहा कि “बहुत अच्छा, फ़क़ीर होकर प्रयाग के किले में रहो, तुम्हें वहां भेज देंगे, वह बहुत बड़ा तीर्थ है। वहां मेरा सूबेदार बहादुर खां तुम्हें बहुत हिफ़ाजत से रखेगा।”

इस प्रकार शिवाजी महाराज निराशा की ओर बढ़ने लगे। उन्हें अपने राज्य व अपने पुत्र की चिंता इस क़दर सताने लगी कि एक दिन वे शम्भाजी को गले लगाकर रो पड़े। परन्तु ये स्थिति अधिक समय तक नहीं रही, क्योंकि कूटनीति के मामले में वे औरंगज़ेब से कहीं आगे थे। उनकी प्रखर बुद्धि ने कैद से बच निकलने का एक तरीका खोज निकाला।

शिवाजी महाराज जिन एक हज़ार सैनिकों के साथ आगरा आए थे, उस सेना को वापस उनके राज्य लौटा देने के लिए उन्होंने औरंगज़ेब से अनुमति मांगी। औरंगज़ेब द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद 7 जून, 1666 ई. को ये फ़ौज रवाना हो गई।

13 जुलाई को शिवाजी महाराज ने कुंवर रामसिंह कछवाहा से 66 हज़ार रुपए लेकर उसकी हुंडी दक्षिण में राजा जयसिंह के पास भिजवा दी, जहां शिवाजी महाराज के वकील ने स्वयं जाकर इस हुंडी के 66 हज़ार रुपए राजा जयसिंह को चुकाए। शिवाजी महाराज ने अपना एक हाथी, एक हथिनी, कीमती कपड़ों से भरी हुई दो बैलगाड़ियां आदि अपने सभाकवि कवींद्र परमानन्द के साथ राजा जयसिंह के राज्य आम्बेर में भिजवा दिया।

छत्रपति शिवाजी महाराज

एक दिन बीमारी का बहाना बनाकर शिवाजी महाराज पलंग पर लेट गए। वहां से बाहर निकलना बिल्कुल बन्द कर दिया। बीमारी दूर करने के लिए वे बड़े-बड़े टोकरों में फल-मिठाईयां आदि भर के साधुओं आदि को भेजने लगे। हर एक टोकरी को बांस के डंडे में लटकाकर दो कहार रात के वक्त बाहर ले जाते थे। कोतवाली के पहरेदारों ने पहले कुछ दिन तक टोकरियों की जांच की, लेकिन बाद में बिना जांच किए ही जाने देने लगे।

शिवाजी महाराज को अब विश्वास हो गया कि टोकरियों की जांच नहीं की जाएगी, इसलिए 19 अगस्त को उन्होंने पहरेदारों को कहलवा दिया कि उनकी बीमारी बढ़ गई है, इसलिए उन्हें तंग न किया जाए। शिवाजी महाराज के साथ इस समय हीराजी भी थे, जो दिखने में कुछ-कुछ शिवाजी महाराज के समान ही थे।

हीराजी शिवाजी महाराज के स्थान पर लेट गए। उन्होंने चद्दर से मुंह व शरीर ढंक लिया और केवल एक हाथ चद्दर से बाहर रहने दिया। इस हाथ में उन्होंने शिवाजी महाराज का सोने का कड़ा पहन रखा था, जो दूर से ही दिखाई देता था। शाम होते ही शिवाजी महाराज व शम्भाजी दो अलग-अलग टोकरियों में लेट गए और उनके ऊपर पत्तल ढंक दिए गए। फिर उनमें फल, मिठाईयां आदि भी भर दिए गए।

दो मराठा सैनिक व एक पंक्ति में कहार लोग वहां से रवाना हुए। पहरेदारों ने उनको नहीं रोका, क्योंकि ये तो रोज़ की बात थी। कहार लोगों ने आगरा शहर के बाहर पहुँचकर एक निर्जन स्थान पर टोकरियाँ रख दीं। कहार लोग वहां से चले गए और फिर शिवाजी महाराज व शम्भाजी टोकरियों से बाहर निकले और दोनों मराठा सैनिकों के साथ 3 कोस पैदल चलकर एक गांव में पहुंचे।

छत्रपति शिवाजी महाराज

उस गांव में नीराजी रावजी पहले ही घोड़े लेकर उनकी राह देख रहे थे। यहां वे सब दो हिस्सों में बंट गए। एक दल तो दक्षिण की तरफ़ गया। दूसरे दल में शिवाजी महाराज, शम्भाजी, नीराजी, दत्ताजी आदि थे। शिवाजी महाराज ने सारे शरीर पर राख पोतकर साधु का भेष बनाया और मथुरा की तरफ़ रवाना हुए।

19 अगस्त की रातभर व 20 अगस्त को एक पहर तक हीराजी वहीं सोते रहे। थोड़ी देर बाद हीराजी ने उठकर अपने कपड़े पहने और नौकर के साथ बाहर आए। फिर उन्होंने पहरेदारों से कहा कि “शिवाजी महाराज के सिर में तेज दर्द है, उन्हें तंग मत करना, हम दवाई लेकर आते हैं।” इस तरह घंटा भर बीत गया हीराजी लौटकर नहीं आए।

पहरेदारों को संदेह हुआ और उन्होंने भीतर प्रवेश किया, तो पूरी तरह सन्नाटा था। आगरा में हो-हल्ला मच गया। फ़ौलाद खां ने औरंगज़ेब को सच बताया, तो वह सन्न रह गया। औरंगज़ेब ने फ़ौरन आदेश जारी करके हर तरफ निगरानी बढ़ा दी।

शिवाजी महाराज के अनुचरों रघुनाथ बल्लाल, सोनदेव आदि को पकड़ लिया गया और उनको यातनाएं दी गई, जिसके बाद मालूम हुआ कि शिवाजी महाराज को आगरा की कैद से बाहर निकालने में कुंवर रामसिंह कछवाहा का हाथ रहा। औरंगज़ेब ने कुंवर रामसिंह की मनसबदारी और दरमाही छीनकर उनका दरबार में प्रवेश निषेध कर दिया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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